कोरोना और वसुधैव: कुटुम्बकम् की प्रासंगिकता
कोरोना और वसुधैव: कुटुम्बकम् की प्रासंगिकता
इधर बारिश ने किसानों की वर्ष भर की मेहनत पर पानी फेर दिया तो उधर चीन के रास्तों से दबे पाँव आकर कोरोना ने विश्वभर को गहन चिंता में डाल दिया। ऐसे में होली का रंग तो फ़ीका पड़ना ही था। रही-सही क़सर मौसम की अप्रत्याशित मार ने पूरी कर दी। ये सब चेतावनी हैं आने वाले समय की, जिसने मनुष्य को उसके कर्मों और प्रकृति से छेड़छाड़ की सजा देना प्रारम्भ कर दिया है। अंत सबका तय है, मृत्यु किसी-न-किसी माध्यम से एक दिन होनी ही है। दुर्भाग्यपूर्ण परन्तु सच तो यही है कि परस्पर वैमनस्यता, बदले और धर्म की राजनीति, अपराध एवं दंगे-फ़साद से भरी इस दुनिया में मृत्यु से अधिक सुलभ कोई शय नहीं! जीवन का संघर्ष तो जन्म से ही प्रार...
प्रीति अज्ञात