मन की आशाएं बदलाव को आधार देती हैं। उम्मीदें आगे बढ़ने का हौसला बंधाती हैं। जीवन को बेहतर बनाने का ज़ज़्बा बेहतरी की बुनियाद बनता है। इसी जज़्बे और उम्मीदों की पोटली थामे देश की आधी आबादी बीते कई वर्षों से नई दुनिया रच रही है। यही वजह है कि भारत में आधी आबादी के मन जीवन में आए बदलावों की कर्णधार महिलाएँ ही रहीं हैं। हर उलझन, हर बंधन से लड़ते हुए आज स्त्रियाँ अपनी मुकम्मल पहचान बनाने में कामयाब भी हो रही हैं। नई दिशाएं चुन, नई गति और विवेक के साथ कदम बढ़ा रही हैं। यकीनन जद्दोजहद आज भी जारी है पर उम्मीदें भी जगमगा रही हैं। महिलाएं आज भी संघर्षरत हैं, लेकिन यह कहा जा सकता है कि उनकी हिम्मत और जिजीविषा से बहुत कुछ बदला है और बहुत कुछ बदलेगा।
असल में देखा जाए तो भारत में ही नहीं वैश्विक स्तर पर भी महिलाओं के मन-जीवन से जुड़े पहलुओं पर अनगिनत बदलाव आए हैं। इस बदलाव की सारथी भी स्वयं महिलाएँ ही बनी हैं। यह याद रखना भी आवश्यक है कि महिलाएं आज और आने वाले कल की बेहतरी के लिए बरसों से संघर्षरत हैं। अधिकार पाने से लेकर परिवेश को बलदने तक, उनकी यह लड़ाई रेखांकित करने योग्य है। स्वयंसिद्धा बन नई दुनिया रचने में महिलाएँ ना कोविड आपदा के दौर में पीछे रहीं और न ही बीते बरसों की डिजिटल होती दुनिया में तकनीक से कदमताल करने में। आधी आबादी की यह जिजीविषा ही लैंगिक समानता और आने वाले कल की बेहतरी की उम्मीद को पोषित करती है। आशाओं की इस नींव की मजबूती जरूरी भी है उनसे जुड़ी लगभग सभी समस्याओं की जड़ लैंगिक असमानता की सोच ही है। स्त्री होने के नाते जो भेदभाव उनके हिस्से आता है, वह घर-आँगन से लेकर कामकाजी दुनिया तक, हर जगह परेशानी का सबब बनता है।
विश्व बैंक की महिला कारोबार और कानून-2021 रिपोर्ट के मुताबिक़ हमारे देश में कुछ मामलों में महिलाओं को पूर्ण अधिकार मिला है पर समान वेतन, मातृत्व, उद्यमिता, संपत्ति और पेंशन जैसे पहलुओं पर लैंगिक भेदभाव बरकरार है। वैश्विक स्तर पर महिलाओं को पर्याप्त आर्थिक स्वतंत्रता देने तथा लैंगिक भेदभाव की खाई पाटने का संदेश लिए इस रिपोर्ट में शामिल 190 देशों की सूची में भारत 123वें स्थान पर रहा । व्यापक रूप से देखा जाय तो महिलाओं को दोयम दर्जे पर रखने के विचार और व्यवहार से स्त्रियों की जंग सदा से ही जारी है। इस आपदा ने यह मुश्किल थोड़ी और बढ़ा दी है।
गौर करने वाली बात है कि भेदभाव भरी अनगिनत उलझनों के बावजूद महिलाएँ सकारात्मक और नेतृत्वकारी भूमिका के निर्वहन में आगे रहती हैं। कोरोना महामारी का मुकाबला करने वाले फ्रंट लाइन वर्कर्स के रूप में भी अहम भूमिका निभाई । स्वास्थ्यकर्मी, इन्नोवेटर्स, कम्युनिटी ऑर्गनाइज़र्स और यहाँ तक कि कई देशों में प्रभावशाली नेताओं के रूप में भी महिलाओं में इस आपदा का डटकर मुकाबला किया। संकट के समय संवेदनशीलता दिखाई। देखा जाये तो इस संकट ने न केवल महिलाओं की अहम भागीदारी को रेखांकित किया बल्कि उनके द्वारा उठाई जाने वाली जिम्मेदारियों के बोझ से जुड़ी विषमता को भी सामने ला दिया। ऐसे में इस आपदा का दौर बीतने के बाद महिलाओं की पूर्ण और प्रभावी हिस्सेदारी, सार्वजनिक जीवन में फैसले लेने का हक़, लैंगिक समानता और उनके खिलाफ होने वाली हर तरह की हिंसा का खात्मा हुए बिना असमानता और सशक्तीकरण के विचार को जमीनी हकीकत नहीं बनाया जा सकता। निश्चित रूप से आज की महिलाओं की भूमिका सिर्फ़ घर-गृहस्थी संभालने तक ही सीमित नहीं रही है। एक रेखांकित करने वाला मुकाम हासिल कर वे हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। इसी का नतीजा है कि महिलाओं के विचार व्यवहार में ही नहीं कार्य क्षेत्र में भी बदलाव आया है। इस बदलाव ने कई नए आयामों को समाज के सामने पेश किया है।
