लॉकडाउन से उभरते प्रश्न
लॉकडाउन में एक माह बिताने के बाद कई महत्पूर्ण प्रश्न सामने आ खड़े हुए हैं और मैं यह सोचने पर विवश हो गई हूँ कि इस समय से हमने क्या सीखा? हमने जीवन को जिस तरह जीना सत्य मान लिया था, क्या वह सही था? उतना ही था? ऐसे कई प्रश्न इस समय ह्रदय को उद्वेलित कर रहे हैं.
पहली बात जो मस्तिष्क को झिंझोड़ रही है वह ये कि क्या अब हम पहले से बेहतर मनुष्य हो गए हैं? तो जवाब मिलता है कि किसी के भी व्यक्तित्व में दृष्टमान परिवर्तन इतनी आसानी से नहीं होते! एक ही झटके में सारे बुरे लोग अच्छे नहीं हो सकते और न ही सबमें सामूहिक मानवता जाग सकती है. ईर्ष्या-द्वेष, घृणा की राजनीति और समाज में दुर्भावना फैलाने वाले लोगों में भी सेंसेक्स की तरह भीषण गिरावट नहीं आई है लेकिन ज...
प्रीति अज्ञात