
क्या आपने भी ऐसा महसूस किया है कि हम जिस समाज में रह रहे हैं वह अब पहले से बहुत अधिक चिड़चिड़ा, ईर्ष्यालु, आत्मकेंद्रित और बदलाखोर प्रवृत्ति का होता जा रहा है? जहाँ किसी भी बात पर कोई आहत हो सकता है या क्रोधित होकर दूसरे पक्ष को हानि पहुँचा सकता है। लगता है जैसे प्रत्येक मनुष्य के भीतर एक ज्वालामुखी धधक रहा है जो बस फूट जाने को तैयार है। इसका परिणाम क्या और कैसा होगा, इसे सोचने-समझने का समय किसी के पास नहीं! लचर न्याय-तंत्र और ढीली प्रशासनिक व्यवस्था ने हिंसा, क्रूर हत्याओं, अपराध, बेईमानी और भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को आत्मग्लानि के भाव से मुक्त कर उनमें एक सहज गौरव भर दिया है कि 'दम हो तो रोककर दिखाओ!' जाहिर है कि इनके आगे सब बेदम हैं।
एक वर्ग जो नकारात्मक सोच और हिंसक घटनाओं पर आपत्...
प्रीति अज्ञात