‘स्टेज एप्प’ हरियाणा का अपना ओटीटी प्लेटफॉर्म अपने क्षेत्र की कहानियां कहता है। अपने ही अंदाज में, अपनी ही भाषा-बोली में, अपने ही तरीके से, अपने ही क्षेत्र की कहानियों से। यानी हरियाणवी बोली में। बोली के लिहाज से यह लठ मार बोली भले ही कही जाती हो। लेकिन ‘स्टेज एप्प’ लगातार अपने प्रांत के किस्सों को फिल्मी रूप में बताकर, दिखाकर क्षेत्रीय सिनेमा को जरूर ऊपर ले जाने की कोशिश में लगा हुआ है। साथ ही एक मीठापन सिनेमा का उसमें घोलने की कोशिश कर रहा है। हालांकि अपने बेहद ज्यादा प्रचार-प्रसार पर जोर देने के कारण यह कंटेंट को टेक्निकल स्तर पर उतना ऊपर ले जाकर पेश नहीं कर पाया है अभी तक।
फिर इस बीच ‘ग्रुप डी’ वेब सीरीज का पहला सीजन हो या ताजातरीन इसका दूसरा सीजन या फिर ‘प्रेम नगर’। इस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध ओरिजनल कंटेंट के नाम पर ये दो ही टेक्निकली बेहतर नजर आते हैं।
‘ग्रुप डी’ के पहले सीजन में हमने देखा कि हरियाणा प्रांत के एक गांव में महेश नाम का लड़का है जो एक ऐसी भीड़ का हिस्सा बना हुआ है जिसके जीवन का अंतिम ध्येय केवल सरकारी नौकरी पाना है। शहर जाकर वह तैयारी भी करता है। लेकिन जब कहीं सफलता हाथ नहीं लगती तो मन मार कर ‘ग्रुप डी’ की भर्ती परीक्षा देता है और सफलता भी हासिल करता है। अब उसकी ‘ग्रुप डी’ के मुताबिक चपड़ासी की नौकरी लगी। अब यहां भी कई उलझने वह सुलझाता रहता है।
पहले सीजन को देखते हुए आगे क्या होने वाला है उसके बारे में बीच-बीच में आपको संकेत भी मिलते रहते हैं उन्हीं संकेतों के आधार पर जब पहला सीजन खत्म होता है तो इसके दूसरे सीजन का इंतजार भी बराबर बना रहता है। ‘स्टेज एप्प’ की इस दूसरी सीरीज में अब महेश नाम का यह लड़का ग्रुप डी में ही रहते हुए ही ग्राम सचिव की परीक्षा में बैठता है। वह न केवल बैठता है इस परीक्षा में बल्कि सफलता भी उसके हाथ लगती है और इस बीच जो उसकी प्रेम कहानी चल पड़ी थी पहले सीजन में उसे देखने के बाद दर्शकों को लगता है कि इस दूसरे सीजन में सब अच्छा होगा और हमेशा की तरह हैप्पी एंडिंग।
लेकिन थोड़ा रुको, ठहरो, जल्दी क्या है? अभी तो नायक की जिंदगी के कई इम्तिहानों की बारी आनी बाकी है। ग्राम सचिव की परीक्षा लीक होने के बाद क्या वह अफसर बनने के अपने सपने को पूरा कर सकेगा? क्या वह अपना यह मकाम हासिल करके ही अपनी प्रेमिका पारो से शादी करेगा? या कुछ और ही तरफ ऊंट बैठेगा करवट लेकर? या ग्राम सचिव का ख्याल दिल से निकाल कर वह इससे भी आगे के सपने देखेगा या वहीं अपने अरमानों का दम घोंट कर कत्ल कर देगा?
