बिहार सबसे गरीब राज्य – नीति आयोग
लेकिन बात केवल बिहार की ही नहीं, पूरे देश की है।
कक्षा 8 (1982) में स्कूल की वार्षिक परीक्षा में एक प्रश्न आया था कि ‘खनिज संपदाओं की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता के बाद भी बिहार एक गरीब राज्य क्यों है?’ विवेचना करें।
उस समय मैंने क्या उत्तर लिखा था, यह तो अब बिल्कुल भी स्मरण में नहीं है पर आज 4 दशक के बाद भी वही प्रश्न मुंह बाये सामने खड़ा है कि बिहार सबसे गरीब राज्य है। ध्यान रहे कि स्वतंत्रता मिलने के बाद जब योजना आयोग का गठन हुआ था और उसने जब राज्यों की सतही स्थिति पर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी उस वक्त भी बिहार को बीमारू राज्यों की सूची में शामिल किया गया था। दुख होता है कि स्वतंत्रता के 74 वर्षों के बाद भी स्थिति जस की तस है और आज उस पर लिखने की आवश्यकता पड़ रही है। यह किसी भी राज्य के लिए बिल्कुल ही शर्मनाक स्थिति है। इन आर्थिक स्थितियों से इतर न जाने किस आधार पर राज्य सरकार के मुखिया (बिहार) / अधिकारीगण / आर्थिक विशेषज्ञ रोज दावा करते हैं कि बिहार का प्रति व्यक्ति आय और जीडीपी देश के देश के प्रति व्यक्ति आय और जीडीपी से अधिक है।
देश के नीति आयोग ने अपना पहला बहुआयामी गरीबी सूचकांक (मल्टी डायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स- एमपीआई ) हाल ही में जारी कर दिया है। इस नेशनल इंडेक्स के अनुसार बिहार देश का सबसे गरीब राज्य है। इस राज्य में 51.91 प्रतिशत आबादी गरीब है। इसके बाद क्रमशः सबसे गरीब राज्यों में झारखंड है। इस राज्य की 42.16 प्रतिशत आबादी गरीब है। इसके बाद नंबर आता है उत्तर प्रदेश का, जिसकी 37.79 प्रतिशत आबादी गरीब है। देश के सबसे गरीब राज्यों में चौथे नंबर पर मध्यप्रदेश है। इस राज्य की 36.65 प्रतिशत आबादी गरीब पायी गई है। गरीबी के मामले में सबसे अच्छी स्थिति केरल राज्य की है। यहाँ केवल 0.71 प्रतिशत आबादी ही गरीब है।
नीति आयोग द्वारा जारी सूचकांक में 700 से अधिक जिलों के जिला स्तरीय गरीबी का, तीन क्षेत्रों स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर से जुड़े 12 सूचकांकों के आधार पर आकलन किया गया है। इसमें पोषण, शिशु-किशोर मृत्यु दर, प्रसव पूर्व स्वास्थ्य सुविधा की उपलब्धता, पढ़ाई के वर्ष, सकल में उपस्थिति, सफाई, पेयजल, बिजली, घर, संपत्ति, बैंक खाते जैसे सूचकांक शामिल किए गए हैं। देश के सभी 27 राज्यों और 9 केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे गरीब राज्यों का क्रम के क्रमशः इस प्रकार है- बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, मेघालय, असम, छत्तीसगढ़, राजस्थान, ओडिशा, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मणिपुर, उत्तराखंड, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, सिक्किम, गोवा और केरल।
केंद्र शासित प्रदेशों का क्रम इस प्रकार है– दादरा नगर हवेली, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, दमन दीव, चंडीगढ़, दिल्ली, अंडमान निकोबार, लक्षद्वीप और पुडुचेरी।
यही नहीं बच्चों में कुपोषण की स्थिति अफ्रीकी देशों से भी बदतर है। औसत कुपोषण आज भी 32 फीसदी के करीब है, लेकिन भारत में ही दक्षिण क्षेत्र ऐसा है, जहां गरीबी नहीं है अथवा नगण्य है। देश का एक बड़ा हिस्सा गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा में जीने को विवश है। हमारा भुखमरी सूचकांक भी बेहद दयनीय है। कुल 116 देशों में भारत का स्थान 101वां है। रपट में यह भी खुलासा किया गया है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य योजना के मुताबिक, देश में करीब 60 फीसदी महिलाएं और बच्चे कुपोषित हैँ। यह स्थिति तब है, जब 30 फीसदी लोकसभा सांसद इन्हीं राज्यों से आते रहे हैं। ये देश के सबसे बड़े राज्यों में शामिल हैं, लेकिन आज भी ये राज्य ‘बीमारू’ की श्रेणी में मौजूद हैं। यह किसी निजी, पेशेवर अथवा अंतरराष्ट्रीय एजेंसी के सर्वेक्षण के निष्कर्ष नहीं हैं। यह भारत सरकार के नीति आयोग की हालिया रपट के सारांश हैं। बिहार की करीब 52 फीसदी आबादी गरीब है।
नीति आयोग द्वारा जारी गरीबी के सूचकांक जारी होने के बाद देश के किसी भी राष्ट्रीय और प्रादेशिक दलों में से एक ने भी इस पर कोई भी चिंता और प्रतिक्रिया जारी नहीं की है। छोटी- छोटी बातों पर तुरंत अपनी प्रतिक्रिया देने वाले राजनीतिक दलों के किसी भी बड़बोले प्रवक्ताओं ने भी इस पर एक शब्द भी नहीं बोला है। अनर्गल विषयों पर घंटों और कभी-कभी दिन भर चीखने-चिल्लाने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एंकरों की चुप्पी आश्चर्यजनक तो है हो, उससे ज्यादा चिंताजनक भी है। जरा-जरा सी बातों को बड़ा- चढ़ा कर सोशल मीडिया पर वायरल कर देने वाले भी चुप हैं। कुछ ही अखबारों ने इसे केवल एक खबर देने के बाद चुप्पी साध ली है। किसी ने इस गंभीर विषय पर संपादकीय लिखने की भी जहमत नहीं उठाई। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया ने इस बड़े खबर को लगभग नजरअंदाज (अपवाद को छोड़कर) ही कर दिया। इसे हम क्या कहेंगे? इसके क्या मतलब निकाले जाएं? क्या इस देश में अब गरीबी कोई मुद्दा नहीं रहा? गरीबों की किसी को अब कोई चिंता नहीं है?
कभी-कभी जब कभी किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को गरीबों की याद आती भी है तो उनके लिए कुछ योजनाएँ लांच कर दी जाती है, बस। उन योजनाओं की निरंतर समीक्षा नहीं होती और न ही जरूरत के हिसाब से उनमें सुधार किए जाते हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि गरीबी कम तो हुई, किन्तु खत्म नहीं हुईं। क्या कारण है कि देश की आजादी के 74 साल बीत जाने के बाद भी इस देश के कर्ता-धर्ता गरीबी को खत्म नहीं कर पाए हैं? आज भी लाखों लोगों को दो समय का खाना भी क्यों नसीब नहीं होता है? लाखों लोग (37 लाख) आज भी भूखे पेट सोने के लिए मजबूर क्यों हैं?
बेशक सरकार उज्जवला, शौचालय, जन-धन आदि अनेक योजनाओं की गिनती कराती रहे, लेकिन देश विपन्न ही रहा है। अभी इस सर्वेक्षण में कोरोना-काल की मुश्किलें, बेरोजगारी, भुखमरी आदि शामिल नहीं है। अलबत्ता आंकड़े आते रहे हैं कि करीब 23 करोड़ लोग गरीबी-रेखा की श्रेणी में शामिल हुए हैं अभी तो भारत सरकार बीते काफी वक्त से 80 करोड़ लोगों में निःशुल्क खाद्यान्न बांट रही है और इस योजना को मार्च, 2022 तक बढ़ा दिया गया है। जरा कल्पना कीजिए कि यदि यह योजना नहीं होती, तो इस देश की भुखमरी के क्या हालात होते?
देश की आजादी के 75 साल बाद जब हम “अमृत महोत्सव’ मना रहे हैं, तो ये शर्मनाक, कलंकित और भयावह आंकड़े हमें झकझोरने के लिए काफी हैं। ये स्थितियां हमारे गाल पर तमाचा हैं, क्योंकि हम 5 ट्रिेलियन डॉलर, अर्थात् 350 लाख करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था बनने का सपना पाल बैठे हैं. देश में 35 करोड़ से अधिक लोग गरीबी-रेखा के नीचे हैं.यह क्या देश के राजनीतिक दलों, संवैधानिक पदों पर बैठे , गणमान्य नागरिकों, सामाजिक और स्वयंसेवी संस्थाओं एवं संगठनों के लिए चिंताजनक तथा शर्म की बात नहीं है? इन सब को इस अत्यंत मानवीय संवेदना से संबंधित विषय पर गंभीर चिंतन, मनन और दीर्घकालिक ठोस योजना बनाकर उस पर सख्त कार्यवाही नहीं करना चाहिए? जरा आप भी इस विषय पर सोचिए………..
भारत एक जन कल्याणकारी देश रहा है। देश में करोड़ों लोगों को ‘आयुष्मान भारत’ योजना के तहत स्वास्थ्य और इलाज की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं, कई राज्यों में तो स्वास्थ्य सुविधाएं बिल्कुल निःशुल्क हैं, उनके बावजूद देश का बड़ा हिस्सा बीमार और कुपोषित है। इन अभावों की तरफ किसी ने स्थायी तौर पर ध्यान नहीं दिया। सभी सरकारों और विधायकों, सांसदों के लिए आलीशान आवास हैं, चमचमाती कारें हैं, मोटे वेतन-भत्ते हैं, लेकिन लोकशाही में ही आम आदमी गरीब है।