
सच्चा साहित्य हमारे हृदय को कठोर नहीं, अपितु मुलायम, संवेदनशील बनाता है। चिंतन-मनन के पर्याप्त अवसर देता है। यह सकारात्मक सोच लिए समाज से नैतिकता, सभ्यता और शिष्टता का आग्रह करता है। विश्वबंधुत्व की भावना के साथ समाज, देश और दुनिया को स्नेह का पाठ पढ़ा सामाजिक सद्भाव और समृद्धि की राह प्रशस्त करता है।
साहित्य समाज की विद्रूपता, रूढ़िवादी परंपरा, कुंठा और अन्याय के प्रति अपना आक्रोश व्यक्त करता है और उनके विरुद्ध मशाल प्रज्ज्वलित कर उठ खड़े होने में पथ प्रदर्शक का कार्य भी करता है। साहित्य वही, जिसमें समाज का हित निहित हो! प्रतिरोध के उद्वेलित स्वर हों पर भाषा परिमार्जित हो! जो साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना को नई दृष्टि प्रदान करे। साहित्य की सार्थकता समाज-सुधार की दिशा में क़दम बढ़ान...
प्रीति अज्ञात