हम चुप क्यों हैं?
सोशल साइट्स पर दृष्टिपात किया जाए तो पचास प्रतिशत लोग, अपने धर्म का बड़प्पन और दूसरे पर चोट करते ही दिखाई देते हैं। इनकी ज़हर उगलती पोस्ट मस्तिष्क को बार-बार इस प्रश्न से मथती है कि आख़िर 'धर्म निरपेक्ष राष्ट्र' की परिभाषा क्या है और यदि लिखी हुई परिभाषाएँ सत्य हैं तो इन तमाम लोगों को 'राष्ट्रद्रोही' क्यों नहीं माना जाता? किस अधिकार से ये अपने ही देश के नागरिकों को अपमानित करते आए हैं? वो भी उस धर्म के लिए जो इन्हें जन्म के साथ स्वत: ही मिल गया और जिसे पाने में इनका कोई व्यक्तिगत योगदान या प्रयास नहीं रहा। इनका कर्त्तव्य बनता है कि ये अपने धर्म को मलीन करने की बजाय सम्पूर्ण देश की सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण करें.....वो सभ्यता जो पाशविकता के कुटिल हाथों दिन-प्रतिदिन आह...
प्रीति अज्ञात