यह प्रकृति हरदम रंगों से रंगीन होती है। इसमें धूप का सफेद एवं चमकीला रंग होता है, बरसात का हरा और मटमैला रंग होता है, सर्दियों का धुआं-धुआं सा सलेटी रंग होता है। हर मौसम में ऋतु के अपने रंग होते हैं और यही रंग हमारे जीवन को भी रंगीन बनाते हैं। रंगों का यह उत्सव हम सिर्फ होली के दिन मनाते हैं लेकिन कुदरत या प्रकृति की होली तो हर पल, हर दिन, हर मौसम में चलती रहती है। हर जरें-जर्रे में, चाहे वह जमीन हो, आसमाँ हो, पेड़-पौधे हों, फल-फूल हों या फिर आदमी या जानवर; हर बात की अपनी शेडिंग होती है या विविधता होती है, उसे “वो चित्रकार’ ही अंजाम दे सकता है।
कुदरत के रंग समय के साथ और पुख्ता, ताजा, कायम होते जाते हैं लेकिन इंसानी रंग कभी-कभी उतर जाते हैं, कभी फीके पड़ जाते हैं तो कभी बिल्कुल बेरंग भी हो जाते हैं। लेकिन उससे क्या फर्क पड़ता है? ‘उसका’ कैनवास रुकता थोड़ी ही है? उसके पैलेट पर इतने सारे रंग हैं कि आप गिन नहीं सकते और ना ही उनकी कल्पना कर सकते हैं, उसका कूचा भी हर रंग को झेलने के लिए तैयार बैठा है और कैनवास… कैनवास तो खुला है, इस पूरे विश्व का! वह आपकी बेरंगी जिंदगी में भी रंग भर देता है। आपको सिर्फ उसके रंगों को पहचानना आना चाहिए।
आदमी भी तो उसी चित्रकार की ही ‘देन’ है, जिसके पास प्रतिभा का खजाना है। ऐसे में वह कैसे पीछे रह सकता है? उसने भी अपनी प्रतिभा के अनेक रंग खिलाये। विज्ञान, तंत्रज्ञान, प्रकृति, इतिहास, भूगोल, भाषा कोई भी रंग उसने अछूता नहीं छोड़ा और अपनी एक अलग मिसाल कायम की। कुदरती रंगों को साथ लेकर और उसमें अपने जीवन के रंगों को घोलकर इंसान ने उत्सव, त्योहार, आयोजनों के साथ जीवन का एक ऐसा समा बांध रखा है कि उसमें सभी रंगों के साथ ऊर्जा की ऊष्मा, रिश्ते-नातों का गुनगुनापन, दुखों की ठंड, सुख की गर्माहट, सब कुछ शामिल हुआ है।
रंग हमारी दुनिया को घेरते हैं, हमारे अनुभवों के कैनवास को ऐसे रंगों से चित्रित करते हैं जो भावनाओं को जगाते हैं, यादें जगाते हैं और व्यवहार को प्रभावित करते हैं। शांत समुद्र के शांत नीले रंग से लेकर जोश के उग्र लाल रंग तक, हमारे जीवन पर रंगों का प्रभाव गहरा और बहुमुखी है। इस प्रभाव को समझने से यह अंतर्दृष्टि मिलती है कि हम अपने आस-पास की दुनिया को कैसे देखते हैं और हम अपने जीवन को समृद्ध बनाने के लिए रंग की शक्ति का उपयोग कैसे कर सकते हैं।
अगर रंगों पर कुछ लिखना शुरू किया जाए तो शायद कागज और कलम कम पड़ जाएंगे लेकिन रंगों की अहमियत लिखी नहीं जा सकती। प्रकृति के रचनाकार ने भी रंगहीन ब्रह्मांड को बहुत से रंगों से चमकाया है। बिना रंगों की दुनिया तो सोच के परे है। अगर फूलों में रंग ना होते तो क्या फूल इतने खूबसूरत होते और अगर धागों में इतने रंग ना होते तो क्या हम अलग-अलग रंग के कपड़ों की ख्वाहिश करते? रंग तो हमारी जिंदगी में हर जगह मौजूद हैं। हर रंग अपनी एक अलग कहानी बयां करता है।