दरअसल, भावी बदलावों के लिए आज की कोशिशें ही बुनियाद बनती हैं। समझना मुश्किल नहीं कि स्त्रियों के जीवन में आज दिख रहे सशक्त बदलावों की पृष्ठभूमि बीते कल के प्रयासों का परिणाम हैं। निश्चित रूप से पहले की तुलना में अब महिलाएँ कहीं ज्यादा जागरूक हैं। उनमें शिक्षा का स्तर बढ़ने से उनके सोचने-समझने और निर्णय की क्षमता में बड़ा बदलाव आया है। साथ ही यह हौसला भी पैदा हुआ है कि उनपर लगाये जा रहे बेवजह के बंधनों को लेकर वे सवाल कर सकें। कहा जाता है कि सशक्तीकरण की पहली सीढ़ी जागरूकता ही है। अपने हक़ के लिए सचेत और सजग ही सशक्त होना है। देखने में आ रहा है कि आज की स्त्री अपनी प्रगतिशील सोच के बल पर समाज में मौजूद रूढ़ियों की जकड़न तोड़ते हुए आगे बढ़ रही है। खुद अपना वह खुला आसमान हासिल कर रही है, जिसकी हमेशा से हक़दार रही है। इतना ही नहीं बीते कुछ बरसों में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन आधी आबादी ने अपने जीवन से जुड़े निर्णय लेने की स्वतंत्रता भी हासिल की है। ज़िंदगी की राहें खुद अपने बल पर चुनने का साहस दिखाया है। हर क्षेत्र में दखल रखने वाली महिलाएँ ना तो अब केवल रसोई तक सिमटी हैं और ना ही अनचाही निर्भरता की बंदिशों में बंधी हैं। आर्थिक आत्मनिर्भरता ने उनके जीवन के हर पहलू को परिष्कृत किया है। सुखद यह भी है कि आज की स्त्री की यह सशक्त और समर्थ छवि अब सामाजिक-पारिवारिक स्वीकार्यता भी पा रही है। आम घरों में बेटियां उच्च शिक्षा हासिल कर रही हैं। घर से दूर जाकर नौकरी करना और अपना करियर बनाना अब किसी को हैरान-परेशान नहीं करता। यह उनकी सकारात्मक भूमिका के चलते आए सार्थक बदलाव की बयार का का ही असर है कि महिलाएं अब अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर भी सचेत हैं। ज़िंदगी को जिंदादिली से जीने की सोच रखती हैं। स्त्रियाँ अब समझने लगी हैं कि अनगिनत जिम्मेदारियों और रिश्तों के बीच उसका खुद अपने आप से भी एक रिश्ता है। उनका सजग व्यक्तित्व इस बात को जानने-जीने लगा है कि रिश्तों को निभाने के मायने खुद को खो देने के लिए नहीं बल्कि एक नई ऊर्जा के साथ अपने आप को पाने के लिए हैं। सोच की यह बदली हुई दिशा ही सशक्त महिलाओं के आँकड़े बढ़ा रही हैं। विचारों का यह बदलाव जिंदगी से जुड़े दूसरे पहलुओं को भी गहराई से प्रभावित कर रहा है। अच्छी सेहत और वित्तीय आत्मनिर्भरता आधी आबादी को सशक्त बनाने और अपना स्वतंत्र अस्तित्व गढ़ने के सबसे अहम् पहलू हैं।
यकीनन, हालिया बरसों में महिलाओं के जीवन से जुड़े कई पहलुओं पर आया यह परिवर्तन बेहतर भविष्य की आशा जगाता है। जो कि कई मोर्चों पर सकारात्मक सोच की बुनियाद भी बन रहा है । शिक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी मोर्चे पर आधी आबादी के हालात सुधरे हैं। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर इस साल समानता की सोच से जुड़े विचार को बल देना, आने वाले कल में बदलाव की उम्मीदों को और पुख्ता करने जैसा ही है। उनके भावी जीवन में बेहतरी की राह सुझाने वाला है। सुरक्षा, सम्मान और पहचान पाने के साथ ही खुलकर जीने का हक़, हर इन्सान के बुनियादी अधिकार हैं। महिलाएं भी अपने ऐसे हक़ मुखरता से मांग रही हैं। वर्तमान में की जा रहीं मांगें भविष्य की उजास भरी जिन्दगी से गहराई से जुडी हैं। हालांकि घर हो या बाहर, हर जगह महिलाओं पर बंदिशें लगाने व उन्हें कमजोर साबित करने वालों की आज भी कमी नहीं है पर अब महिलाओं के हौसले ऐसी बातों पर हावी हैं। भारत के दूर-दराज के गाँव-कस्बों से लेकर महानगरों तक, सब जगह स्त्रियाँ अपने होने का पुख्ता सबूत दे रहीं हैं। उनकी चमकती आँखे नई तरह के सपने देख रही हैं । जिनमें बेहतरी की आशाएं सजी हैं । सुखद है कि स्त्रीत्व और अस्तित्व को सहेजे महिलाओं का आगे बढ़ना जारी है। हालाँकि नई तरह की चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं पर भारतीय महिलाएँ अपने आपको हर परिस्थिति में साबित करने का माद्दा रखती हैं। व्यापक रूप से देखा जाय तो भविष्य की चुनौतियाँ हों या भावी योजनाएं, देश की आधी आबादी को साथ लेकर चलने की सोच राष्ट्र के विकास और स्त्री जीवन के हर पहलू की बेहतरी, दोनों ही मोर्चों पर सकारात्मक बदलाव ला सकती है।