उत्तर की तलाश सभी को है पर प्रश्न करने का जोख़िम कोई नहीं उठाना चाहता!
समस्त राजनैतिक दल जब देशवासियों से परस्पर मिलजुलकर रहने का आह्वान करते हैं तो 'उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे' कहावत चरितार्थ होती नज़र आती है। इनकी भाषा, व्यवहार और पद की गरिमा को भूल किये गए तंज का सीधा प्रसारण प्रत्येक चैनल करता ही आया है। इसलिए इन्हें हमें समझाने की आवश्यकता तो तब है जब ये स्वयं यह सीख जाएं। यूँ भी नब्बे प्रतिशत भारतीय तो भाईचारे से ही जीना जानते हैं और जी भी रहे हैं पर क्या हमने कभी इन दलों को, किसी भी मुद्दे पर एक साथ खड़े देखा है? बचे दस प्रतिशत, इनकी खरीदी हुई भीड़ की नाचती कठपुतलियाँ हैं और भीड़ का मस्तिष्क नहीं होता यह सर्वविदित सत्य है। अधिकांश नेतागण भ्रष्टाचार से लड़ने, देश को गरीबी से मुक्त करने, र...
प्रीति अज्ञात