कब लौटेंगे बीते हुए दिन!
ऐसा बहुत ही कम बार होता है कि किसी को हौसला देते समय अपना ही विश्वास डगमगा रहा हो. किसी को ख़ुश रहने की दुआ देते समय अपनी ही आवाज भर्रा रही हो. दिल करता है कि उसे गले लगाकर कहें, घबराओ मत, ये समय भी बीत जाएगा, सब अच्छा होगा पर भीतर ही भीतर कहीं कुछ टूट रहा होता है. हँसो भी तो लगता है जैसे पाप किया हो कोई! इस महामारी ने हमें एक ऐसे ही मंज़र पर लाकर खड़ा कर दिया है. आँखें मूँदकर सोचती हूँ कि कोरोना वायरस के हमारी दुनिया में प्रवेश करने से पहले कैसा था हमारा जीवन? तो पुराना ज्यादा कुछ याद नहीं आता!
लगता है टीवी, रेडियो की आवाज़ें और अखबार में छपी ख़बरें दिमाग में ठूँस-ठूँसकर भर दी गई हों जैसे. जो दिखता है उसमें घबराए हुए लोग हैं. कोई डर रहा है कि न जाने अब कभी अपने परि...
प्रीति अज्ञात