केबीसी का चौदहवाँ सीजन शुरू हो गया है। यही एक ऐसा शो है, जिसकी सफ़लता उसके आने के पहले ही सुनिश्चित हो जाती है और दर्शकों को इसका बेसब्री से इंतज़ार रहता है। इसलिए नहीं कि यह धन कमाने का सरल माध्यम है बल्कि इसलिए क्योंकि इस मंच पर माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी एक साथ विराजमान होती हैं। यहाँ पैसे तो मिलेंगे पर ज्ञान के बल पर ही! लेकिन बात बस इतनी ही नहीं है। केबीसी कई मायनों में अन्य क्विज़ शो से अलग है। यह आम भारतीयों की बात करता है। उन्हें सपने देखने को खुला आसमां भर ही नहीं दिखाता नहीं बल्कि उस आसमां पर छा जाने की प्रेरणा भी देता है। उनमें हौसला भरता है। यह हमारे जीवन-संघर्ष, सुख-दुख को साथ लेकर चलता है। यहाँ न कोई अमीर है, न गरीब! न हिन्दू है, न मुसलमान! बल्कि इसमें देशभक्ति से लबालब एक सच्चे भारतीय की भावना है, जिसे अपनी सभ्यता, संस्कृति और भाषा से अथाह प्रेम है। तभी तो यह आमजन की भाषा में बात करता है। उनकी बात करता है। उनके साथ रोता-हँसता है। उन्हें छोटी-छोटी खुशियों को सहेजने का हुनर सिखाता है। साथ ही यह भी बताता चलता है कि चाहे जितनी मुश्किलें आएँ, हमें हारकर बैठ नहीं जाना है! अड़े रहना है, डटे रहना है! कुल मिलाकर इसका खालिस देसीपन ही इसे सफ़लता के शीर्ष तक पहुँचाने का मंत्र है।
ये देसीपन यूँ ही नहीं आता! इसके लिए आवश्यक है कि आप स्वयं उसमें डूबे हों! तभी तो जब भी ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की बात आती है तो सर्वप्रथम जो छवि आँखों के सामने उभरती है वह अमिताभ बच्चन की होती है। शो समाप्त हो जाने पर कुछ पलों के लिए भले ही प्रतियोगी का नाम और जीती हुई राशि याद रहे लेकिन सदा के लिए जो बातें हृदय पर अंकित होती हैं वह है अमिताभ की सहज, सरल और अपनेपन से भरी भाषा, उनका व्यवहार, उनकी शिष्टता, उनका अनुशासन और संस्कार। भले ही प्रतियोगी यहाँ से हारकर जाए, तब भी वह भीतर से समृद्ध अनुभव करता है।
जब हम इन सारे तथ्यों पर मनन कर रहे होते हैं तो कुछ और भी है, जो साथ-साथ चलता है। हमें आकर्षित करता है, आमंत्रित करता है और स्नेह से कहता है कि ‘देखो, संकोच की कोई बात नहीं! इसमें तुम्हारे जैसे लोग ही हैं।’ मैं बात कर रही हूँ केबीसी के अद्भुत और संवेदनशीलता से परिपूर्ण प्रोमोज़ की। जिन्हें देखते ही इस शो से सीधा जुड़ाव हो जाता है। देखा जाए तो एक ‘जीवन दर्शन’ है इनमें। वे लोग, जो इसके नियमित दर्शक रहे हैं, वे अब पहले से कुछ और बेहतर मनुष्य अवश्य हो गए होंगे।
