सर्वप्रथम तो यह स्पष्ट कर दूँ कि भले ही ‘The Elephant Whisperers’ को लघु वृत्तचित्र की श्रेणी में ऑस्कर पुरस्कार मिला हो लेकिन इसे किसी उबाऊ वृत्तचित्र समझने की भूल बिल्कुल भी नहीं कीजिएगा। यह अपने-आप में परिपूर्ण एक ऐसी उत्कृष्ट लघु फिल्म है जो आपको अंत तक एकटक बाँधे रखती है और मन-मस्तिष्क में सदा के लिए ठहर जाती है। गिलहरी, उल्लू, गिरगिट के चेहरों से प्रारंभ हुई इस फ़िल्म का प्रथम दृश्य ही मंत्रमुग्ध कर देता है और दर्शक को समझ आ जाता है कि वह अपने जीवन के श्रेष्ठतम 41 मिनट का साक्षी होने वाला है।
यह तमिलनाडु के कट्टुनायकन (kings of the forest) समुदाय के दो लोगों की कहानी है। मानवीय संवेदनाएं क्या और कैसी होती हैं, हम मनुष्यों का प्रकृति से रिश्ता कैसा होना चाहिए, पर्यावरण के प्रति प्रेम का सही मायनों में अर्थ क्या है इन सभी मूल्यों को गहराई से समझाने में ‘The Elephant Whisperers’ पूर्ण रूप से सफ़ल सिद्ध हुई है। न तो इसमें भारी-भरकम संवाद या नाच गाना हैं और न ही कोई अतिनाटकीयता से भरा वातावरण! बल्कि अपने हर दृश्य में यह बड़ी सहजता से आपको प्रकृति की गोद में लिए आगे बढ़ती है। छायांकन तो अद्भुत है ही, साथ ही इसमें इतने सुंदर पल हैं जो आपके हृदय को भीतर तक नम कर जाते हैं।
यूँ इस वृत्तचित्र का मूल विषय तो रघु (हाथी) ही है लेकिन भावनात्मक स्तर पर यह मनुष्य और उससे जुड़ी संवेदनाओं की भी उतनी ही दक्षता से बात करती है। यह बताती है कि अनेक कठिनाइयों से किसी को पाल-पोसकर बड़ा करना क्या होता है और उसके बाद उसे किसी और के हाथों सौंप देने में दिल पर क्या गुजरती है। कितने भावुक होते हैं वे पल, जब आप उस अपने को दूर से निहारते हैं। यह रघु और अमु की दोस्ती और उससे पहले की उनकी मनःस्थिति को भी सटीक तरीके से उभारती है। मनुष्यों के घर में जब दूसरा बच्चा आता है तो पहला जिस असमंजसता और असुरक्षा से गुजरता है उसकी एक झलक भी यहाँ देखने को मिलती है। लेकिन उसके जाने के बाद की व्याकुलता ..उफ़! जी करता है कि उठकर अमु के आँसू पोंछ दें और उसे रघु से मिला दें। रघु के दूसरे सहायक के पास जाने का दृश्य भी अत्यंत मार्मिक बन पड़ा है। जैसे कोई किसी बच्चे को जबरन बोर्डिंग भेज रहा हो। कहने को हाथी के लालन-पालन से जुड़ी कथा पर भाव जैसे हर पल हम पर बीत रही हो।
एक बच्चे को पालते हुए कैसे दो मन परस्पर बंध जाते हैं और वह बच्चा भी हाथी का हो तो ये बात कई लोगों को अचंभित कर सकती है! लेकिन यह ऐसे ही प्यारे परिवार की कहानी है। उन लोगों की कहानी जिन्हें प्रकृति प्रेम का सही अर्थ पता है, जो जानते हैं कि जंगलों से उतना ही लेना है जितनी जीवन की आवश्यकता है। जब हम प्रकृति से जुड़ी हर बात से प्रेम करते हैं तो बदले में प्रेम ही मिलता है। यह बात जंगल के जानवर भी हमसे बेहतर जानते हैं। वे निरर्थक ही किसी को हानि नहीं पहुँचाते। उन्हें प्रेमिल स्पर्श समझ आता है और वे इसका उत्तर भी कई गुना बढ़ाकर देते हैं।
सार यह कि ‘The Elephant Whisperers’ वर्तमान समय के उन सभी प्रासंगिक विषयों पर सशक्त रूप से बात करती है जिसमें प्रकृति और मनुष्य के मध्य सामंजस्य स्थापित हो, उनका सह-अस्तित्व हो, जीव-जंतुओं के अधिकार के प्रति संवेदनाएं उत्पन्न हों, पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़े और ज्यादा से ज्यादा पा लेने की मनुष्य की महत्वाकांक्षा पर विराम लगे। प्रकृति है तो जीवन है। इस कठिन लेकिन बेहद आवश्यक फ़िल्म को बनाने के लिए कार्तिकी गोंज़ाल्विस को बधाई के साथ-साथ ढेर सारा स्नेह। समाज को इसी चेतना भरी फिल्मों की दरकार है। वृत्तचित्र से जुड़ी ऊब भरी धारणाओं को ध्वस्त करने का भी शुक्रिया, कार्तिकी!