ऐसे कई सवालों के जवाब यह प्यारी सी वेब सीरीज देते हुए नजर आती है। बड़ी ही खूबसूरती के साथ। पहली बार ‘स्टेज एप्प’ के किसी कंटेंट को देखने के बाद उम्मीद जगती है कि ऐसा काम वे करते रहें जिसमें टेक्नोलॉजी , कंटेंट, कलाकार, कास्टिंग, डायरेक्शन , कहानी, बैकग्राउण्ड स्कोर, सिनेमेटोग्राफी जैसी तमाम बातें खूबसूरत तरीके से देखने को मिलती रहें तो अवश्य ही क्षेत्रीय सिनेमा का उद्धार होगा। ‘स्टेज एप्प’ पर पहले रिलीज हुई कुछ वेब सीरीज के रिव्यूज में मैंने यह बात कही थी कि यदि यह ओटीटी प्लेटफॉर्म सचमुच कुछ क्षेत्रीय सिनेमा के नाम पर करना चाहता है तो इसे निर्देशकों को संसाधन अच्छे से उपलब्ध करवाने ही होंगे।
वरना खूब करीने से सजाकर भले ही इंस्टाग्राम पर रील्स पेश करे ‘स्टेज एप्प’ या अपने मात्र ट्रेलर में वह दमखम दिखाकर अपने ग्राहक बटोरना चाहे तो बटोर ले। लेकिन एक समय बाद इसे उसका खामियाजा भुगतना पड़ जायेगा। महसूस होता है ‘स्टेज एप्प’ इस बात को गम्भीरता से ले रहा है। हालांकि इस तरह ही कमियों से अछूती तो यह भी सीरीज नहीं है। कई जगहों पर हल्की-फुल्की कमियां आप इसे एकटक देखते रहें तो आसानी से निकाल सकते हैं।
खैर फिर ‘ग्रुप डी’ के दूसरे सीजन में फिर से पहले सीजन के लीड रहे, थियेटर के मंझे हुए कलाकार ‘सुमित धनखड़’ का काम देखकर हमेशा आपके मुंह से तारीफें ही निकलती हैं। यह लड़का अपनी अभिनय क्षमता के दम पर वह कर दिखाने की कुव्वत रखता है। जो इसे कभी किसी बड़े निर्देशक की नजर पड़ जाने के बाद एक्टिंग की दुनियां में एक आला मुकाम दिला सकती है।
निशा शर्मा भी अपना भरपूर सहयोग देती हैं। वहीं जोगिंदर कुंदू , सरोज जांगड़ा , जे डी बल्लू, हरिओम कौशिक , दीपक शर्मा , मधु मलिक , तेजी सिंह आदि सभी मिलकर सीरीज को दर्शनीय बनाए रखते हैं अपने अभिनय से। विशेष तौर से बात की जाए तो जे डी बल्लू स्थानीय सिनेमा वालों के लिए एक चर्चित नाम बन चुके हैं। वहीं तेजी सिंह के चेहरे की मासूमियत इस बार उनकी मजबूती बनकर सामने आई है। वहीं दीपक शर्मा का काम भी आपको उनके पात्र के मुताबिक सटीक बैठता नजर आता है। मधु मलिक तथा सरोज जांगड़ा ने भी सीरीज में भरपूर दमखम दिखाया है।
डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी का काम शुभ संधू के हिस्से जो आया उन्होंने उसे इस कदर शिद्दत से निभाने की कोशिश की है कि छिटपुट जगहों को छोड़ यह सीरीज़ प्यारी बन पड़ी है। एडिटर ज्ञानेश की एडिटिंग और साउंड सिस्टम में नीरज रोहिल्ला बैकग्राउण्ड स्कोर के मामले में दीपन दास का काम भी उम्दा के आस-पास ठहरता है।
इस सीजन और सीरीज के लिए स्क्रीनप्ले तथा डायलॉग्स लिखने वाले राजेश भादू जो ‘इंफिनिटी क्रिएटर्स’ के साथ जुड़कर इसे लेकर आए हैं उसके लिए इस सीरीज ने स्टेज एप्प की सब्क्रिप्शन को बढ़ाने में उनकी उलझनों को सुलझाने का काम किया है उसके चलते इसे एक बार अवश्य देखा जा सकता है। लेकिन ‘स्टेज एप्प’ वाले इस मुगालते में न रहें कि एक-दो अच्छी वेब सीरीज बना देने से उनका ओटीटी चल पड़ेगा। बल्कि यह उसी तरह से रेंगते हुए चलता रहेगा जिस तरह से अब तक की इसकी हालत रही है।