(देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस पर विशेष)
स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री प. जवाहरलाल नेहरू की जन्मतिथि हमारे लिए एक मौका है कि हम उनको याद करते हुए आजादी के उस स्वर्णिम दौर में झांकने की कोशिश करें जिसका नेतृत्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया। नेहरू को उनकी अपनी विरासत भले उस अर्थ में उनके योगदान को याद न रखे जिसके वे हकदार थे, पर देश के लाखों करोड़ों लोग उस नेहरू को जरूर याद करना जारी रखेंगे जो अपनी आखिरी सांस तक गांधी की जुबान में बोलता रहा।
नेहरू के जन्मदिन के दिन हम 15 अगस्त 1947 को याद करें जिस दिन एक मुल्क का जन्म हुआ था और मुल्क के मुक्तिदाता की मृत्यु की तारीख भी मुकर्रर कर दी गयी थी। 15 अगस्त के दिन जब पूरा मुल्क आजादी का जश्न मना रहा था उस दिन दिल्ली से 1500 किलोमीटर दूर कलकत्ता में वह शख्स उपवास कर रहा था और चरखा चलाते हुए कहा रहा था कि मेरे लिए मुमकिन नहीं कि मैं आजादी की खुशी मनाऊं और लोगों को बधाई दूं। नेहरू जो दिल्ली में आजादी के जश्न में शामिल थे उन्होंने भी गांधी की इस बात पर कोई आपत्ति नहीं की कि इस शुभ घड़ी में बापू ऐसी मनहूस बातें क्यों कर रहे हैं। नेहरू जानते थे कि जश्न में शामिल सभी बड़े नेताओं के कद का समस्त योग उस महान शख्स के घुटनों तक भी नहीं पहुंचेगा। इसीलिए जवाहरलाल नेहरू ने जो पहला ऐतिहासिक भाषण दिया उसमें उन्होंने बापू का जिक्र करते हुए कहा कि इस आजादी के जश्न में एक तरह की कमी महसूस हो रही है और हम उस महान शख्स के नालायक चेले साबित हुए हैं जो शख्स यहाँ से 1500 किलोमीटर दूर बैठा हुआ है। जश्न में शामिल सभी बड़े नेताओं को इस लम्हे में बहुत गर्व और प्राइड का अहसास नहीं हो रहा था बल्कि एक गहरा दर्द और गहरी पीड़ा हो रही थी। जश्न में शामिल प्रायः सभी बड़े नेताओं के मन में एक बात थी कि इस जश्न में कुछ तो ऐसा है जो हमें हमारी इंसानियत से नीचे गिरा रहा है।
नेहरू के बारे में यह भी कहा जाता है कि उनको अपना उत्तराधिकारी बना कर गांधी ने बहुत बड़ी गलती की थी, उन्होंने हिंदुस्तान के साथ एक तरह से धोखा किया था। प्रश्न उठता है कि जिन्हें हम राष्ट्रपिता कहते हैं, जिन्हें हम वर्ष भर पूजते हैं , उन्होंने राजगोपालाचारी, सरदार पटेल व राजेन्द्र बाबू जैसे उम्दा दिमाग लोगों के रहते नेहरू को अपना उत्तराधिकारी क्यों बनाया? कई गांधीवादियों से इस प्रश्न को पूछा गया लेकिन किसी ने संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। राजाजी का कहना था कि गांधीजी मोह में पड़ गए थे। लोहिया का कहना था कि गांधी वर्णवादी थे और नेहरू ब्राह्मण थे। कुछ लोगों को भले ही गांधी पर संदेह हो, पर गांधी को नेहरू के चयन पर कोई संदेह नहीं था। गांधी का मानना था कि उनके ना रहने के बाद, जवाहर उनकी भाषा बोलेंगे।
कारण स्पष्ट है गांधी अपने फैसले अपनी अंतरात्मा की टॉर्च से लेते थे। वे अपनी अंतरात्मा के टॉर्च से अंधेरे में अपना अगला कदम टटोलते थे, इस नितांत निजी और वैयक्तिक टॉर्च की रोशनी में उन्हें भारत का भविष्य सामने नजर आ जाता था।
गांधी के बारे में नेहरू ने कहा कि गांधी दरअसल राजनेता नहीं एक शायर हैं और उसमें भी एक मुश्किल शायर हैं जिनकी शायरी हर आदमी नहीं समझ सकता। उसकी शायरी को समझना बड़ा जटिल काम है।
