11 जनवरी
कहते हैं राजनीति का दिल से कोई लेना देना नहीं है। वायदे करके मुकरना और निहित स्वार्थ के वशीभूत दूसरों के प्रति उदासीन व असंवेदनशील रहना राजनीतिज्ञों की फ़ितरत कही जाती है। खादी के स्टार्च लगे कड़क परिधान और दंभ से उतनी ही कड़क उनकी मुखभंगिमा। पर मेरा अनुभव इन मान्यताओं से बिल्कुल विपरीत रहा है। आशा करती हूँ कि मेरा यह संस्मरण संभवत: आपकी भी धारणा बदल सकने में सफल होगा।
11 जनवरी को आदरणीय लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथि पर वे सदा स्मरण हो आते हैं। प्रसंग हमारी शादी के रिसेप्शन का है। बाबूजी आदरणीय पद्मश्री यशपाल जी जैन से दिल्ली व देश की गणमान्य विभूतियों के घनिष्ठ संबंध रहे। इसीलिए कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में हुए इस रिसेप्शन में बहुत संख्या में नेता, कलाकार, रंगकर्मी आदि उपस्थित रहे। लाल बहादुर शास्त्री जी उस समय गृहमंत्री थे। निमंत्रण पाकर आने की उन्होंने पक्की स्वीकृति दी थी।
समारोह लगभग समाप्त होने को था, पर शास्त्री जी की प्रतीक्षा तो करनी ही थी। तभी अचानक उन्होंने प्रवेश किया। बाबूजी से बोले,”सब काम ख़त्म करके आ रहा हूँ। अब आराम से बैठूँगा।” चाय आई तो अपने हाथ से केटली से प्याले में डाल कर सबसे पहले मेरे पति को पकड़ाई। बोले, “हमारी भारतीय संस्कृति और परंपराओं में दामाद का स्थान बहुत ऊँचा माना गया है।” फिर अपने हाथ से प्लेट में नाश्ता लगा कर भी दिया। सब किंकर्तव्यविमूढ़ थे कि यह हो क्या रहा है! कहाँ तो उनकी आवभगत होनी थी। उनकी सरलता और संबंधों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने सबका मन मोह लिया।
एक फ़ोटोग्राफ़र यह अद्भुत दृ्श्य देख धड़ाधड़ फ़ोटो लिए जा रहा था। जब उसने उनका एक क्लोज़ अप लेने का प्रयास किया तो उसे रोक कर उन्होंने एक बहुत मज़ेदार क़िस्सा सुनाया। वे बोले, “मेरी फ़ोटो कभी अच्छी नहीं आती जब यह बात मैंने एक फ़ोटोग्राफ़र को कही तो उसने कहा कि आप फ़िक्र न करें। जब मैं रेडी बोलूँ तो आप बस मेरे कानों की ओर देखें। जैसे ही उसने ‘रेडी’ कहा और मैंने उसके कानों की तरफ़ देखा तो वह बिना छुए अपने कानों को हिला रहा था। जिन्हें हिलते हुए देख कर मेरी जोर से हँसी फूट गई। उसने झट से फ़ोटो खींच ली। वह चित्र मेरे जीवन का सबसे अधिक ख़ूबसूरत स्वाभाविक चित्र है।”
इसके बाद उन्होंने अपने और भी अंतरंग क़िस्से सुनाए। परिवार के बुजुर्ग के नाते बहुत आशीर्वाद दिया। एक घंटे रुकने के बाद वे रवाना हुए।
क्या कोई कल्पना कर सकता है कि केबिनेट स्तर का मंत्री इतनी आत्मीयता से किसी अनजान परिवार में इस तरह घुलमिल जाएगा!
हमारी शादी के इस रिसेप्शन को उन्होंने अविस्मरणीय बना दिया। मैं इस समय अमेरिका में हूँ अत: रिसेप्शन के वे चित्र भारत में होने के कारण साझा नहीं कर पा रही । यदि मैं कहूँ कि राजनीति के दलदल में खिला यह कमल भले ही हम न देख पा रहे हों पर उसकी जो छवि हमारे मानस पटल पर अंकित है वह कभी ओझल नहीं हो सकती।
श्रद्धेय लाल बहादुर शास्त्री जी की स्मृतियों को नमन व विनम्र श्रद्धांजलि।