हमारे समय में 11वीं में बोर्ड की परीक्षा के बाद में ही कालेज दाखिला होता था। इसलिये नवीं में ही विज्ञान, वाणिज्य या कला संकाय में से एक पर सोच विचार कर निर्णय करना आवश्यक होता ताकि तीन साल बाद यानि ग्यारहवीं के बोर्ड परीक्षा बाद स्नातक वाली पढ़ाई उसी अनुरूप पूरी की जा सके। सो मेरे प्रधानाध्यापक जी ने आठवीं में गणित वाले अच्छे परिणाम स्वरूप, मेरे बड़े भाई को समझा कर विज्ञान संकाय में मेरे दाखिला का आवेदन ले लिया। दस ग्यारह माह पश्चात एक दिन मेरी विज्ञान वाली पुस्तकों को देख पिताजी के ध्यान में आया कि मैंने तो विज्ञान संकाय ले रखा है, सो बिफर पड़े और कह दिया कि विज्ञान अपने काम का नहीं। वाणिज्य संकाय से पढ़ाई करनी है। ध्यान रखना चार पैसे जब पास में होंगे तभी यह दुनिया तुम्हारी कद्र करेगी। इसलिये चार पैसे कमाने पर ध्यान देना है। उस समय तो मैंने यही समझा कि पढ़ाई के साथ कमाने का समझा रहे हैं।
लेकिन बाद में जब मैंने अपने परिवार के सम्बन्धियों के यहाँ भी बड़े बुजुर्गों को डाँट कर अपने से छोटों को कहते सुना कि चार पैसे कमाने की अक्ल नहीं है। देर तक सोने में मन तो लगता है न? तब चार पैसा वाली बात सुन बड़ा ही आश्चर्य हुआ और यह चार पैसा वाली गुत्थी को समझने की ललक जागी।
इसी बीच रास्ता पार करने के लिये जब सड़क पर खड़ा था तभी बगल में खड़े दो दोस्त आपस में बात कर रहे थे जहाँ एक कह रहा था “सारी जिंदगी निकली जा रही है, कमाने में लेकिन अभी तक चार पैसे नहीं जुटा पाया हूँ”, फिर जवाब में दूसरे ने कहा “जब पढ़ने नहीं दिया हमें, इस ज़माने ने, तो लगा दी पूरी ताकत अपनी, हमने चार पैसा कमाने में”। यह वार्तालाप जब कान मे पड़ा जिसमें फिर चार पैसा सुनने मिला तब अपने घर पर पढ़ाने वाले शिक्षक से इस को समझाने का आग्रह किया।
उन्होंने मुझे बताया कि उपरोक्त सभी में चार पैसा का प्रयोग एक कहावत की तरह हुआ है। फिर उन्होंने कहावत के बारे में बताते हुए समझाया कि कहावतें प्रायः सांकेतिक रूप में होती हैं यानि वे वाक्यांश जो जीवन के दीर्घकाल के अनुभवों को छोटे वाक्य में कह कर आपको समझा देती हैं।
इसके बाद उन्होंने यह भी बताया कि ‘चार’ शब्द से हमारे यहाँ अनेक मुहावरे प्रयोग में लाए जाते हैं जैसे ‘चार पैसे कमाओगे, तब समझ में आयेगा’, ‘चार लोग क्या कहेंगे’, ‘चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात’, ‘चार सौ बीसी करना’ वगैरह वगैरह। उन्होंने यह भी बताया कि अनेक तरह के अर्थों को समझाती अनेक कहावतें हमारी संस्कृति में उपलब्ध है। मैं एक एक कर सभी का मतलब समझा दूंगा लेकिन अभी ‘चार पैसे कमाओगे, तब समझ में आयेगा’ वाले अखाणे [कहावत] के मायने विस्तार से समझ लो। उनके द्वारा समझाया गया मतलब को मैं यहाँ आप सभी पाठकों के साथ साझा कर रहा हूँ जो इस प्रकार है –
पहला पैसा को कुंए में डालना, मतलब अपने परिवार के पेट रूपी कुंए में डालना होता है अर्थात अपना तथा अपने परिवार पत्नी, बच्चों का भरण-पोषण करना, पेट भरने के लिए।
दूसरे पैसे से पिछला कर्ज उतारना, मतलब माता पिता द्वारा किए गए हमारे पालन-पोषण वाला क़र्ज़ उतारने के लिए यानि उनकी सेवा के लिए दूसरा पैसा है।
तीसरे पैसे को आगे क़र्ज़ देना है, मतलब अपनी संतान को पढ़ा लिखा कर योग्य इस क़ाबिल बनाने के लिए ताकि वो भी आगे वृद्धावस्था में आपका ख़्याल रख अपना कर्ज उतार सकें।
चौथा पैसा को संभाल, मतलब आड़े वक्त के लिए जमा करने के लिए होता है। अर्थात शुभ कार्य करने के लिए दान, सन्त सेवा, असहायों की सहायता करने के लिए, यानि निष्काम सेवा करना, क्योंकि हमारे द्वारा किए गये इन्हीं शुभ कर्मों का फल हमें इस जीवन के बाद मिलने वाला है। याद रखें हमारे सनातन धर्मानुसार दान दक्षिणा की तरह और भी शुभ कार्यों जैसे सत्कर्मों का फल हमें अगले जन्म में मिलता है।
अन्त में उपरोक्त वर्णित का निष्कर्ष यही है कि इस कहावत में चार पैसे का मतलब सम्पूर्ण धन से है और उसके चार हिस्सों को जिंदगी में कैसे उपयोग करना है या उनका जिंदगी में क्या महत्व है, कैसे खर्च करें, किस किस मद में खच करें, को समझ लेना है। ध्यान रखें यदि आपने तीन हिस्से किए तो ऊपर समझाये गये सारे कार्य सुचारु रूप से पूरे नहीं कर पायेंगे और चार हिस्से के बाद पाँचवे हिस्से की ज़रूरत ही नहीं है।
अतः उपरोक्त वर्णित कार्यों को सही ढंग से पूर्ण करने के लिये हमें हमारे धन को चार हिस्सों में विभाजित करना आवश्यक होता है। इस तरह ऊपर उल्लिखित तथ्यों को ही संक्षिप्त में लोकोक्ति के रूप में ‘चार पैसे कमाओगे, तब समझ में आयेगा।‘ कह कर सामने वाले को चार पैसों का गणित समझा दिया जाता है।