केबीसी की जब शुरुआत हुई, उस समय अच्छे ‘क्विज़ शो’ अवश्य आया करते थे लेकिन ऐसा कोई भी नहीं था, जो हर वर्ग और उम्र को लुभा सके। उनमें विजेता को क्या और कितना मिलता था, यह भी याद नहीं! कहते हैं ‘पैसा आकर्षित करता है।’ उस पर सदी के महानायक साथ हों तो और क्या चाहिए! तब आम मध्यमवर्ग के लखपति बनने के ही टोटे पड़े हुए थे। ऐसे में ‘करोड़पति’ शब्द जैसे हृदय को झंकृत कर गया। कोई भी प्रतिभागी बन सकता है, यह बात और भी असर कर गई। यह उस प्रबुद्ध वर्ग के लिए स्वयं को साबित करने के मौके के रूप में भी सामने आया, जिनकी कद्र थोड़ी कम की गई।
कार्यक्रम की रचनात्मक टीम इस तथ्य से भली भांति परिचित रही होगी कि हम हिन्दुस्तानी कितने भावुक हैं। बस हमारी भावनाओं को कोई समझ भर ले! आप स्वयं ही देखिए कि हम कुछ भी भूल गए होंगे पर पहले सीज़न के विजेता हर्षवर्धन नवाटे का नाम, उनका चेहरा और खुशी के वो पल अब भी हमारी स्मृतियों में ताजा हैं।
उनकी इस जीत के बाद दूसरे सीजन में टैगलाइन आई, ‘उम्मीद से दुगुना‘। अब और क्या चाहिए! सबकी आँखें फैल गईं! अरे, वाह! बस कुछ प्रश्नों के उत्तर देने भर से ही झोली भर जाने वाली है! कुछ न भी मिला तो अमिताभ से मिलना भी कोई कम थोड़े ही न था। टैगलाइन चल निकली। इसकी सफ़लता ने सपनों के द्वार ही खोल दिए। अब प्रत्येक आम नागरिक अपनी बुद्धि के बल पर इस तिजोरी तक पहुँच सकता था।
इसी बात को सिद्ध करते हुए अगली टैगलाइन ने और स्पष्ट रूप से समझाया कि भई! बात केवल धन की ही नहीं, ज्ञान की भी है और ‘कुछ सवाल ज़िंदगी बदल सकते हैं।‘ (सीज़न 3)
उसके बाद इन सवालों और बुद्धि की महत्ता बताते हुए यह भी कहा गया कि ‘कोई भी सवाल छोटा नहीं होता!’ (4) मतलब जीवन डगर में किसी भी प्रश्न को हल्के में मत लीजिए, यह आपका भाग्य भी बदल सकता है। यह इस दर्शन को भी इंगित करता था कि एक बड़े बदलाव का प्रारंभ, छोटी शुरुआत से ही होता है।
अगले सीजन की टैगलाइन ने तो जैसे तहलका ही मचा दिया। ‘कोई भी इंसान छोटा नहीं होता!’ (5) जी, बात बस परिस्थितियों की ही है कि कोई अमीर है, कोई गरीब। लेकिन गरीब का मतलब यह नहीं कि उसके पास ज्ञान नहीं। इसके शानदार प्रोमो ने लाखों लोगों को हौसला दिया और बेझिझक आगे बढ़ने की प्रेरणा भी! अब जनता को पता चल गया कि प्रत्येक इंसान में कोई न कोई योग्यता अवश्य होती है। बात, बस मौके की है। इसी विचार को और विस्तार देते हुए अगला सीजन आया और इसने भरोसा दिलाया कि ‘सिर्फ़ ज्ञान ही आपको, आपका हक़ दिला सकता है!’ (6)
ज्ञान प्राप्त करने का तात्पर्य मात्र डिग्रियों से नहीं है कि डिग्री ले ली और हो गया! बल्कि सीखना तो अनवरत प्रक्रिया है। यदि आपके भीतर प्रतिदिन कुछ नया सीखने का उत्साह शेष नहीं तो सफ़लता संदेहास्पद है। इसलिए ‘सीखना बंद तो जीतना बंद!’ (7) सीखिए और आगे बढ़ते रहिए। यही जीवन का सत्य है और उसे रुचिकर बनाने की रेसिपी भी। इस बार के प्रोमो ने जनमानस में यह भाव भी गहरा बिठा दिया कि सीखने का उम्र से कोई संबंध नहीं होता!
