पुण्यस्मरण
1 फ़रवरी 2003 को टेक्सास, लुईसियना में कोलंबिया अंतरिक्ष यान (STS- 107) दुर्घटना का शिकार हुआ। यह हादसा उस समय हुआ जब कोलंबिया अन्तरिक्ष यान पृथ्वी के वातावरण में पुन: वापस आ रहा था और पृथ्वी से महज 52 km की ऊंचाई पर था। दुर्घटना में सभी सात अंतरिक्ष यात्री मारे गये। इनमें माइकल फिलिप एंडरसन, कल्पना चावला, डेविड ब्राउन, लॉरेल क्लॉर्क, रिक हसबैंड, विलियम मैककूल और इलान रेमोन शामिल थे।
1 फरवरी 2003 को कल्पना की जब 16 दिन की अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र की यात्रा के बाद वापसी हो रही थी NASA द्वारा भारत सहित दुनिया के लगभग 140 देशों में सीधा TV प्रसारण हो रहा था।
NASA ने इस क्षण को यादगार बनाने के लिए कल्पना के परिवारजनों सहित करनाल हरियाणा के उस स्कूल के बच्चों और शिक्षकों जिन्होंने कल्पना को पढ़ाया था, को केनेडी स्पेस सेंटर पर कल्पना के स्वागत के लिए बुलाया था। NASA के 1200 कम्प्यूटर इस यान पर पूरी नजर रखे थे । जैसे ही अंतरिक्ष यान पृथ्वी से 52 किलोमीटर ऊंचाई पर आया अंतरिक्ष यान से एक वैज्ञानिक भाषा में सन्देश आया । यह संदेश अंतरिक्ष विज्ञान की सांकेतिक भाषा का है और इसे एस्ट्रोनॉट ही समझ सकते हैं।
Hello Houston 107 We received your tire pressure massage but we didn’t copy ….
केनेडी अंतरिक्ष केंद्र से इस संदेश का जवाब जाता उसके पहले ही यह यान 52 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक सुनहरी लकीर बन गया और सभी सातों अंतरिक्ष यात्री काल के गाल में समा गए।
NASA के 42 साल के अंतरिक्ष अभियान के इतिहास की सबसे दर्दनाक घटना थी जब एक सफलता इतनी पास आकर इतनी दूर चली गयी।
तत्कालीन NASA प्रमुख श्री माइकल ग्रिफिन की इस दुर्घटना के बाद की प्रतिक्रिया बहुत ही शिक्षाप्रद और मार्मिक है-
”अंतरिक्ष की खोज और मानवजाति के स्वर्णिम भविष्य के लिए हमारा संघर्ष और शोध जारी रहेगा। सात अंतरिक्ष यात्रियों की मौत से ये रुकने वाला नहीं है। इन सात अंतरिक्ष यात्रियों के दुखद बलिदान से भावी अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए हमें नई शिक्षा मिलेगी हम सघन शोध कर इसमें हुई खिमियों की सघन जांच करेंगे। हमारी अंतरिक्ष शोध की प्रक्रिया लगातार व निर्वाध रूप से जारी रहेगी।”
ग्रिफिन ने कहा- 1 फरवरी 2003 से NASA का पूरा नाम National Aeronautics and Space Administration न होकर Need Another Seven Astronauts होगा। अर्थात हमें सात और अंतरिक्ष यात्री चाहिए जो अंतरिक्ष में शहीद होने तैयार रहें।
कल्पना जब अंतरिक्ष में शोध कर रही थीं तब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उनसे रेडियो संदेश से बात कर पूछा कि अंतरिक्ष में धरती से भिन्न क्या है ?
कल्पना का जवाब था – जब हम धरती पर होते हैं तो धरती पर कठोर चट्टाने, नदियां, विशाल समुद्र और हर देश के भौगोलिक नक्शे के साथ उसकी भिन्नताएं दिखती हैं। 24 घण्टे बाद सूर्योदय दिखता है। जब हम अंतरिक्ष में विचरण करते हैं तो हमें धरती बहुत नाजुक, वायुमंडलीय परतें बहुत ही महीन, सीधे खड़े समुद्र, सबकुछ समान और नीला तथा दिन में 16 बार सूर्योदय और इतनी ही बार सूर्यास्त दिखता है।
कल्पना खुद को ब्रह्मांड का नागरिक समझती थीं। वे कहती थीं – I was not born for a particular place, i am the citizen of milky way. The whole universe is my native land.
कल्पना को हम भारत के लोग सही और सार्थक श्रद्धांजलि तभी दे सकेंगे जब हम भी उनकी सोच के मुताबिक क्षेत्र, देश, धर्म और राष्ट्रीयता से ऊपर उठकर वैज्ञानिक सोच विकसित करें और अपने आप को इस आकाशगंगा का नागरिक समझें।