पारसनाथ पहाडी झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित पहाड़ियों की एक श्रृंखला है। उच्चतम चोटी 1350 मीटर है। यह जैन के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल केंद्र में से एक है। वे इसे सम्मेद शिखर कहते हैं। 23 वें तीर्थंकर के नाम पर पहाड़ी का नाम पारसनाथ रखा गया है। झारखंड का हिमालय माने जाने वाले इस स्थान पर जैनियों का पवित्र तीर्थ सम्मेद शिखर अर्थात ‘समता काशिखर’ स्थापित है। इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष की प्राप्ति की। यहां पर 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ( 877 ई.पूर्व से 777 ईसा पूर्व ) ने भी निर्वाण प्राप्त किया था।
सम्मेद शिखर झारखंड के गिरिडीह जिले में मधुबन क्षेत्र में स्थित है। यह जैन धर्म के दिगंबर मत का प्रमुख तीर्थ है। इसे पारसनाथ पर्वत भी कहा जाता है। जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, सृष्टि के आरंभ से ही सम्मेदशिखर और अयोध्या, इन दो प्रमुख तीर्थों का अस्तित्व रहा है। जैन धर्मशास्त्रों की मानें तो इस तीर्थ स्थल की एक बार यात्रा करने से मनुष्य मृत्यु के बाद पशु योनि नहीं पाता और न ही उसे नर्क की यातना को सहना पड़ता है। इसलिए इन्हें अमर तीर्थ की संज्ञा दी गई है।
जैन धर्म का अर्थ है- ‘जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म’। जिन अर्थात् जिन्होंने राग-द्वेष को जीत लिया है। जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक आत्मा स्वयं से, परमात्मा से साक्षात्कार कर सकती है और जन्म-मृत्यु के अंतहीन सिलसिले से मुक्ति पा सकती है। जैन दर्शन में कहा गया है कि इस जगत को न किसी ने बनाया है न ही कभी इस की शुरुआत हुई है और न ही कभी इसका अंत होगा। यह जगत अनादि-अनंत है। कोई ईश्वर या परमात्मा नहीं है जो इस जगत को चलाता हो। यह जगत स्वयं संचालित है। यह अपने नियम से चलता है। यह जगत जिन मूल-तत्वों से बना है, उन तत्वों में ही अनंत शक्ति, गुण और स्वभाव है जो स्वतः काम कर रहे हैं।
जैन दर्शन में व्यक्ति पूजा का कोई स्थान नहीं है। जैन दर्शन में कहीं नहीं कहा गया कि भगवान महावीर या किसी अन्य तीर्थंकर, ऋषि अथवा मुनि की उपासना से कोई भौतिक लाभ हो सकेगा या कोई सांसारिक इच्छा की पूर्ति हो सकेगी। जैन धर्म में सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए कोई मनौती मनाने वाली उपासना नहीं है। केवल आत्मा ही आराध्य है। आत्म-शुद्धि द्वारा ज्ञान, तप, समता और साधना से आत्मा पर विजय प्राप्त कर परमात्मा बनने का उपदेश है।
जैन धर्म का मुख्य मंत्र ‘नवकार महामंत्र’ किसी व्यक्ति विशेष, परमात्मा या तीर्थंकर (महावीर स्वामी इत्यादि)को नमस्कार नहीं करता है। उसमें तो संसार के सभी धर्मों के महापुरुषों, सिद्धों एवं अरिहंतो को वंदना की गई है, उनके गुणों की और पद की उपासना की गई है।
सम्मेद शिखर में मुख्य रूप से तीन धार्मिक स्थलों के दर्शन होते हैं, जो कि 13 पंथी कोठी, मझरी कोठी और 20 पंथी कोठी कहलाते हैं। आपको बता दें कि 13 पंथी कोठी में भगवान पदमनाथ की भव्य और विशाल प्रतिमाएं शोभायमान और विराजमान हैं। इसके साथ ही इस कोठी के मुख्य मंदिर में 13 वीथियां हैं, यह सभी स्वतंत्र जैन मंदिर हैं और इनके ऊपर सुंदर और आकर्षक शिखर बने हुए हैं। इन मंदिरों में कुल मिलाकर 379 मूर्तियां स्थापित हैं, यहां अलग-अलग अवसरों पर भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति की अति सुंदर रथ यात्राएं भी निकलती हैं।
