14 जनवरी: मकर संक्रांति और पतंगोत्सव
मकर संक्रांति का मौका हो और पतंगोत्सव की चर्चा न हो तो… यह कैसे संभव हो सकता है। मकर संक्रांति पर भारत में पतंग उड़ाने का रिवाज है। कहीं-कहीं सामूहिक पतंग उत्सव आयोजित किए जाते हैं तो कहीं लोग अपने घरों की छतों पर ही पतंग उड़ाना पसंद करते हैं। आसमान रंग-बिरंगी खूबसूरत पतंगों से भर जाता है। भारत में प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव भी मनाया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहली बार पतंग आई कहां से ?
वैसे तो पतंगों की उत्पत्ति या इतिहास के बारे में अधिकलिखित जानकारी नहीं है। माना जाता है पतंग उड़ाने के सबसे पहले लिखे गए लेख चीनी हान राजवंश के सेनापतिहान हसिन से संबंधित थे। हालांकि, पतंग के आविष्कार को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। यह भी कहते हैं कि सबसे पहले पतंग का आविष्कार चीन में किया गया था और पूर्वी चीन के प्रांत शानडोंग को पतंग का घर कहा जाता है। एक पौराणिक कथा से पता चलता है कि एक चीनी किसान अपनी टोपी को हवा में उड़ने से बचाने के लिए उसे एक रस्सी से बांध कर रखता था और इसी दौरान किसी तरह से पतंगें बना कर उड़ाने की शुरूआत हुई।
रेशम के कपड़े से बनती थी पतंग: एक और मान्यता के अनुसार 5वीं सदी ईसा पूर्व मेंचीनी दार्शनिक मोझी और लू बान (गोंगशु बान) ने पतंग का आविष्कार किया था। तब पतंगों को बनाने के लिए बांस तथा रेशम के कपड़े का इस्तेमाल किया जाता था। प्राचीनऔर मध्ययुगीन चीनी ख्नोतों में वर्णित है कि पतंगों को दूरीमापने, हवा का परीक्षण, सिग्नल भेजने और सैन्य अभियानों में संदेश भेजने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
सबसे पहली चीनी पतंग: फ्लैट यानी चपटी और आयताकार हुआ करती थी। फिर बाद में पतंगों को कई रूपों तथा आकारों में तैयार करने तथा तरह-तरह से सजाया जाने लगा था और कुछ में तो सीपी को भी लगाया जाता था ताकि उड़ते समय संगीत सुनाई दे।
भारत में कब आई पतंग: ज्यादातर लोगों का मानना है कि चीनी यात्री फ़ाहयान और ह्यूनत्सांग पतंग भारत में लाए। यह कागज और बांस के दंचे से बनी होती थी। लगभग सभी पतंगों का आकार एक जैसा ही होता था। आज पतंग उड़ाना भारत में काफी लोकप्रिय है। बड़े और बच्चे समान रूप से इसे पसंद करते हैं। देश के विभिन्न भागों में तो पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता में भी लोग हिस्सा लेते हैं।
भारत के प्रसिद्ध पतंग उत्सव
जयपुर: जयपुर में पतंग उत्सव को बड़े जश्न से मनाया जाता है। यह महोत्सव मकर संक्रांति से शुरू होता है जो आगामी 3 दिन तक चलता है। जयपुर के पोलो ग्राउन्ड में दुनियाभर के सबसे अच्छे पतंगबाज बारी–बारी पतंगों को उड़ाकर अपना कौशल प्रदर्शित करते हैं।
तेलंगाना: तेलंगाना में भी पतंग महोत्सव का भव्यआयोजन किया जाता है। जनवरी में आयोजित इस पतंग महोत्सव में 40 से अधिक देशों के लोग हिस्सा लेते हैं। साथ ही यहां पर खाने-पीने के स्टॉल और प्रदर्शनियां भी लगती हैं। इस आयोजन में एक से बढ़कर एक आकृतियों की पतंग से आसमान अद्भुत दिखने लगता है।
पंजाब: पंजाब में काइट फेस्टिवल बसंत पंचमी के दिन मनाया जाता है और इस दिन सभी लोग एक से बढ़कर एक रंगीन पतंग उड़ाते हैं और पेंच भी लड़ाते हैं।
