सुबह अलार्म बज गया है, आँखें खोलें या थोड़ी देर और सो लें? चाय-बिस्कुट सामने है, पहले एक चुस्की ले लें या बिस्कुट कुतर लें? अखबार का पहला पन्ना खोल, पहले हेडलाइन देख लें या फोटो निहार लें?... असंख्य चुनावों को रोज जीते हैं हम। इन्हीं पर खुश होते, इन्हीं पर पछताते हैं हम। कभी चुनाव को लपकते, और कभी चुनाव से कतराते हम। अपने चुनावों पर आँखें फाड़े विचार करते, और उन्हीं को नज़रअंदाज़ करते हम। चुनाव ज़िंदगी है, उसको जीने का सलीक़ा सीखते हम।
होता है, न! जब रात की नीम बेहोशी के बाद सुबह आँख खुलती है और एक नया सवेरा दस्तक़ देता है। उसी दौरान हम सहज भाव से बिस्तर पर पड़े हुए ही अपने लिए यह चुनाव कर लेते हैं कि आज क्या-क्या करना है। यदि हमारी योजना सही है तो उस दिन को एक सुंदर दिन बनने से कोई नहीं रो...
प्रीति अज्ञात