मझरी कोठी में भी कई मंदिर और सुंदर मूर्तियां हैं। वहीं 20 पंथी कोठी सबसे प्राचीन मानी जाती है, जिसके मुख्य मंदिर में 8 जिनालय बने हुए हैं, जिनके भव्य और आकर्षक शिखर देखते ही बनते हैं। वहीं इस कोठी केसामने एक विशाल मंदिर स्थापित हैं, जिसमें जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों की मूर्तियां विराजमान हैं।
सम्मेद शिखरजी में जगह-जगह तीर्थंकरों और जैन मुनियों के स्मृति चिह्न भी बने हुए हैं, जिन्हें टोंक कहा जाताहै। निर्वाण स्थानों पर बने स्मृति चिह्न और मंदिरों के दर्शन के लिए काफी संख्या में जैन धर्म के लोग आते हैं।
इस पवित्र तीर्थस्थल पार्श्वनाथ पर्वत की सबसे खास बात यह है कि यहां शेर जैसे हिंसक प्राणी भी स्वतंत्र होकर घूमते हैं, और किसी को कोई हानि नहीं पहुंचाते हैं, जो कि इस तीर्थराज की महिमा का प्रत्य़क्ष प्रमाण है। जैन धर्म के लोगों के लिए सम्मेद शिखरजी तीर्थयात्रा का भी विशेष महत्व है।
संयुक्त जैन समाज का प्रमुख तीर्थ स्थल सम्मेद शिखर पर्वत इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। जैन समुदाय से जुड़े लोग इन दिनों देश में जगह-जगह आंदोलन कर रहे हैं। झारखंड में श्री सम्मेद शिखरजी को लेकर सरकारों के फैसले के खिलाफ अलग-अलग तरह से विरोध प्रदर्शन हो रहा है। कई जैन मुनियों ने आमरण अनशन शुरू कर दिया है। इसमें जैन मुनि सुज्ञेयसागर महाराज ने मंगलवार को प्राण भी त्याग दिया। बुधवार को एक और जैन मुनि ने अपने प्राण त्याग दिये।
पूरे विवाद में सियासत भी शुरू हो गई है। सोशल मीडिया पर लोग साफ लिख रहे हैं कि ये मामला केवल 45 लाख जैनियों का नहीं है, बल्कि 110 करोड़ सनातनियों का है। विवाद यह है कि जैन समुदाय के इस पवित्र धार्मिक स्थल को झारखंड ने सरकार फरवरी 2019 में पर्यटन स्थल घोषित कर दिया। इसके साथ ही देवघर में बैजनाथ धाम और दुमका को बासुकीनाथ धाम को भी इस सूची में शामिल किया गया। उसी साल अगस्त में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पारसनाथ पहाड़ी को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया और कहा कि इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने की जबरदस्त क्षमता है। सरकार के इसी फैसले का विरोध हो रहा है। जैन समुदाय से जुड़े लोगों का कहना है कि ये आस्था का केंद्र है, कोई पर्यटन स्थल नहीं।इसे पर्यटन स्थल घोषित करने पर लोग यहां मांस-मदिरा का सेवन करेंगे। इसके चलते इस पवित्र धार्मिक स्थल की पवित्रता खंडित होगी, इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा लोग शत्रुंजय पर्वत पर भगवान आदिनाथ की चरण पादुकाओं को खंडित करने को लेकर भी जबरदस्त गुस्से में हैं।
पर्यटन स्थल एक घूमने-फिरने का क्षेत्र होता है जो किसी धर्म विशेष से सम्बन्धित नहीं होता है। पर्यटन स्थलपर लोग अपने पसंद के कपड़े पहनते हैं अपनी पसंद का खाना खाते हैं और विभिन्न मनोरंजन कार्यक्रमों मेंभाग लेते हैं। यहाँ पर्यटक अधिक से अधिक मनोरंजन करना और घूमना पसंद करते हैं। ऐसे क्षेत्रों में लोग गर्मियों या ठंड की छुट्टियों में बच्चों को घुमाने या अपने काम के बोझ से खुद को हल्का करने के लिए जाते हैं।
