अखबारों और टीवी न्यूज़ में आजकल एक खबर बहुत ज्यादा लीक कर रही है – पेपर लीक का मामला। यूं तो आए दिन कोई न कोई परीक्षा का पेपर लीक होता रहती है । जब लोकतंत्र की गाडी के पहियों पर चढ़े टायर ही लीक हो रहे हैं तो पेपर लीक होना कोई बड़ी बात तो है नहीं। अब ये लीक के मामले ही हैं जो अखबारों की हैडलाइन बनती है,सरकार को भी दो चार जांच आयोग बिठाने का अवसर मिलता है, सत्ता पार्टी और विपक्ष पार्टियों को एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने का अवसर मिलता है, विरोधी पार्टियों पर दो चार सी बी आई के छापे और इ डी के छापे पड़वाकर उन्हें हड्काने का मौका मिलता है। कुल मिलाकर आने वाले चुनावों के लिए मुद्दों की फसल बुआई हो जाती है।
नेता लोग कहते हैं,लोकतंत्र की चुनरी में ये लीक के दाग अच्छे हैं, इन्हें छुडाना नहीं है, लीक के दागों की चुनरी एक अभूतपूर्व एंटीक लुक दे रही है! लीक कोई एक जगह तो है नहीं, सारा सिस्टम ही लीक कर रहा है। जैसे कहीं बागी विधायकों की संख्या लीक हो जाती है तो तख्तापलट हो जाते हैं। कहीं किसी विधायक और सांसद की अश्लील सी डी लीक हो जाती है तो मनोरंजन जगत को तीखा मसाला मिल जाता है! कहीं कोई अधिकारी रिश्वत लेता है और कोई सरफिरा वीडियो बनाकर लीक कर देता है! सब जगह लीक करने का बुखार है तो भला ये पेपर की क्या बिसात, ये तो तो बनाए ही लीक होने के लिए हैं। अब पेपर लीक न होगा तो बेचारे इतने लोग जिनका धंधा ही परीक्षा में धांधली करके रोजी रोटी का जुगाड़ करने का है, उनका धंधा कैसे चलेगा? कितनी जिम्मेदारी से वो घर-घर में डॉक्टर, इंजीनियर, सरकारी नौकर खड़े कर रहे हैं। डिग्रियाँ ऐसे बाँटी जा रही हैं जैसे सरकारी रेवड़ियाँ। अब सरकार, रेवड़ियों में नौकरी तो नहीं बाँट रही ना, इसका इंतजाम तो आदमी को खुद ही करना पड़ेगा। नौकरी लगे या न लगे, अलबत्ता कम से कम डिग्री तो हासिल कर लें ताकि कल अगर नेता भी बने तो विपक्षी पार्टियों को ये कहने का मौका न मिले कि डिग्री नहीं है, अनपढ़ है।
वैसे आजकल की प्रतिस्पर्धा में सीधे रास्ते से डिग्रियाँ हासिल करना या प्रोफेशनल डिग्री कॉलेजों में डॉक्टर, इंजीनियर बनना कितना मुश्किल है, आरक्षण ने वैसे ही कमर तोड़ रखी हैं। आधी कमर जो बची हुई है वो कोचिंग संस्थानों की महंगी फीस ने। अब बेचारा आम आदमी क्या करे, प्राइवेट कॉलेजों में सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती फीस ने उसका वैसे ही दिमाग खराब कर रखा है। तो अगर कहीं से लीक पेपर का इंतजाम हो जाए, दो-पाँच लाख खर्च करके किसी सरकारी कॉलेज में दाखिला हो जाए, बस फिर क्या, डॉक्टर, इंजीनियर तो बन के निकल ही लेगा। कॉलेज वालों की छाती पर मूंग दलेगा तो वो वैसे ही उसे डिग्री देकर विदा कर देंगे।
पेपर लीक का यह धंधा अब बड़े-बड़े राजनीतिक घरानों के लिए पार्टी फंड इकट्ठा करने का एक नया जरिया बन गया है। पोलिटिकल बांड पर वैसे भी, अब कोर्ट ने रोक लगा दी। अब बेचारे पार्टी के आला कमान क्या करें, पार्टी चलानी है, चुनाव लड़ने हैं, विधायकों-सांसदों की खरीद फरोख्त करनी हैं, सब में पैसा तो चाहिए न। बिजनेस घराने सभी तो भाव देते नहीं है , बिज़नस घराने भी जिस एक पार्टी की गोदी में जाकर बैठ गए बस वहीँ चिपके रहते हैं. इ डी ,सी बी आई वाले वैसे ही पीछे पड़े हुए हैं। एक यह पेपर लीक का धंधा ही बचा था, इस पर भी सबकी निगाहें हैं। पार्टी अगर जोड़ तोड़ न करे तो भला कैसे चुनाव जीतेंगे, कैसे सरकार बनायेंगे, और जोड़ तोड़ दोनों में ही धन लगता है साहब, करोड़ों रुपये रेवड़ियों को बांटने, रैलियों में वोट के बदले नोट बांटने में लगेंगे, यह सब कहां से आएगा?
