इस दुनिया में ऐसी सैकड़ों… ? नहीं हजारों ? … नहीं लाखों ? … गिनती कीजिए कितनी कहानियां होंगी। अव्वल तो हम गिनती कर ही नहीं पाएंगे। हर क्षेत्र में ऐसी सच्ची कहानियां देखने को मिल जाएंगी। जिन्होंने अपने कड़े संघर्ष , निरन्तर मेहनत और अधक परिश्रम से इस दुनिया की हर लड़ाई जीती हैं। वे लड़ाईयां समाज, दुनिया को दिखाने के भले हो या न हों। लेकिन उनके अपने जब्बे व जुनून की जीत की जरूर होंगीं।
ऐसी ही एक कहानी है एक ऐसे शख्स की जिसने 12 साल की उम्र में एक मैच देखने जाने के दौरान पुलिस वाले से कही। उसका कहना था जब मैं खेलूंगा न रणजी तो तू ही मेरे को सलाम ईच ठोकेगा। और फिर उसने 40 साल की उम्र तक क्रिकेट खेला। बस क्रिकेट ही नहीं खेला बल्कि अपना घर चलाने के लिए वेटर बना। गली, मोहल्ले के टूर्नामेंट में कभी न कभी कुछ न कुछ घरेलू आइटम जीतकर आता रहा।
उन आईटम रूपी पुरस्कारों को बेच बेचकर अपना घर चलाया। बच्चों की फीस भरी, उनके पेट भरे। यह दुनिया कितनी निष्ठुर हो सकती है और आपको पता भी नहीं चलने देती। उसका नमूना इस फ़िल्म में भरपूर देखा जा सकता है। एक उम्दा ऑल राउंडर जिसे हमेशा नकारा गया। एक समय बाद उसकी उम्र को लेकर नकारा जाने लगा। लेकिन उसने हार नहीं मानी।
हिंदी के महान कवि सोहन लाल द्विवेदी की एक कविता है-
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
बस यह फ़िल्म उसी मूल मंत्र को साथ लेकर चलती नजर आती है। प्रवीण तांबे ने अपने क्रिकेट के सफ़र में कभी कोई पेशेवर क्रिकेट नहीं खेली। लेकिन जब वे 41 साल की उम्र में आईपीएल में सबसे उम्रदराज खिलाड़ी के रूप में चुने गए तो सबको मुंह तोड़ जवाब दिया। दुनियां को, अपने विरोधियों को सबको दिखाया अपने खेल से ही कि दुनिया कैसे फ़तह की जाती है।
सिनेमा के इतिहास में भी ऐसी कई कहानियां हमें देखने को गाहे-बगाहे देखने को मिलती रहती है। लेकिन यह फ़िल्म हालिया रिलीज ’83 फ़िल्म’ से भी कहीं ऊपर के लेवल पर ले जाती है। हालांकि फ़िल्म के बीच में एक जगह राहुल द्रविड़ पहली बार ऑनलाइन प्रवीण से बात करते हुए दिखाई देते हैं तो उनके मेकअप के कारण यह फ़िल्म हल्की लगती है। ठीक ऐसे ही एक-दो जगह बैकग्राउंड स्कोर के लगातार रिपीटेशन पर भी यह फ़िल्म उस लेवल में कमी लाती है।
फ़िल्म की तमाम स्टार कास्ट परमब्रत चटर्जी, अंकुर डबास, छाया कदम, अरुण नालावड़े , अंजलि पाटिल , आशीष विद्यार्थी आदि सभी का उम्दा अभिनय इसे दर्शनीय ही नहीं बल्कि लम्बे समय तक याद रखने लायक भी बनाता है। खास करके श्रेयस तलपड़े के जीवन का यह सबसे उम्दा अभिनय कहा जाना चाहिए। वे पूरी फिल्म में बरगद की तरह छाए हुए नजर आते हैं। निर्देशक ‘जयप्रद देसाई’ का निर्देशन विभाग एकदम इस खिलाड़ी की कहानी की तरह ही जुनून से भरा नजर आता है। कपिल और किरण के द्वारा मिलकर लिखी गई प्रवीण तांबे की यह बायोपिक अच्छे सिनेमा की आवाज है। सिनेमैटोग्राफर, कैमरामैन, लोकेशन के लिए रेकी करने वाले का काम, कास्टिंग का काम, मेकअप का काम हर काम बढ़िया स्तर पर हुआ है।
प्रवीण तांबें के बारे में इस फ़िल्म को देखने के बाद जो मालूम चलता है वह ये कि इन्होंने सिर्फ 5 मैच खेलकर के 12 विकेट हासिल किए थे। साल 2013 में आयोजित चैंपियंस लीग T 20 में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज बने थे। इतना ही नहीं साल 2014 में आयोजित आईपीएल मैच में प्रवीण तांबे ने कोलकाता नाइट राइडर्स के खिलाफ हैट्रिक की थी। प्रवीण तांबे 10 ओवर के ही खेल में हैट्रिक लेने वाले पहले खिलाड़ी है।
अब जब एक आदमी जो अपना पहला प्यार क्रिकेट को मानता हो पत्नी को दूसरा , जो सच बोलता हो, जिसके चेहरे से मासूमियत झलकती हो उसके जीवन में उसे परेशान करने वालों की कहानियां ज्यादा न दिखाई जाएं तो यह अखरन भी पैदा करता है। काश की फ़िल्म में उन लोगों के चेहरे और अच्छे से बेनकाब किए जाते जिन्होंने उसे हमेशा पीछे धकेला तो यह फ़िल्म और शानदार हो सकती थी। लेकिन बावजूद इसके भी यह शानदार ही नहीं जानदार और याद की जाने वाली फिल्म है।
ऐसा सिनेमा थियेटरों में रिलीज़ हो तो उसे देखने का आनन्द असीम हो जाता है। लेकिन हॉटस्टार पर आई यह फ़िल्म आपकी आँखों को भरपूर नम करने के अवसर देती है। बहुतेरी जगहों पर आपकी मुठ्ठियाँ भींचने लगती हैं इतनी कि उनमें नमी भी उतर आए। जब ऐसा सिनेमा जो हर पल आपकी आंखों को ही नहीं आपके दिलों को भी हम कर जाए और आपके अंदर लम्बे समय तक अपनी छाप छोड़ जाए तो उन फिल्मों का सदा स्वागत करना चाहिए। उस सिनेमा का हाथ और साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए जो आपको प्रेरित करे, मार्गदर्शन दे और अच्छे तथा कचरा फ़िल्म एवं कहानियों में अंतर बताए। साथ ही ऐसी फिल्में आम फ़िल्म प्रेमियों ही नहीं बल्कि क्रिकेट के सभी दीवानों के लिए भी इस अप्रैल फूल के दिन का उम्दा तोहफ़ा है। इसके साथ ही इस नाम से अनजान लोग भी आज के बाद यह सवाल नहीं करेंगे ‘कौन प्रवीण तांबे?’ अगर करे तो उन्हें यह फ़िल्म सुझा दीजिएगा।