जबकि तीर्थ स्थल किसी धर्म या समुदाय विशेष के पवित्र स्थल होते हैं इन क्षेत्रों के अपने कुछ नियम व शर्ते होती हैं। इन क्षेत्रों में आने के लिए कुछ विशेष नियम और कानून होते हैं जैसे किसी क्षेत्र में परिधान विशेष को पहन कर जाने की ही अनुमति होती है। तीर्थ स्थलों में प्राय: मांस मदिरा का सेवन वर्जित होता है और लोग यहाँ मानसिक शांति, धार्मिक कारणों और पवित्रता के लिए आते हैं। धार्मिक स्थलों पर वैसे तो लोग साल भर आते हैं लेकिन कुछ विशेष पर्वो और त्योहारों में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या अधिक होती है।
मामला केवल इतना ही नहीं है। असल बात यह है कि सम्मेद शिखरजी को लेकर झारखंड सरकार चाहती है कि इसे पर्यटन स्थल घोषित कर दिया जाये,ताकि राज्य में पर्यटन बढ़े जिससे राज्य को मोटा राजस्व प्राप्त होगा।इस मामले में प्रमाण सागर महाराज का कहना है कि सरकार ने नोटिफिकेशन जरूर किया, लेकिन इस तरह की कोई भी कार्यवाही सरकार की तरफ से नहीं की गई, जो नोटिफिकेशन सरकार ने किया,इसकी कोई जानकारी जैन समाज को नहीं दी गई। किसी भी प्रदेश के ओर राष्ट्रीय अखबार में उसका कोई विज्ञापन नहीं निकाला, तो जैन समाज को इसका पता कैसे चलेगा? सरकार ने किसी भी संचार माध्यम से इसकी जानकारी समाज को नहीं दी। सरकार का कहना है कि नोटिफिकेशन सरकार की वेबसाइट पर है। समाज का कहना है कि सरकार की वेबसाइट के माध्यम से प्रसारित किया गया है।
केंद्र और झारखंड की राज्य सरकार इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल बनाना चाहती है। वहीं जैन समाज इसे पवित्र तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग कर रहा है। इस हेतु जैन समाज ने देशभर में प्रदर्शन किए अपना व्यवसायबंद रखकर विरोध दर्ज करवाया। हालांकि झारखंड सरकार के पर्यटन सचिव का एक बयान सामने आया है जिसके अनुसार शिखरजी की पवित्रता को बनाए रखने के लिए वहां मांस मदिरा पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। सरकार अधिनियम में संशोधन कर इसे जैन धार्मिक स्थल घोषित कर सकती है लेकिन फिर वह सुविधाएं नहीं दे सकेगी जो पर्यटन अधिनियम के तहत मिलती है।
केंद्र और राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल बनाने की बात कही गई है। अधिसूचना के अनुसार सम्मेद शिखर के एक भाग को वन्यजीव अभयारण्य बनाया जाएगा। क्षेत्र के निवासियों को मछली और मुर्गी पालन की अनुमति दी जाएगी। यही नहीं यहां छोटे उद्योगों को भी बढ़ावा दिया जाएगा।21 अगस्त 1983 को जब झारखंड बिहार से अलग नहीं हुआ था तब बिहार सरकार ने इस शिखर को वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया था। इसी आधार पर 2 अगस्त 2019 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस क्षेत्र को संवेदनशील क्षेत्र की परिधि में रखा।
किसी ने इस आंदोलन को खड़ा नहीं किया है, लोग खुद आंदोलित हुए हैं, अपनी इच्छित भावना से लोग सड़क उतर रहे हैं। यहां भीड़ इकट्ठी नहीं की गई, यह भीड़ अपने आप एकत्रित हुई है। सम्मेद शिखरजी जैनों के लिए सर्वस्व है। यही वजह है कि हर जैन इसके लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने के लिए तत्पर है। इतिहास के अनुसार सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व तीर्थंकरों एवं अनेक संतों ने सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया था। नवीं शताब्दी आते-आते यहां स्थित कई मंदिर नष्ट हो गए। वर्ष 1592 आचार्य हीर विजय सुरेश्वरजी महाराज के अनुरोध पर मुगल सम्राट अकबर ने एक फरमान जारी कर पालीताणा, गिरनार, केसरियाजी, आबू और सम्मेद शिखर जैन धर्मावलंबियों के हवाले कर दिया था। 