‘विज्ञान के चमत्कार’ एक ऐसा विषय है जिस पर प्रायः सभी ने अपने विद्यालयीन जीवन में निबंध अवश्य लिखा होगा। बिजली के बल्ब के अविष्कार से लेकर अलेक्सा तक की यात्रा अचरज़ से भर देती है। वह समय जहाँ चिट्ठियों की प्रतीक्षा भी जीवन का सुख था और मन के तार से दो व्यक्ति जुड़ जाया करते थे, वहाँ एक दिन फोन की घंटी बजने लगी। फोन घरों में आया तो कई बार हँसी में यह भी कह दिया जाने लगा कि सामने वाले का चेहरा भी दिख जाए तो कितना अच्छा हो! लेकिन फिर स्वयं ही अपने इस ख्याल के सिर पर चपत मार खिलखिला उठते कि “ऐसा भी कभी हो सकता है भला! विज्ञान बहुत कुछ कर सकता है पर ये थोड़े ही न संभव है!” लेकिन तकनीक का कमाल देखिए कि तब जो कल्पनातीत था, आज वहाँ व्हाट्स एप है, वीडियो कॉल के तमाम माध्यम हैं। हम अब कृत्रिम बौद्धिक...
प्रीति अज्ञात