यह वर्ष सावित्री सिन्हा का जन्म शतब्दी वर्ष है जो नितांत सूनेपन से गुजर रहा है। सावित्री सिन्हा का जन्म 2 फरवरी, 1922 को और मृत्यु 25 अगस्त, 1972 ई० को हुआ था। इन्होने 1946 में इंद्रप्रस्थ कॉलेज में प्राध्यापक का कार्य किया था। 1950 में दिल्लीस विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रीडर और 1968 में प्रोफेसर नियुक्त हुई थीं। इनकी प्रमुख पुस्तकें : ‘मध्ययुगीन हिंदी कवयित्रियाँ’, ‘ब्रजभाषा के कृष्णभक्ति काव्य में अभिव्यंजना-शिल्प’, ‘युगचारण दिनकर’ और ‘तुला और तारे’ ‘अनुसंधान का स्वरूप’, ‘अनुसंधान की प्रक्रिया’, ‘दिनकर’, ‘मुट्टियों में बंद आकाश’, नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित ‘हिंदी साहित्य का बृहद् इतिहास’ : प्रसादोत्तर नाटक खंड (उत्कर्ष काल) और ‘पाश्चात्य काव्यशास्त्र की परंपरा’ (संपादित ग्रंथ) है।
सावित्री सिन्हा का ग्रंथ ‘मध्यकालीन हिंदी कवयित्रियाँ’ अपने आप में अनूठा ग्रंथ है। इसका प्रथम संस्करण जो मुझे प्राप्त है, उसका प्रकाशन वर्ष 1953 ई0 है। इसमें में उल्लेखित कवयित्रियों के परिचय, तिथि को अन्य ग्रंथों से लिया गया है पर उन पर समालोचनात्मक दृष्टि सावित्री जी की निजी है। मध्यकालीन हिंदी कावयित्रियों पर पर्याप्त सामग्री व अनुशीलन सावित्री जी द्वारा किया गया है। मध्यकालीन हिंदी का पूरा इतिहास स्त्री काव्य की दृष्टि से यह पुस्तक प्रस्तुत करती है। सुमन राजे का इतिहास ग्रंथ भी इसी को आधार बना कर रचा गया है। पुस्तक का उद्देश्य प्रस्तुत करने के लिए भूमिका में वह कहती है कि “चिरकाल से मुझे स्त्रियों के योगदान के सम्बन्ध में प्राप्त सामग्री से असंतोष का अनुभव होता रहा है।… साहित्य के इतिहास में इन उपेक्षिताओं को यथा शक्ति प्रकाश में लाने का प्रयास किया गया है।” सावित्री जी की यह विचारधारा हिंदी के स्त्री साहित्य के लिए वरदान साबित हुई और इन्होनें मध्यकालीन हिंदी कवयित्रियों का पूरा इतिहास रच डाला जो आज हमारे पास उन्हें जानने का एकमात्र साधन है। इस ग्रन्थ के बिना हिंदी के स्त्री इतिहास की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हिंदी साहित्य के मध्य काल की स्त्री रचनाकारों के साथ ही समकालीन (तत्कालीन) को प्रकाश में लाने का कार्य सावित्री जी द्वारा किया गया है। इस ग्रन्थ के पूर्व स्त्री रचनाकारों के सन्दर्भ में कुछ विवरण प्राप्त होते थे वह भी कहीं कहीं। स्त्री इतिहास की पहली पुस्तक कहना इसे अतिश्योक्ति नहीं होगा।
इस पुस्तक में सावित्री जी ने स्त्री साहित्य को संगृहीत करने वाली पुस्तकों के उल्लेख के साथ ही हिंदी में पूर्व स्त्री साहित्य पर भी विचार किया है। कवयित्रियों के काव्य प्रवृत्तियों का विभाजन इन्होने आचार्य राम चन्द्र शुक्ल के आधार पर चारण काव्य लेखिकाएँ, राम काव्य लेखिकाएँ, कृष्ण काव्य लेखिकाएँ और श्रृंगार काव्य की लेखिकाएँ शीर्षक से किया है। इन स्त्री रचनाकारों की रचनाओं से गुजरते हुए वह शुक्ल जी की परंपरा का ही वरण करती हैं परन्तु स्त्री रचनाकारों की काव्य प्रवृत्तियों में इन्होने अपनी मौलिकता बरकरार रखी है। स्त्री कवयित्रियों के काव्य के समय तत्कालीन परिस्थितियों के साथ ही बहुत सी स्त्री रचनाकारों की रचनाओं का अनुवाद भी इस कृति को महत्वपूर्ण बनाता है।
मध्यकालीन हिंदी कवयित्रियाँ पुस्तक के बाद मैंने उनका संस्मरण बापू, कुछ स्मृतियाँ पढ़ा जिसमें उन्होंने मैथिलीशरण गुप्त के संस्मरण लिखे है। संस्मरण में वह कहती हैं कि — “मैं धड़कते हृदय और संकोच के साथ खड़ी थी। “साकेत” और “यशोधरा” के कवि मैथिलीशरण जी के दर्शन की कामना से मैं पहली बार उनके यहाँ गयी थी। आश्चर्यजनक सहजता और सादगी की भव्यता से अभिभूत निर्निमेष खड़ी रही गयी। अभिवादन के लिए मेरे हाथ उठे उसके पहले ही बापू हाथ जोड़ कर खड़े हो गये। मेरी समझ में नहीं आया कि इस विनम्र गरिमा को अपनी तुच्छता से कैसे सभाँलू? मैं सहसा ही राम और गाँधी के इन उपासकों के चरणों पर झुक गयी। …. पहली ही बार दद्दा और बापू के स्नेह और वात्सल्यपूर्ण व्यवहार से मुझे इतना प्रोत्साहन मिला कि अपनी तुच्छता को उनके घर के महत् वातावरण के अनुपयुक्त समझते हुए भी मैं उनके दर्शन का लोभ संवरण नहीं कर पाती थी।” (बापू, कुछ स्मृतियां से)
