
संघर्ष..........अभी जारी है!
साहित्य की समृद्धि में महिलाओं की क्या भूमिका है?
इस विषय पर जब भी मनन करती हूँ तो यही अनुभूति होती है कि महिला साहित्यकारों की बात तो बाद का किस्सा है। साहित्य की समृद्धि के लिए तो महिलाओं की इस दुनिया में मौजूदगी ही काफी है। सोचिये, अगर स्त्री न होती तो साहित्य कैसे जन्मता? प्रेम कविताएँ कैसे रची जातीं? किसकी विरह वेदना का मान होता? कौन कविताओं का श्रृंगार बनता और कैसे माँ का जय-जय गान होता? कैसे घर-परिवार और रिश्तों की कहानियाँ जन्म लेतीं? किसके नख-शिख का वर्णन होता? चाँद से किसकी तुलना होती और किसकी ज़ुल्फ़ों-सी घटा होती? नदियाँ बन कौन बहता? किसके नैनों में सावन होता? कौन फूलों की पंखुरी-सा खिल जाता, कौन लाजवन्ती-सा लजाता? बताइये, आख़िर फिर साहित्य में क्...
प्रीति अज्ञात