रंग तो हमारे जीवन में सुबह से लेकर रात ढलने तक साथ ही चलते हैं। जब सुबह होती है तो आसमान का रंग गुलाबी हो जाता है। ठंडी हवा के साथ चिड़ियों की चहचहाहट भी सुनाई देती है। प्रकृति कह उठती है, एक नया दिन शुरू हो गया है। चलो, अपने लक्ष्य की ओर बढ़ो! फिर जब दिन चढ़ता है तो आसमान का रंग पहले नीला और फिर नीले से सफेद होने लगता है। हमें भी अपने व्यक्तित्व को ऐसा ही रखना चाहिए, कैसा भी काम हो, उसे मन को शांत रखकर ही पूरा करना चाहिए।
कोई मुसीबत हो तो उसको सोचकर हमें अपने चेहरे का रंग सफेद नहीं करना है। हर डर, हर मुसीबत का डटकर सामना करना है और दिए हुए काम को पूरा करना है, जब हमारा दिन खुशी से गुजरता है और हमारे सारे काम हमारे मन मुताबिक होते हैं, तो हमें अपना दिन हरा भरा लगता है। कहीं कोई कठिनाई आ जाती है और हम अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाते और गुस्से में हम लाल पीले हो जाते हैं। वैसे तो लाल रंग के मतलब भी बहुत से हैं। जहां एक ओर खतरे का निशान लाल रंग का बनाते हैं, वहीं दूसरी ओर हर शुभ काम के लिए लाल सिंदूर भी चढ़ाते हैं। जिससे जान पड़ता है कि हम हर समय रंगों से घिरे हुए हैं और अगर ये रंग न होते तो जिंदगी बदरंग होती।
जिंदगी का एक और रंग भी है और वो है सफेद रंग! ऐसा रंग जिसके साथ मिलकर हर रंग एक अलग ही रंग बना लेता है, उसी तरह जिसे अपनी जिंदगी में सुख, शांति और संतुलन बनाकर रखना है, संयम रखना है, उसे सफेद रंग की तरह सबसे मिलकर रहना होगा और खुद को इस तरह शांत रखना होगा कि बड़ी सी बड़ी मुसीबत भी उसका संयम ना हिला सके।
जैसे शाम होती है, आसमान कई रंगों की चादर में लिपट जाता है। इस चादर में कहीं हल्का गुलाबी, थोड़ा लाल, कहीं नीला तो कहीं काला रंग आपस में गुंथा नजर आता है। प्रकृति हमें संदेश देती है कि आज तुमने जो भी काम पूरे किए उसमें कुछ काम हरे रंग की तरह अच्छे, सफेद रंग की तरह शांत मन से और कहीं ना कहीं कुछ काम लाल रंग की तरह गुस्से में किए, जो भी कुछ दिनभर हुआ वो अब अच्छे और कुछ बुरे रूप में हमारे सामने है और यही नियम है जिंदगी जीने का! जब आसमान इन रंगों से खाली होता है और रात का गहरा काला रंग इस पर चढ़ता है, तब यह रंग हमें कई मतलब बताता है, रात के काले रंग में कोई ऐसा काम ना करो जिससे खुद को या दूसरों को मुसीबत हो। काले रंग की जिंदगी से दूर रहो। लेकिन प्रकृति ने रात के काले रंग को भी कई रंगों से रंगा है। रात को चांद की दूधिया रोशनी से चमकाया है। तारों की सफेद झिलमिलाहट रात के अंधेरे को और भी खूबसूरत बनाती है. इसी तरह हमें भी रात के काले रंग जैसी मुसीबतों में भी उम्मीद की रोशनी बनाकर रखनी है। हर रात के बाद फिर सवेरा होगा। फिर से यह संसार हरे, पीले और नीले रंग में रंगा होगा।