अब ये न समझना कि इस कार्यक्रम में बात केवल पैसे कमाने की ही है! कोई भी जुड़ाव हो, दिल से ही तो उपजता है। इस भाव का संज्ञान लेते हुए धन और ज्ञान के साथ अब मन भी जोड़ दिया गया और कहा गया कि ‘यहाँ सिर्फ़ पैसे नहीं, दिल भी जीते जाते हैं!’ (8)
अगले सीज़न का वीडियो उस आम वर्ग को केंद्रित कर बनाया गया था, जो उपहास उड़ाते प्रश्नों से त्रस्त है। इस विज्ञापन में ह्यूमर के साथ, संवेदनशीलता भी थी और यह संदेश भी कि अब दुनिया को ‘जवाब देने का वक़्त आ गया है!’ (9) दर्शक अब अपने बुद्धि कौशल के बल पर सबको मुँहतोड़ जवाब देने के लिए कमर कस चुके थे।
इसके बाद बारी आई लड़कियों के सपने और उनके पंख कतर जाने की। उसे पायलट बनना है और सब उसका मज़ाक बना रहे हैं। उससे अमिताभ कहते हैं कि “यदि आप अधिक धनराशि नहीं जीत सकीं तो लोगों को एक और मौका मिल जाएगा।” लड़की मुस्कुराते हुए बोलती है कि “लोगों का तो काम ही है कहना और मेरा कोशिश करते रहना” अमिताभ पलटकर दर्शकों से कहते हैं कि “आप क्या करोगे? दुनिया की सोचोगे या दुनिया से पूछोगे कि ‘कब तक रोकोगे?’(10) इसे देखने के बाद भले ही हर लड़की केबीसी में न भी गई हो पर उसके सपनों की ऊँची उड़ान की तैयारी शुरू हो गई थी।
यह दुनिया संघर्षरत इंसान का साथ देने के स्थान पर, टांग अड़ाने के नियम से ज्यादा चलती है। लेकिन जो प्रतिभावान हैं, स्वयं पर विश्वास रखते हैं, मेहनत करते हैं, उन्हें पता है कि एक-न-एक दिन अपना टाइम आएगा। तब तक डटे रहो। केबीसी के ग्यारहवें सीज़न ने भी इसी ज़िद का समर्थन करते हुए कहा कि ‘अड़े रहो!’ (11) अमिताभ ने भी अपने जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं और उसके बाद मिली बेशुमार सफ़लता का स्वाद भी चखा है। उनसे बेहतर और कौन यह समझा सकता था!
देखा जाए तो अगला सीज़न भी यही समझाता है कि हार मत मानना कभी! और ‘सेट बैक का जवाब कम बैक से दो‘ (12) संघर्षों से जूझो, आगे बढ़ो और दुनिया को दिखा दो, अपने होने का मतलब। क्योंकि ‘सवाल जो भी हो, जवाब आप ही हो‘(13) ज्यादा पुरानी बात नहीं है इसलिए इसका विज्ञापन तो आपको याद ही होगा। इसमें गाँव के एक व्यक्ति को सब ‘डब्बा’ कहकर बुलाते हैं। वह केबीसी में बारह लाख पचास हजार पर पहुँचकर फोन अ फ्रेंड में मुखिया जी को फोन लगाता है। पर उन्हें उत्तर नहीं मालूम है। तो वह कहता है कि “हम कुछ पूछने के लिए नहीं, बताने के लिए फोन किए हैं मुखिया जी। हमारा नाम डब्बा नहीं अभय कुमार है।” और फिर सही जवाब बताकर पच्चीस लाख जीत लेता है। उसके बेटे की आँखों में खुशी के आँसू हैं। गाँव में सब एक-दूसरे को बधाई दे रहे और फिर अभय के नाम से स्कूल बनता है। बेहद भावुक कर देने वाला यह प्रोमो सबके हृदय को छू गया था।
केबीसी की सफ़लता का राज़ ही यही है कि यह जनता की नब्ज़ पर हाथ रखकर चलता है। साथ ही समाज में चल रहे परिवर्तनों के प्रति सजग भी है। सोशल मीडिया पर कैसे अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है! पल भर में गलत सूचनाएं, वायरल हो लोगों को किस तरह भ्रमित कर रहीं हैं। इसी तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए इस बार की टैगलाइन है, ‘ज्ञान कहीं से मिले, बटोर लीजिए, मगर पहले जरा टटोल लीजिए!‘(14) तो टटोलिए अपने आप को कि कहीं आप भी हर व्हाट्स एप मैसेज को सच्चा मान, समाज में भ्रम फैला उसे दूषित तो नहीं कर रहे? ज्ञान के लिए अच्छी पुस्तकें हैं, उनका अध्ययन कीजिए और बन जाइए करोड़पति। पता है न कि इस बार करोड़ से नीचे गिरे भी, तो तीन-बीस के गड्ढे में नहीं गिरना है बल्कि ‘धन अमृत पड़ाव’ में 75 लाख आपकी झोली में आना तय है।
इस बार का शो देश के प्रति गर्व को भी समर्पित है। प्रारंभ ही शानदार गीत से हुआ। ‘धूल नहीं है धरा हमारी, सदियों का अभिमान है!‘ आज़ादी का अमृत महोत्सव’ चल रहा तो केबीसी भी उसमें क्यों न नये रंग, नया उल्लास भरे!