गुजरात: गुजरात का पतंग उत्सव विश्व प्रसिद्ध है। मकर संक्रांति को इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग घर की छतों पर तरह-तरह के आकार की पतंगें उड़ाते हैं। जनवरी में ही हर साल वहां अंतर्राष्ट्रीय काइट फैस्टिवल का आयोजन भी होता है। इसे देखने के लिए जापान, मलेशिया, सिंगापुर, रूस आदि जगहों से बड़ी संख्या में पर्यटक भी आते हैं।
पुरुष प्रधान देश होने के कारण हमारे त्योहार तक पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है। दीपावली जैसे बड़े पर्व पर साफ-सफाई में महिलाओं की भूमिका जितनी अहम होती है, क्या पटाखे फोड़ने में उन्हें उतनी स्वतंत्रता मिलती है? मगर कहीं-कहीं परंपरागत रूप से आज तक कुछ त्योहारों में महिलाओं का शामिल होना, ऊधम करना, मौज-मस्ती करना पुरुषों की तरह वाजिब है। यहाँ बात हो रही है मकर संक्रांति पर्व की।
गुजरात में महिलाओं को पतंग उ़ड़ाना बचपन से सीख में मिलता है। तिल्ली के लड्डू, मूंगफली की पट्टी बनाने के साथ वे पतंगबाजी में भी निपुण होती हैं। मकर संक्रांति (गुजरात में इसे उत्तरायण पर्व कहा जाता है) के आते ही पूरा परिवार पतंग और डोर लिए घर की छत पर जा पहुँचता है और जब वापस नीचे उतरता है तो रात हो चुकी होती है। हालाँकि रात में भी कैंडल पतंग संक्रांति की रात का संदेश देती तारों के बीच झिलमिलाती है।
गुजरात की हर घर की छत भरी नजर आती है। इसमें अपने पिता, भाई या पति, ससुर, देवर, जेठ के साथ पतंग उड़ाती घर की महिला में भी वही उत्साह देखने को मिलता है, जो कि पुरुषों में। पूरे उल्लास के साथ आसमां पर छेड़खानी देर तक की जाती है। आमतौर पर अपनी सखी-सहेलियों के साथ मौज-मजा, हंसी-ठिठोली करने वाली हर लड़की इस दिन अपनी पतंग से किसी दूसरी पतंग की छेड़खानी करती है। फिर किसी एक सोसायटी की पतंग दूसरी सोसायटी की जयाबेन काट देती है और खुशी के मारे उछल पड़ती है- काट्यो छे और विजेता-सी चमक चेहरे पर आ जाती है।
हमारे समाज में महिलाओं की ऐसी स्वतंत्रता के पर्व चंद ही हैं। मगर बावजूद इसके समय बदलने के साथ पतंगबाजी के इस पर्व में परिवर्तन नहीं आया। इसके प्रति अरुचि नहीं आई। गुजरात का हर घर संक्रांति के पहले से ही डोर और पतंग से भरने लगता है। हां, खरीददारी जरूर भैया या पप्पा करते हैं मगर जब उड़ाने की बारी आती है तो घर की महिलाओं के मांजे और मजे दोनों अलग होते हैं, उन्हें मांगकर कुछ देर पतंग नहीं उड़ानी पड़ती।
यही तो है भारतीय पर्व का स्वरूप। खास बात यह कि इस पूरे पतंगबाजी के दौर में कहीं कोई छींटाकशी या फब्ती नहीं होती। किसी लड़के की पतंग किसी लड़की ने काटी हो या इसके उलट, एक शोर वातावरण में होता है और विजयी पक्ष थोड़ा उल्लासित हो जाता है तो दूसरा पक्ष मुस्कराकर अपनी बची डोर समेटने लग जाता है। उत्तरायण के दिन पूरा परिवार छत पर एकत्र होकर एक संदेश और दे जाता है। वह यह कि आनंद के पल साथ-साथ बिताएं, कुछ समय के लिए ही सही सोसायटी के दूसरे लोगों के साथ थोड़ी गपशप हो जाए, थोड़ी चिल्लाचोट हो। आखिर मौज-मजा का दौर फिर पूरे साल थोड़े ही मिलता है।
पतंगोत्सव के अवसर पर ‘भाभी‘ फिल्म का वह लोकप्रिय गाना याद आ गया –
छूना मत देख अकेली / है साथ में डोर सहेली / है ये बिजली की तार, बड़ी तेज़ है कतार / देगी काट के रख, दिलजली रे / चली-चली रे पतंग…/ यूँ मस्त हवा में लहराए / जैसे उड़न खटोला उड़ा जाए / ले के मन में लगन, जैसे कोई दुल्हन / चली जाए रे सांवरिया की गली रे