
कुछ घटनाएं दिल को झकझोर देती हैं, और कुछ अंतरात्मा को। हाल ही में ऐसी एक खबर सामने आई कि “तीन साल की एक बच्ची ने संथारा लिया।”
यह पढ़ते ही जो पहला प्रश्न मन में उठता है वह यह कि संथारा उसने लिया या उसे दिया गया?
क्योंकि तीन वर्ष की आयु में जब बच्चा ठीक से बोलना भी नहीं जानता, अपनी पसंद-नापसंद भी नहीं कह पाता, तब वह यह कैसे तय कर सकता है कि वह अब अन्न-जल त्यागकर मृत्यु वरण कर लेगा?
क्या तीन वर्ष का बच्चा अपना स्कूल स्वयं चुनता है? क्या वह अपना खाना-पीना स्वयं करता है? क्या अपनी मनमर्जी से कहीं भी जा पाता है?
उसे कानून या नियमों की जानकारी तो दूर, इन शब्दों का अर्थ भी पता होता है?
क्या वह इतनी समझ रखता है कि जीवन त्यागने का समय आ गया है?
यदि नहीं, तो फिर उसने संथारा कैसे लिया और यह संथ...