आख़िर हम कर ही क्या सकते हैं?
गुरुग्राम के प्रतिष्ठित विद्यालय में एक मासूम बच्चे प्रद्युम्न की जघन्य हत्या ने हम सबको भीतर तक सिहरा दिया है। माता-पिता की हर ख़ुशी उनके बच्चे से जुड़ी होती है बल्कि यूँ कहें कि उनका सम्पूर्ण जीवन ही बच्चों के नाम होता है। सोचिए, क्या बीती होगी उस पिता पर जो दस मिनट पूर्व ही अपने जिगर के टुकड़े का हाथ थामे उसे कक्षा तक छोड़कर आया था। उस माँ की मानसिक दशा क्या होगी, जो सुई की हल्की-सी नोक भी लग जाने पर अपने लाडले को सीने से लगा घंटों दुलराती थी। आज उसी आँखों के तारे की कटी गर्दन.....! आह, यह कौन-सा युग है, जहाँ मृत्यु इतनी सस्ती और जीना वीभत्स हो चला है! बच्चे, जो किसी दुआ की तरह हमारी उम्मीदों की झोली में आ गिरते हैं, अपनी भोली मुस्कान से दुनिया का हर तम हर...
प्रीति अज्ञात