जीवन पर रंगों का प्रभाव निर्विवाद है, जो हमारी भावनाओं, धारणाओं और अनुभवों को गहराई से आकार देता है। सूर्यास्त के जीवंत रंगों से लेकर शांतिपूर्ण जंगल की सूक्ष्म छटाओं तक, रंगों में असंख्य भावनाओं और जुड़ावों को जगाने की शक्ति होती है। इस शक्ति को समझकर और उसका उपयोग करके, हम अपने जीवन को समृद्ध बना सकते हैं और अपने परिवेश में अधिक सद्भाव और कल्याण पैदा कर सकते हैं। तो, आइए अपनी दुनिया को खुशी, शांति और जीवन शक्ति के रंगों से रंगें, और अपने जीवन पर रंग के परिवर्तनकारी प्रभाव को अपनाएं।
दुनिया एक रंगमंच है और इस दुनिया के रंगमंच में अलग–अलग भूमिकाएं निभाने वाला हर व्यक्ति भी अलग-अलग रंगों में रंगा हुआ है। सन्यासी-सन्यासिन गेरुआ रंग धारण करते हैं, हिन्दू धर्म में केसरिया रंग का महत्व है, तो सूफी सफ़ेद रंग को महत्व देते हैं। वहीं इस्लाम में हरे रंग का भी अपना महत्व है। चिकित्सक सफ़ेद लिबास धारण करते हैं, पुलिस वाले ख़ाकी रंग धारण करते हैं, वहीं वकील काले रंग की शरण लेते हैं। टीवी और मीडिया जगत के लोग नित नए रंगों में सजे-धजे नज़र आते हैं।
रंग दृष्टि से अनुभव होने वाला एक गुण है, एक वर्ण (जैसे – नीला रंग, काला रंग इत्यादि) है। रंग केवल वो नहीं जिसे हम देखते हैं; रंग वो भी है जिसे हम महसूस करते हैं। ‘कुदरत” जिसे प्रकृति भी कहा जाता है, वास्तव में वह प्रकृति जिसे हम आस-पास देख पाते हैं, इसे सृष्टि भी कहा जाता है। यह सृष्टि जिसमें हम रहते हैं, यह राग और रंगों का खेल ही तो है। प्रकृति के रंग जो हम देखते हैं, कितने मनोहर और दिल लुभाने वाले होते हैं। प्रकृति की सुंदरता, फाल्गुन के महीने में जब अपने चरम पर होती है, तब प्रत्येक प्राणी के मन में मधुर राग गूंजने लगता है. जब इसी राग की हिलोरें बाहर प्रकट होती हैं तो रंगों का पर्व होली बन जाता है। कुदरत में व्याप्त समस्त प्राणी किसी न किसी राग में मस्त हैं। कुदरत में दिखाई देने वाला हर एक रंग अपने अंदर एक विशेष प्रकार की ऊर्जा, एक विशेष प्रकार की भावना समाए हुए है। हमें प्रकृति में व्याप्त प्रत्येक जीवित और निर्जीव वस्तु का अपना एक रंग दिखाई देता है।
कुदरत अपने भीतर कई राग रंगों के साथ, कई राज़ भी समाये हुए है। ऐसा ही एक राज़ है, रंगहीनता या पारदर्शिता का राज़। पारदर्शिता वैराग्य का सूचक है। प्रकृति में कई नग, रत्न, बर्फ, द्रव्य, रसायन इत्यादि, पारदर्शी होते हैं। पारदर्शिता का अर्थ है आप कुछ भी पूर्वाग्रह नहीं रखते हैं। जो जैसा है उसका ही हिस्सा बन जाते हो। जीवन के रंगमंच पर बेहतरीन प्रदर्शन वही कर सकता है जो राग और रंगों से परे हो। हम जीवन की संपूर्णता को, जीवन के असली आनंद को तब तक नहीं जान पाएंगे, जब तक हम उस आयाम तक न पहुंच जाएं जो राग व रंगों से परे है। अद्भुत है कुदरत का ये रंग!