सप्लाई भी डिमांड के ऊपर टिकी है। अब पब्लिक की डिमांड है तो बाजार भी सजेगा। वह दिन दूर नहीं जब बाकायदा पेपर लीक को एक लीगल धंधा घोषित कर दिया जाएगा, संविधान में संशोधन करके एक अनुच्छेद जोड़ दिया जाए कि एक निश्चित राशि सरकारी खजाने में जमा करके और उसकी दस गुना रकम जेब में भरकर पपेर लीक धंदे के लाइसेंस दिए जाएं। फिर प्रतिस्पर्धा होगी, मार्केट में पेपर लीक कराने वाले अपनी-अपनी तरफ से डिस्काउंटेड रेट में ऑफर लेकर आएंगे। कोचिंग वालों की मनमानी रुक जाएगी। यह समाजवाद का असली रूप होगा जहां सभी गधे-घोड़े बराबर होंगे। क्या मेरिट और क्या इंटेलिजेंसी, बस बाजार जाओ, अच्छे से मोल-भाव करो और एक बढ़िया सी डिग्री गले में टांगकर ले आओ, घंटों का काम चुटकियों में। जब सबके पास डिग्रियां होंगी तो कोई अफसर और नौकर का भेद नहीं रहेगा, सब ही डॉक्टर हो जाएंगे, इंजीनियर हो जाएंगे। एक बंदा दस-दस डिग्रियां भी टांग सकता है। संस्थाओं में भी स्वागत में माला पहनाने के बजाय डिग्रियां पहनाई जाएंगी। वैसे इस तरफ का काम पहले ही शुरू हो गया है, डॉक्टरेट की डिग्रियां देने वाली यूनिवर्सिटियां कुकुरमुत्तों की तरह उग आई हैं। फॉरेन यूनिवर्सिटी भी आपको डॉक्टरेट की डिग्रियों से नवाज रही हैं, बस जेब से दाम खर्च करने की जरूरत है। डिग्रियों की होम डिलीवरी भी हो जाएगी।
कोई भी नया प्रयोग शुरू-शुरू में परेशानी पैदा करता है। पेपर लीक का मामला जिस तरह से अब हर प्रतियोगी परीक्षा का अभिन्न अंग बन गया है, तो परीक्षाओं के प्रति लोगों और अभिभावकों का मोह भी भंग हो गया है। अब कौन कोचिंग संस्थानों के फ्रंट पोर्शन में टंगे- टॉपर्स की बड़ी सूची को देखकर आकर्षित होगा? अब तो हर टॉपर के पीछे कुछ पेपर लीक की बू लोगों को नजर आती है। जिसने मेहनत करके टॉप रैंक लाए हैं, वो भले ही चीख चीख कर सफाई देता रहे ,अपनी बेगुनाही का सबूत देता रहे, लेकिन कौन तवज्जो देगा?
अभिभावक भी इसे लोकतंत्र की नई कसौटी के तर्ज पर स्वीकार कर लेंगे। जो आज़ादी हमें मिली है, जो लोकतंत्र हमने गर्व करके स्वीकार किया है, उस लोकतंत्र को ढोने के लिए इसके लीकेज सिस्टम को भी इसका अभिन्न बायप्रोडक्ट मानकर ढोना पड़ेगा। जैसे बचपन में बच्चा जब बिस्तर पर लीक करता है तो शुरू-शुरू में अभिभावक परेशान होते हैं, बाद में उसके साथ एडजस्ट हो जाते हैं। बस ऐसा ही हाल होगा लोकतंत्र का। टायर लीक होने के कारण फ्लैट हो गया है, लेकिन इस फ्लैट टायर के साथ भी लोकतंत्र की गाड़ी घसीटी जा रही है।
नेताओं को भी धैर्य रखना पड़ता है। उन्हें पता है जनता की मेमोरी शॉर्ट है। अभी थोड़े दिन हल्ला करेगी, बाद में शांत हो जाएगी। नहीं शांत होगी तो कोई और धर्म के नाम का मुद्दा उछाल देंगे, दंगों में लोगों को व्यस्त कर देंगे। बस, लोगों को तो मनोरंजन चाहिए, उसे आप किसी भी रूप में देते रहो।
जो बच्चे मेहनत कर रहे है, जिनके सपने छीन लिए गए हैं, उनके अभिभावक भले कितने ही पापड़ बेलें, कोर्टों के चक्कर लगाएं रिट लगाएं,सरकार को क्या फर्क पड़ेगा! कोर्ट में एफिडेविट लगा देगी कि मी लार्ड अब पेपर को लीक प्रूफ बनाया जाएगा। इनको कागज की जगह खादी कपडे पर छपवाया जाएगा, शायद तब लीक नहीं करे और इसके साथ ही सरकार के गांधीवादी विचारधारा के होने का ठप्पा भी लग जाएगा! हो सकता है सरकार इसके लिए भी कोई आयोग गठित कर दे। जैसे ही ऐसे किसी आयोग की सूचना मुझ तक लीक होती है तो में आपको ब्रेकिंग न्यूज़ जरूर दूंगा!