संपादकीय
थोड़ी प्रसन्नता एवं बहुत-सी खोई हुई संवेदनाओं के साथ, नववर्ष में प्रवेश करता भारत
नववर्ष का आगमन किसी सुबह की तरह होता है जो हर रोज़ नई लगती है. कहने को इसमें कुछ भी नया नहीं होता, दिन के वही पहर हैं और समय की सुई भी प्रतिदिन एक ही दिशा में घूमती है. लेकिन फिर भी आँख खुलते ही एक नए उत्साह का संचार होता है, रात के सपने हृदय में कुलबुलाते हैं और उन्हें पूरा करने की चाह से दिन प्रारम्भ होता है. नववर्ष से भी नई उमंगों के साथ, नई चाहतें, नई उम्मीदें जुड़ ही जाती हैं. यद्यपि 2020 में कोरोना की तांडव लीला से त्रस्त जनमानस के लिए प्रसन्नता की बस एक ही बात हो सकती थी कि कोरोना से मुक्ति मिले!
2021 की देहरी पर पग रखते ही यह शुभ समाचार मिला कि न केवल कोविड-19 से स्वयं को सुरक्षित रखने क...
प्रीति अज्ञात