नेहरू की कठिनाई ये थी कि वे एक साथ दो दौर में संघर्ष करते रहे। एक दौर जिसे हम रूमानी दौर या काव्यात्मक दौर कह सकते हैं। इस दौर में वे भारत की आजादी के लिए गांधी के साथ कदमताल कर रहे थे। दूसरा दौर, राष्ट्र निर्माण दौर था उसे साहित्यिक भाषा में गद्यात्मक दौर कह सकते हैं। नेहरू दरअसल कोमल काव्यात्मक दौर से कठोर गद्यात्मक दौर में न केवल प्रवेश कर रहे थे अपितु वे इस दौर में रहने के लिए अभिशप्त थे। इसी दौर में भारत में भाखड़ा नांगल, सरदार सरोवर जैसे बांध, AIIMS, IIT, IIM, जैसे संस्थान , योजना आयोग, परमाणु ऊर्जा आयोग, भाभा अनुसंधान परिषद, अंतरिक्ष आयोग, ISRO, थुम्बा राकेट केन्द्र, फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, अप्सरा, साइरस, जेरलीना जैसे नाभिकीय रिएक्टर और साहित्य अकादमी सहित कई संस्थान बनते हैं। नेहरू ने अपनी सारी शक्ति देश के सर्वांगीण विकास के लिए झोंक दी। अधिक अन्न उपजाओ, दुग्ध क्रांति ,वन महोत्सव, सामुदायिक विकास, राष्ट्रीय विस्तार कार्यक्रम, पंचवर्षीय योजना, भारी उद्योग, भिलाई, बोकारो व जमशेदपुर के लोहे और स्टील के प्लांट, खाद के कारखाने, लाखों नए स्कूल और लाखों सरकारी नौकरियां, हजारों अफसर नेहरू की अदम्य ऊर्जा के परिणाम हैं।
जब ब्लिट्ज के प्रधान संपादक आर के करेन्जिया नेहरू से एक इंटरव्यू में पूछते हैं कि आपने देश के लिए इतना कुछ दिया। आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है? नेहरू ने थोड़ा सोचकर कहा कि मि. करेन्जिया मैं इस बात को अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानता हूं कि 1947 के विभाजन के भारी तूफान और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद जब ऐसा लग रहा था कि भारत रूपी यह जहाज समुद्र में हिलोरें ले रहा है उस कठिन दौर में हमने भारत के इस डूबते जहाज को स्थिर कर लिया और मैँ इससे बहुत तस्सली महसूस करता हूं। हमने देश के लोगों को चैन से रहने के अवसर उपलब्ध कराए और उन्हें एक मनोवैज्ञानिक शांति प्रदान की।
इसी इंटरव्यू में आर के करेन्जिया ने उनसे पूछा कि क्या मैं दुनिया के सबसे बड़े स्टेट्समैन नेहरू से बात कर रहा हूँ और क्या अब भारत में नेहरू युग शुरू हुआ माना जाय? नेहरू ने कहा कि रुक जाइये मि. करेन्जिया! न तो नेहरू युग जैसी कोई चीज है और न ही नेहरू विचार जैसी कोई चीज है। इसे आप अधिक से अधिक भारतीय विचार या गांधी विचार कह सकते हैं । दुनिया में एक ही सबसे बड़े स्टेट्समैन हैं और वे हैं -महात्मा गांधी और हम सब गांधी के बच्चे हैं।
यह कोई झूठी विनम्रता नहीं थी। आप किसी के स्वर से पहचान सकते हैं कि वह ईमानदार है कि नहीं है। किसी के प्रणाम करने से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह प्रणाम कर रहा है या आपके सीने में गोलियां दागने वाला है। नेहरू के बाद श्री राजगोपालाचारी ने जो श्रद्धांजलि दी वह ध्यान देने योग्य है उन्होंने कहा कि हमारे बीच का सबसे सभ्य और सुसंस्कृत राजनेता था वह चला गया।
नेहरू ने आर के करेन्जिया को अपने इंटरव्यू में कहा कि अगर हम इंग्लैंड को देखें तो वह औपचारिक रूप से चर्च ऑफ इंग्लैंड से एफिलिएटेड है लेकिन वहां का समाज लोकतांत्रिक व सेक्युलर है और दूसरी तरफ हम संवैधानिक रूप से लोकतांत्रिक व सेक्युलर हैं लेकिन हमारा समाज लोकतांत्रिक सेक्युलर नहीं है। हमारे देश की डिफॉल्ट सेटिंग हिन्दू है इसलिए हमें सक्रिय व सचेत रूप में समाज को लोकतांत्रिक व सेक्युलर करने की कोशिश करनी होगी। इसीलिए उनके निधन पर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कहा था किहमारी तपोभूमि आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुकूल नहीं थी। इसके बावजूद हमारी सोंधी मिट्ठी में नेहरूजी ने लोकतंत्र का पौधा लगाकर उसे लहलहाने का विकट कार्य सम्पन्न किया।
नेहरू अपना काम कर स्वर्ग सिधार चुके हैं। अब हमारा फर्ज है कि हम अपना काम करें। नेहरू के गुणगान और कीर्तन करने की कोई जरूरत नहीं। वे इन सबसे परे हैं,उनकी वकालत करने की किसी को जरूरत नहीं । भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में नेहरू के लंबे कालखण्ड की परछाई का इतिहास सदैव मूल्यांकन करता रहेगा। इस मुल्क को और कांग्रेस को नेहरू की याद दिलाना जरूरी है।
आधुनिक भारत के शिल्पी पंडित नेहरू को उनके जन्मदिन पर सादर नमन।