मई माह के प्रारंभ होते-होते तापमान 40 को पार कर चुका है। भीषण गर्मी से तो लोग त्रस्त हैं ही, उस पर बिजली में कटौती के समाचारों ने रही-सही क़सर भी पूरी कर दी है। एक समय था, जब बिजली चले जाने पर लोग घर के बाहर निकल किसी वृक्ष के नीचे या लीपे हुए आँगन में आकर बैठ जाते थे, हाथ का पंखा झलते थे। प्राकृतिक हवा और प्रकाश से भी काम चल जाता था। लेकिन अब हम विद्युत पर इस सीमा तक निर्भर हो चुके हैं कि इसके बिना दिनचर्या सुचारु रूप से चल ही नहीं सकती! पूरी व्यवस्था ही ठप्प हो जानी है। अभी तो पानी के लिए भी परिस्थितियाँ गंभीर होंगी। आज नहीं तो कल, हम मनुष्यों को यह भीषण मंज़र देखना ही होगा! परंतु तब हमारे पास स्वयं को बचाने और जीवित रखने का क्या कुछ उपाय शेष होगा? इसका उत्तर जानने, समझने में किसी की रुचि...
प्रीति अज्ञात