सावित्री जी की “युगचारण दिनकर” कृति हिंदी साहित्य को दिनकर की देन को रेखांकित करती है। इसमें 5 अध्याय में दिनकर की जीवनी, उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर व्यापक चर्चा और विमर्श किया गया है। दिनकर की जीवनी प्रस्तुत करते समय वह दिनकर जी की पत्नी श्यामा की कुछ काव्य पंक्तियों को भी समाहित करते हैं जो उनकी भी काव्यात्मकता को प्रदर्शित करती है —
सुस्थिर हो दो बातें करें यह भी काफी अरमान मुझे
ऐसी क्या कुछ दे रखी चांदी सोने की खान मुझे
दिनकर की राष्ट्रीय काव्य की पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए सावित्री सिन्हा ने यह बताया है कि दिनकर की कविता दो प्रमुख रूप से दिखाई देती है पहली है व्यक्ति परक और दूसरी है समष्टि परक। इसके साथ ही दिनकर की काव्य चेतना के विकास का वर्णन करते हुए वह बताती हैं कि इन्हें 5 सूत्रों में देखा जा सकता है – पहला है राष्ट्रीय चेतना, दूसरा है यथार्थवादी कला चेतना, तीसरा है निवृत्ति मूलक व्यक्ति की चेतना, चौथा है कल्पना प्रधान सौंदर्य चेतना और पांचवा है श्रृंगार चेतना और नारी भावना। उपर्युक्त वर्ग्करण यह बताता है कि सावित्री जी ने दिनकर के काव्य को कितनी गहराई से अध्ययन किया है।
सावित्री सिन्हा की एक और महत्वपूर्ण पुस्तक “ब्रजभाषा के कृष्ण भक्ति काव्य में अभिव्यंजना शिल्प” है। इस पुस्तक में वह अभिव्यंजना के भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण को पहले व्याख्यायित करती हैं, उसके पश्चात सूरदास से पूर्व कृष्ण भक्ति काव्य और ब्रजभाषा की कृष्ण भक्ति काव्य का विहंगम विकास दिखलाती है। कृष्ण भक्ति काव्य के प्रतिपाद्य के विभिन्न रूपों का विश्लेषण करते हुए वह कृष्ण भक्त कवियों की भाषा, उनकी चित्र योजना, प्रस्तुत विधान तथा संगीत एवं छंद विधान पर काव्यशास्त्रीय दृष्टिकोण से विचार व्यक्त करती है।
तुला और तारे कृति का प्रकाशन वर्ष 1966 ई० है। इस कृति में सावित्री जी के लेख संगृहीत हैं। इस संग्रह के दो लेख नयी पीढ़ी: दो एंगल से तथा आधुनिक वेश भूषा: नयी पीढ़ी नामक दो लेख स्वतन्त्र लेख हैं जिसमें नयी पीढ़ी के सन्दर्भ में और आजकल फैशन के नाम पर चल रही आधुनिक वेश भूषा पर स्वतन्त्र टिप्पणी है। वैसे सावित्री जी ने लेख कम ही लिखे है। इस संग्रह में ‘जिया: राष्ट्र कवि की प्रेरणा’ नामक महत्वपूर्ण लेख है जिसमें मैथिलीशरण गुप्त की पत्नी जिया को नायिका बनाया गया है। यह लेख संस्मरण के अधिक निकट है।
लेखन के अतिरिक्त संपादन के द्वारा भी सावत्री जी ने हिंदी साहित्य की सेवा की है। अनुसंधान का स्वरूप इस दृष्टि से श्रेष्ठ रचना है। इस ग्रन्थ में सावित्री जी ने अनुसन्धान की प्रगति पर व्यापक दृष्टी डाला है। इसमें धीरेन्द्र वर्मा, हजारी प्रसाद द्विवेदी,गुलाब राय, विश्वनाथ प्रसाद, डॉ नगेन्द्र जैसे सुधि समालोचकों के लेख संगृहीत हैं।
अपने सृजनात्मक योगदान के लिए सावित्री जी सदैव याद की जानी चाहिए परन्तु हिंदी साहित्य में स्त्री रचनाकारों की जन्म शताब्दी मनाने का प्रचलन नहीं है, नहीं तो अब तक सावित्री जी पर अनेक गोष्ठियां हो चुकी होती। महत्वपूर्ण ग्रन्थ मध्यकालीन कवयित्रियाँ हिंदी के इतिहास की एक मजबूत कड़ी है सिर्फ उसी के आधार पर हम सावित्री जी को ऊँची पंक्ति में खड़ा कर सकते है।
जन्म शताब्दी वर्ष पर उन्हें नमन।