डॉ. अम्बेडकर की पुण्यतिथि पर विशेष
आधुनिक भारत का इतिहास गांधी और अम्बेडकर की वैचारिक टकराहटों का इतिहास है। इन वैचारिक टकराहटों के समुद्र मंथन से जो अमृत निकला, वह भारत के संविधान की प्रस्तावना में निहित है। गांधी- अम्बेडकर की इस वैचारिकी ने भारत के लिए एक दस्तूर बनाया और कुछ मूल्यों को चिह्नित किया, उन मूल्यों पर ही आज का भारत टिका है। भारत का भविष्य उन मूल्यों को आगे बढ़ाने के क्रम में ही विकसित होता रहेगा। राष्ट्र निर्माण एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है इसलिए राष्ट्र बनने का जो सपना गांधी व अम्बेडकर ने देखा, वह सपना अभी पूरा नहीं हुआ है वो निरन्तर चल रहा है।
अगर हम संविधान सभा की उस समय होने वाली बहसों को देखने और उस दौर में झांकने की कोशिश करें तो पाएंगे गांधी, अम्बेडकर , नेहरू सहित सभी बड़े कर्णधार इस बात पर सहमत थे कि लिबर्टी, इक्वेलिटी और फ़्रेटर्निटी ये सारी चीजें हैं जो हासिल की जानी है जो हमारे देश के पास पहले से मौजूद नहीं हैं। हमारे समाज में बहुत तरह के भेदभाव हैं, बहुत तरह का ऊंच नीच है और इनको खत्म करने के क्रम में ही भारत राष्ट्र का निर्माण होगा। इन्हीं मूल्यों से हमारी नैतिकता का जन्म होगा और जो इन मूल्यों को हासिल करने के लिए संघर्ष करेगा, वह संवेधानिक नैतिकता का पालन करेगा। इसीलिए जो भी आंदोलन होता है लोगों को गांधी और अम्बेडकर हमेशा याद आते हैं।
गांधी अम्बेडकर की जिस वैचारिक, राजनीतिक और नैतिक टकराहट को हम अपने अपने नफा नुकसान के हिसाब से देखते हैं उस पर नए सिरे से विचार होना चाहिए। गांधी और अम्बेडकर दोनों ही भारत के भविष्य के स्वप्न द्रष्टा थे, दोनों ऐसे व्यक्तित्व थे, जो एक साथ चिंतक, विचारक, और संघर्षशील नेता थे। दोनों के संघर्षों की शुरूआत लगभग एक साथ ही हुई। गांधी नमक सत्याग्रह से विश्व में उभरकर आते हैं, तो अम्बेडकर महाड़ सत्याग्रह से भारतीय राजनीति के धूमकेतु बनकर उभरते हैं।
डॉ. अम्बेडकर अपने पूरे जीवन में बहुत कठोर दिखते हैं। वे अपनी बातों में और अपने तर्क में शायद ही कभी नरम दिखे हों। लेकिन इस कठोरता का मनोवैज्ञानिक पहलू शायद यह भी हो सकता है कि समाज से उन्हें जो मिला उसी को उन्होंने जस का तस वापस किया। इसलिये उनकी कठोरता समझ पाना और परिभाषित करना बहुत आसान है। लेकिन हमें अम्बेडकर पर बात करने से पहले यह भी सोच लेना चाहिए कि हम उनके बारे में कितना जानते हैं? हमारे उच्च वर्गीय समाज में एक खास तरीके और अर्थों में ही डॉ. अम्बेडकर की चर्चा होती है।
इसलिए अम्बेडकर की पुण्यतिथि भी हमारे भारतीय समाज के लिए एक खास मौका है जिसके माध्यम से हम यह समझ सकें कि हमारा समाज अपने दलित वर्ग के प्रति कितना कठोर और बेरहम हो सकता है, कितना अन्यायपूर्ण और अमानवीय हो सकता है। इसकी अगर इसकी कोई जीवंत कहानी आपको समझनी हो तो अम्बेडकर का जीवन पढ़ लेना चाहिए। उनका जीवन अपमान और उपेक्षा का एक जीता जागता दस्तावेज है। इसलिए आज उनकी पुण्यतिथि हमारे लिए एक शिक्षात्मक क्षण हैं जिसके बहाने हम महात्मा गांधी और बाबा साहब अम्बेडकर के बीच होने वाली बहसों के आशय को बहुत ही सहानुभूति, समझ, सम्मान और गहरी सम्वेदना के साथ समझने की कोशिश करें और यह भी महसूस करें कि हजारों सालों से हम लोगों ने कितनी अपमानजनक स्थिति में भारतीय समाज के इस बहुत बड़े हिस्से को लंबे समय तक उपेक्षित रखा।
बाबा साहब अम्बेडकर की पुण्यतिथि पर मैं बड़े अदब से कहना चाहता हूँ कि अम्बेडकर से अगर कोई एक चीज की सीख हमें लेनी चाहिए तो वह यह है कि किसी भी कारण से, किसी भी तर्क से, किसी भी जातीय दम्भ से हम किसी भी मनुष्य का अपमान अपने जीवन में कभी नहीं करेंगे। अगर ये बात हम समझ सके तो अम्बेडकर की जो करुण जीवन गाथा है उसे हम समझ पाएंगे और उसके माध्यम से अपने देश के वर्तमान और भविष्य को संवार सकेंगे।
बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन।