पता है कि आज हमारा मौसम विभाग मौसम के बारे में जो सटीक पूर्वानुमान लगा पाता है उसके पीछे एक महिला अन्ना मणि का बहुत बड़ा योगदान है। आज से लगभग 105 वर्ष पहले जन्मी अन्ना मणि, भारत की शुरुआती महिला वैज्ञानिकों में से एक थीं। उन्होंने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में क्लर्क के पद से शुरूआत की लेकिन डिप्टी डायरेक्टर जनरल के पद तक पहुंची। अन्ना ने भारत में मौसम विज्ञान से जुड़े तमाम ऐसे छोटे-बड़े उपकरणों के विकास में योगदान दिया जिनकी वजह से आज हम सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम हैं। उस समय में जब दुनिया में वैकल्पिक ऊर्जा पर कोई खास काम नहीं हो रहा था मणि ने भारत में सौर और पवन ऊर्जा पर काम किया। अक्सर इस बात पर अफसोस जताया जाता है कि अन्ना मणि को देश में जितनी ख्याति मिलनी चाहिए थी उतनी मिली नहीं।
उन दिनों में जब महिलाएं वैज्ञानिक क्षेत्र में बमुश्किल दिखाई देती थीं, केरल के त्रावणकोर की अन्ना मोदायिल मणि एक प्रतिष्ठित मौसम विज्ञानी और भौतिक विज्ञानी थीं, जिन्होंने अपने अद्भुत आविष्कारों से दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया था। अन्य उपलब्धियों के अलावा, उन्होंने लगभग 100 मौसम संबंधी उपकरणों को मानकीकृत करके मौसम का आकलन करने के लिए नए तरीके ईजाद किए और सौर विकिरण को मापने के लिए स्टेशनों की एक श्रृंखला स्थापित की।
उन्होंने ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के रूप में सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग करने के लिए अनुसंधान का भी नेतृत्व किया और 700 से अधिक साइटों पर अपने उपकरण स्थापित किए। अपने उपकरण ‘ओजोनसॉन्डे’ का उपयोग करके ओजोन स्तर माप पर उनका अध्ययन भी आश्चर्यजनक रूप से उल्लेखनीय है।
मणि का जन्म 23 अगस्त, 1918 को केरल के त्रावणकोर में एक संपन्न क्रिश्चियन परिवार में हुआ था। अन्ना मणि के पिता सिविल इंजीनियर होने के साथ ही इलायची के बड़े बागानों के मालिक थे। वह एक विशिष्ट उच्च-वर्गीय पेशेवर परिवार थी जहाँ बेटियों को शादी के लिए शिक्षित किया जाता था और बेटों को उच्च-स्तरीय रोजगार के लिए तैयार किया जाता था। लेकिन अन्ना मणि अलग थी। उनकी सभी बहनों की शादी किशोरावस्था में ही हो गई थी, लेकिन उन्होंने उच्च अध्ययन करने की अपनी इच्छा जारी रखी।
मणि को बचपन से ही पढ़ने और सीखने में अत्यधिक रुचि दिखाई। उन्होंने अपने प्रारंभिक वर्ष साहित्य में डूबे हुए बिताए, और जब वह आठ साल की थी, तब तक उन्होंने मलयालम सार्वजनिक पुस्तकालय में लगभग हर किताब पढ़ ली थी। जब वह 12 वर्ष की थी, तब तक वह अंग्रेजी में लिखी गई प्रत्येक पुस्तक को पढ़ना समाप्त कर चुकी थी। उनका जीवन किताबों की दुनिया से प्रभावित और निर्मित था, जिसने उन्हें नई अवधारणाओं से परिचित कराया और उनमें सामाजिक न्याय की एक मजबूत भावना पैदा की। उन्होंने अपने आठवें जन्मदिन के लिए अपने परिवार के पारंपरिक हीरे की बाली उपहार को ठुकरा दिया और इसके बजाय एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के एक सेट का अनुरोध किया। मणि नृत्य करना चाहती थी, लेकिन उन्होंने भौतिकी को चुना क्योंकि उसे यह विषय दिलचस्प लगा। उन्होंने 1939 में चेन्नई (पूर्व में मद्रास) के पचैयप्पा कॉलेज से भौतिकी और रसायन विज्ञान में बीएससी की उपाधि प्राप्त की। बचपन से ही उनकी रुचि विज्ञान में थी।
उन्होंने मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से बीएससी ‘ऑनर्स’ की डिग्री ली। इसके बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज गईं, जहां प्रोफेसर सीवी रमन के गाइडेंस में पढ़ाई की। 1940 में भारतीय विज्ञान संस्था बेंगलुरु में रिसर्च करने के लिए उन्हें स्कालरशिप भी प्राप्त हुआ। उसी दौरान उन्होंने पूर्व से सर सी वी रमन के अधीन काम करते हुए रूबी और हीरे के ऑप्टिकल गुणों पर रिसर्च किया है। उन्हें 1940 में बैंगलोर में भारतीय विज्ञान संस्थान द्वारा एक शोध फैलोशिप से सम्मानित किया गया था।
हीरे और माणिक की चमक पर उनकी विस्तृत थीसिस के बावजूद, मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा अनुचित लिंग पूर्वाग्रहों ने उन्हें पीएचडी की डिग्री हासिल करने से रोक दिया। निडर होकर, उन्होंने अपनी छात्रवृत्ति बचत का उपयोग उच्च भौतिकी अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए लंदन के इंपीरियल कॉलेज में जाने का फैसला किया।
भौतिक में उच्च शिक्षा मणि 1945 में लंदन के इंपीरियल कॉलेज में पहुँच गईं। अपने रिसर्च पेपर की बदौलत अन्ना को इंग्लैंड में इंटर्नशिप के लिए स्कॉलरशिप मिल गई। 1945 में वो लंदन चली गईं और वहां के इम्पीरियल कॉलेज में मीटरोलॉजिकल इंस्ट्रूमेंटेशन के फील्ड की पढ़ाई शुरू कर दी और बाद में मौसम विज्ञान उपकरण में विशेषज्ञता हासिल की साथ ही उन्होंने 5 रिसर्च पेपर भी प्रकाशित किए।
मणि 1948 में नए स्वतंत्र भारत में लौटे और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, पुणे में शून्य से विकिरण उपकरण डिजाइन किया। मौसम संबंधी उपकरणों की स्थापना की प्रभारी बनी। मणि को थुम्बा रॉकेट लॉन्चिंग सुविधा में एक मौसम विज्ञान वेधशाला और एक उपकरण टॉवर स्थापित करने का श्रेय भी दिया जाता है।
उन्होंने सौर विकिरण और पवन शक्ति के लिए भारतीय मौसम माप उपकरणों की सटीकता पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के रूप में आज की सौर और पवन ऊर्जा के लिए एक ठोस आधार तैयार हुआ। उन्होंने एक कार्यशाला की स्थापना की जहाँ उन्होंने सौर ऊर्जा और हवा की गति की निगरानी के लिए उपकरण बनाए। बाद में, अन्ना मणि ने संयुक्त राष्ट्र विश्व मौसम विज्ञान संगठन में विभिन्न महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई और उन्हें भारत मौसम विज्ञान विभाग के उप महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया गया।
अन्ना मणि ने वैज्ञानिकों की एक टीम का भी नेतृत्व किया है, जिन्होंने 1967 की शुरुआत में ओजोन के स्तर को मापने के लिए एक गुब्बारा-जनित उपकरण, भारतीय ओजोनसॉन्डे विकसित किया था। एकत्रित डेटा वातावरण में खतरनाक परिवर्तनों की पहचान करने के लिए एक वास्तविक खजाना बन गया।
मणि के मौसम विभाग से जुड़ने के उपरांत काम करने के प्रति लगन को देखते हुए उन्हें 1969 में, मणि को उप महानिदेशक नियुक्त किया गया और उन्हें दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया। इसके अलावा उन्होंने बेंगलुरु में एक कार्यशाला कभी स्थापना किया था। इसी कार्यशाला से अन्नपूर्णा मणि ने और सौर ऊर्जा को मापने का यंत्र बनाने के संबंधित कार्य करती थी। 1976 में वो मौसम विज्ञान विभाग के डिप्टी डायरेक्टर पद से रिटायर हुईं। इसके बाद उन्होंने बेंगलुरु में 3 साल तक रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में पढ़ाया। उन्होंने 1975 में मिस्र में WMO सलाहकार के रूप में काम किया। 1976 में, उन्होंने भारतीय मौसम विभाग के उप महानिदेशक के रूप में अपना पद छोड़ दिया।
मौसम के पहलुओं को मापने में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने में उनका योगदान स्वतंत्र भारत के लिए उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता है। उन्होंने सौर विकिरण और पवन शक्ति के लिए भारतीय मौसम माप उपकरणों की सटीकता पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के रूप में आज की सौर और पवन ऊर्जा के लिए एक ठोस आधार तैयार हुआ।
अन्ना मणि ने वैज्ञानिकों की एक टीम का भी नेतृत्व किया है, जिन्होंने 1967 की शुरुआत में ओजोन के स्तर को मापने के लिए एक गुब्बारा-जनित उपकरण, भारतीय ओजोनसॉन्डे विकसित किया था। एकत्रित डेटा वातावरण में खतरनाक परिवर्तनों की पहचान करने के लिए एक वास्तविक खजाना बन गया।
1987 में मणि को INSA केआर रामनाथन मेडल से सम्मानित किया गया।वह भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, अमेरिकी मौसम विज्ञान सोसायटी, अंतर्राष्ट्रीय सौर ऊर्जा सोसायटी, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान और वायुमंडलीय भौतिकी संघ सहित कई वैज्ञानिक संगठनों से जुड़ी थीं।
गांधीजी के सिद्धांतों और वाइकोम सत्याग्रह के आदर्शों से प्रेरित होकर, मणि ने विद्रोह के प्रति अपनी एकजुटता व्यक्त करने के लिए केवल खादी वस्त्र पहनना शुरू कर दिया। अन्ना मणि ने कभी शादी नहीं की और अपने काम के प्रति पूरी तरह समर्पित थीं। अन्ना मणि ने अपनी जिंदगी में विज्ञान के अलावा किसी को आने नहीं दिया। उन्होंने ताउम्र शादी नहीं की। 1996 में उन्हें स्ट्रोक आया, जिसके बाद वो पब्लिक लाइफ से दूर हो गईं। 16 अगस्त, 2001 को 82 साल की उम्र में तिरुवनंतपुरम में उनका निधन हो गया।