दिसंबर महीना आते ही मन के किसी कोने में ये बात घर करने लगती है कि एक और वर्ष ख़त्म होने की तैयारी कर रहा है और हमारी उम्र में एक और वर्ष का अनुभव जुड़ने जा रहा है। इस लिहाज से अगर सोचें तो लगता है कि हर गुजरता वर्ष हमें मानसिक रूप से समृद्ध करता जाता है और हम लोग थोड़ी और बेहतर सोच वाले इंसान बनते जाते हैं। यह तरक्की जरुरी है वरना हम सब एक निश्चित परिधि में ही अपना जीवन गुजार देंगे।
सन 2024 भी गुजर गया है और अन्य बीते वर्षों की ही तरह यह वर्ष भी बहुत कुछ अच्छा तो बहुत कुछ खराब भी पीछे छोड़ गया है। आज सुबह जब कुहासे के बीच उगते सूरज के हलके लाल रंग को देखा तो ख्याल आया कि चाहे जितनी भी मुश्किल भी आये, सूर्य अपना उजाला फैलाता ही है। साल के अंत में डॉ मनमोहन सिंह का जाना जैसे एक ऐसी कमी पैदा कर गया जिसकी भरपाई मुश्किल है। उसके पहले उस्ताद जाकिर हुसैन, रतन टाटा, शारदा सिन्हा, सीताराम येचुरी, अंशुमान गायकवाड़, मालती जोशी, पंकज उधास, उस्ताद राशिद खान इत्यादि भी यह फानी दुनिया छोड़कर जा चुके थे और एक खालीपन छोड़ गए। वैसे बहुत सी सफलताओं का भी यह वर्ष साक्षी रहा जिसमें खेल के क्षेत्र में सबसे बड़ी सफलता शतरंज के मैदान में हासिल हुई जहाँ चेस ओलम्पिआड में हमें दोहरा स्वर्ण पदक मिला जो पहली बार था। डी गुकेष ने जो कारनामा किया और जिस कम उम्र में किया, उसने दुनिया को चौंका दिया। नीरज चोपड़ा ओलिंपिक में अपने स्वर्ण पदक का करिश्मा दोहरा नहीं पाए लेकिन रजत पदक ने भी देश को खुशियां दीं। मनु भाकर ने दो पदक जीते, हॉकी टीम ने फिर से कांस्य पदक जीता, अवनि लखेरा ने दो पदक जीते। क्रिकेट में टी 20 विश्व कप विजेता बने तो अयोध्या में राम मंदिर भी बन गया। देश में भाजपा ने एक बार फिर से सरकार बना ली लेकिन पूर्ण बहुमत नहीं मिला। पुलों के बहने के लिए यह साल बहुत चर्चित रहा।
दुनिया में अगर देखा जाये तो युद्ध की काली छाया पूरे साल मंडराती रही। रूस यूक्रेन युद्ध नहीं रुका तो इजराइल और गाज़ा के बीच भी लड़ाई चलती रही और बच्चों की मौत इसका सबसे दुखद पहलू रहा। ट्रम्प वापस सत्ता में लौटे तो बांग्लादेश में कट्टरपंथियों ने हसीना को सत्ता से बेदखल कर दिया। चीन लगातार अपने देश को सीमा पर ललकारता रहा तो साल के अंत में ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर बांध बनाने का एलान करके उसने सनसनी फैला दी। श्रीलंका में स्थिति बेहतर हुई तो पाकिस्तान अपने पुराने रवैये पर चलता रहा।
अपने देश में बेरोजगारी ने विकराल रूप धारण किया तो महंगाई भी अपने चरम पर रही। चुनाव आयोग पर कितनी बार सवाल खड़े हुए तो सरकार पर शक्तियों के दुरूपयोग का आरोप लगा। मणिपुर 2023 की ही तरह जलता रहा और केंद्र ने एक तरह से उससे किनारा कर लिया। यह प्रदेश फिलहाल विकास में 20 साल पीछे चला गया है और आगे भी कोई खास उम्मीद नजर नहीं आ रही है। महिलाओं पर अपराध बढ़े ही हैं और धर्म के नाम पर देश का माहौल खराब किया गया। रुपया हर महीने एक नए निचले स्तर का कीर्तिमान बनाता रहा तो मध्यम वर्ग को आय कर में किसी भी प्रकार की राहत नहीं मिली। भारत विश्व अर्थव्यवस्था में पांचवें पायदान पर रहा तो अगले 25 वर्षों में इसे विकसित देश बनाने का संकल्प भी लिया गया।
पिछले वर्ष लोगों में पढ़ने की रूचि बढ़ी जिसके चलते खूब किताबें खरीदी गयीं और खूब नयी किताबें प्रकाशित हुईं। जगह जगह लगने वाले पुस्तक मेलों में बढ़ती भीड़ और बिक्री के जबरदस्त आकड़े पुस्तक प्रेमियों के उत्साह की कहानी कहते रहे। हमने भी इस वर्ष लगातार पुस्तकें पढ़ीं और ढेर सारी किताबें खरीदीं जिससे लिखने के लिए भी प्रेरणा मिली। कई कहानियां, लघुकथाएं और यात्रा वृत्तांत तमाम अख़बारों, पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं और एक रचनात्मक सुकून मिला।
अभी पूर्वोत्तर में हूँ तो असम सरकार द्वारा वर्ष 2025 को पुस्तक वर्ष के रूप में घोषित करने से अच्छा लगा, उम्मीद है कि लेखकों के मदद के लिए भी सरकार आगे आएगी जिससे उत्कृष्ट साहित्य छपेगा और पढ़ा जायेगा। भारत ओलिंपिक की मेजबानी के लिए भी अपना दावा ठोंक रहा है और अगर यह मिल गया तो क्रिकेट के अलावा बाकी खेलों को भी संजीवनी मिलेगी और उनमें जान आएगी। दुनिया में चल रहे युद्ध से लोगों को मुक्ति मिले और विश्व गरीबी हटाने और पर्यावरण बचने के लिए सोचे, यही इस वर्ष में कामना है। उम्मीद पर दुनिया कायम है और यह उम्मीद है कि कभी ख़त्म नहीं होती।