1698 ईस्वी में मुगल सम्राट जहांगीर के दूसरे बेटे आलमगीर ने जैन तीर्थ यात्रियों के लिए शिखरजी पहाड़ को कर मुक्त घोषित किया था। 1760 में मुगल साम्राज्य के अधीन बंगाल सूबे के नवाब अहमद शाह बहादुर ने मुर्शिदाबाद के जगन सेठ को शिखरजी पहाड़ की भूमि प्रदान की थी।
1846 के ब्रिटिश काल में लेफ्टिनेंट बीडल ने शिखरजी पहाड़ी का सर्वेक्षण किया उसके अनुसार वहां संथाल आदिवासियों की आबादी 16 हजार थी। हर साल यहां मेले का आयोजन होता था। पहाड़ी के ऊपर जानवरों के शिकार में भाग लेने की छूट थी। 1876 में पाताल गढ़ के नाम से पहचाने जाने वाला पालगंज पर बघेल क्षत्रियों का शासन था। जिसे पालगंज राजा के नाम से जाना जाता है। उस राजा ने शिखरजी पहाड़ी पर 2000 एकड़ का स्थाई पट्टा बोडडम नामक अंग्रेज बागान मालिक को दिया। बागान मालिक ने वहां एक फैक्ट्री भी स्थापित की जहां सूअरों का वध किया जाता था। श्वेतांबर जैन समाज ने पालगंज के राजा के खिलाफ न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया और प्रमाण के रूप में अकबर द्वारा जारी फरमान बताया। जिसके अनुसार पहाड़ी पर कोई जानवर नहीं काटा जा सकता। अदालत के आदेश पर वहां कत्लखाना बंद कर दिया गया।
पूजा के अधिकार को लेकर सम्मेद शिखर पर दिगंबर एवं श्वेतांबर समुदायों में भी विवाद रहा है। सन 1901 में श्वेतांबरों ने पहाड़ी के सबसे ऊंचे हिस्से पर एक संगमरमर के मंदिर का निर्माण शुरू किया जहां भगवान पार्श्वनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया था। दिगंबर समुदाय ने इसका विरोध किया। 1907 में पहाड़ी पर सेनेटोरियम के निर्माण का प्रस्ताव आया जिस पर जैन समाज के दोनों संप्रदायों ने विरोध जताया। लेफ्टिनेंट गवर्नर का मानना था कि यह पहाड़ी जमींदारों की है न कि जैन धर्मावलंबियों की। जैन संप्रदाय जन चाहे तो जमींदारों को पर्याप्त मुआवजा देकर पहाड़ी के किसी भी हिस्से को खरीद सकते हैं।
1910 में पालगंज के राजा ने शिखरजी पहाड़ी को अनिश्चितकाल के लिए पट्टे पर देने का फैसला किया। 9 मार्च 1918 को आनंद जी कल्याण जी(श्वेतांबर) पेढ़ी ने 2 लाख 42 हजार रुपये में पहाड़ी के अधिकार खरीद लिए। सालाना 4 हजार रुपए भू- भाटक देना भी तय हुआ। उन्होंने पहाड़ी पर संतरी नियुक्त किए। दैनिक रोजगार करने वाले एवं तीर्थ यात्रियों,पुजारियों के लिए आवास बनवाना प्रारंभ किया जिसका दिगंबर समुदाय ने विरोध किया। 1925 में यह विवाद प्रिवी काउंसिल (ब्रिटिश युग में सर्वोच्च न्यायालय ) तक पहुंचा था।
आजादी के पश्चात बिहार सरकार ने भूमि सुधार अधिनियम की धारा 3 (1) के तहत अधिसूचना जारी कर शिखरजी पहाड़ी को आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी से लेकर सरकारी भूमि घोषित कर दिया था। 5 फरवरी 1965 में बिहार सरकार और आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी के बीच समझौता हुआ जिसके तहत वहां स्थित धार्मिक स्थलों की पूजा पाठ के स्थानों को भूमि सुधार अधिनियम की अधिसूचना से बाहर कर दिया गया। बावजूद इसके शिखरजी के स्वामित्व को लेकर अदालती कार्यवाही चलती रही। इस बीच बिहार का विभाजन हो गया और अब यह विवाद जैन समाज और झारखंड सरकार के बीच है।