रंगोत्सव का केंद्र बिंदु रंगों से खेलना है, यह प्रथा हिंदू पौराणिक कथाओं में गहराई से निहित है। किंवदंती है कि नटखट देवता भगवान कृष्ण ने अपनी प्रिय राधा और अन्य साथियों पर रंग डालकर इस परंपरा की शुरुआत की थी। यह चंचल भाव एक प्रतिष्ठित अनुष्ठान के रूप में विकसित हुआ, जो बुराई पर अच्छाई की विजय, वसंत की शुरुआत और सामाजिक बाधाओं के विघटन का प्रतीक है।
रंगोत्सव वसंत के आगमन का उत्सव है, एक ऐसा मौसम जो नवीकरण, उर्वरता और जीवन शक्ति की शुरुआत करता है। जैसे ही पृथ्वी अपनी शीत निद्रा से जागती है, प्रकृति खिले हुए फूलों, हरे-भरे परिदृश्यों और नीले आकाश का एक भव्य दृश्य प्रस्तुत करती है। रंगोत्सव इस कायाकल्प को प्रतिबिंबित करता है, समुदायों को खुशी, सौहार्द और परस्पर जुड़ाव की जबरदस्त भावना से भर देता है।
जो बात रंगोत्सव को अलग करती है वह है इसकी समावेशिता और सार्वभौमिकता। उम्र, लिंग या पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, सभी को उत्सव में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है। सड़कें उल्लास के मैदान में बदल जाती हैं, क्योंकि लोग एक-दूसरे को जीवंत रंगों से सराबोर कर देते हैं, लयबद्ध धुनों पर नृत्य करते हैं और मीठे व्यंजनों का आनंद लेते हैं। रंगों के इस दंगे में भेद मिटते हैं और एकता की गहरी भावना प्रबल होती है।
अपने सांस्कृतिक महत्व से परे, रंगोत्सव प्रकृति के साथ मानवता के आंतरिक संबंध की एक मार्मिक याद दिलाता है। जिस तरह वसंत दुनिया में जीवन का संचार करता है, उसी तरह रंगोत्सव आत्माओं को पुनर्जीवित करता है, हमारे चारों ओर मौजूद सुंदरता के प्रति गहरी सराहना को बढ़ावा देता है। इस त्योहार के दौरान हमारे जीवन को सजाने वाले रंग केवल रंजक नहीं हैं, बल्कि प्राकृतिक दुनिया की असीम रचनात्मकता के प्रतिबिंब हैं।
दुनिया भर में सांस्कृतिक समारोहों की जीवंत टेपेस्ट्री में, भारत का रंगोत्सव रंगों की एक उल्लासपूर्ण सिम्फनी के रूप में सामने आता है। “रंगों के त्योहार” में अनुवादित, रंगोत्सव केवल एक घटना नहीं है बल्कि मानवता और प्रकृति के बीच गहरे संबंध का प्रतीक है। प्राचीन परंपराओं में निहित, फिर भी समसामयिक भावना के साथ गूंजता हुआ, रंगोत्सव सीमाओं से परे है, और सभी को इसके बहुरूपदर्शक वैभव का आनंद लेने के लिए आमंत्रित करता है।
जैसे ही हम रंगोत्सव के उल्लासपूर्ण उत्साह में डूबते हैं, आइए हम इसके गहन संदेश को न भूलें: कि हमारा अस्तित्व प्रकृति की लय के साथ जटिल रूप से जुड़ा हुआ है। त्योहार मनाते हुए, हम मानवता और प्राकृतिक दुनिया के बीच शाश्वत बंधन का सम्मान करते हुए, सृष्टि की महिमा को श्रद्धांजलि देते हैं। रंगोत्सव सिर्फ एक आयोजन नहीं है – यह प्रकृति के नवीकरण के अंतहीन चक्र का विस्तार है, जीवन की स्थायी जीवन शक्ति का एक प्रमाण है।