28 फरवरी: विज्ञान दिवस पर विशेष
शायर अहमक फफूंदवी का एक शेर है
हिकमत ओ फ़न वतन में फैलाएँ शाहराहें मसल की खुल जाएँ
इल्म ओ साइंस मुल्क में भर दें इस ज़मीं को हम आसमाँ कर दें
शायर कविता की भाषा में विज्ञान के लिए भले ही आशा से भरी बात कह दें, लेकिन हम जानते हैं कि विज्ञान ने ही हमारी ज़िन्दगी में बेहतरी के लिए सब कुछ किया है। लेकिन वहीं इसका उपयोग बुरे कामों के लिए भी हुआ है।
आज बहुत सी साम्राज्यवादी और पूंजीवादी ताकतें विज्ञान का अपने हित में उपयोग कर रही हैं। वे मनुष्यता के विनाश के लिए इसका उपयोग कर रही हैं जो मनुष्य को विज्ञान द्वारा मिलने वाली सुविधाओं की तुलना में उस पर अधिक हावी हैं। युद्ध में प्रयुक्त आधुनिक हथियारों से बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है।
जैसे कि मोबाइल का आविष्कार हमें इसलिए अच्छा लगता है कि यह हमारे काम की वस्तु है लेकिन वहीं बम और बंदूकों के आविष्कार से हमें डर लगता है क्योंकि हम जानते हैं कि यह हमारे विनाश के लिए हैं।
लेकिन जब मोबाइल का उपयोग हम अफवाहें फ़ैलाने, लोगों को डराने, वैमनस्यता फ़ैलाने, और नफरत के बीज बोने लिए करते हैं तब हमें उससे भी डर लगने लगता है।
हम अपने बच्चों का बचपन उसके दुरूपयोग के जाल में फँसता हुआ देखकर भी विज्ञान से डरने लगते हैं। विज्ञान पर हमारी आस्था कम होने का एक कारण यह भी हैं ৷
एक निबंध जो बचपन से गलत पढ़ रहे हैं।
मानव का यह सहज स्वभाव है कि किसी भी चीज़ के सकारात्मक प्रभाव की अपेक्षा नकारात्मक प्रभाव को वह पहले ग्रहण करता है ৷ संदेह करना उसके स्वभाव में है इसीलिये बच्चों को बचपन से निबंध पढ़ाया जाता है, विज्ञान वरदान या अभिशाप ৷
दरअसल यह सोच ही गलत है। विज्ञान कभी अभिशाप हो ही नहीं सकता इसलिए कि वह निरंतर प्रयोग और परिणाम के आधार पर विभिन्न प्रविधियों के अंतर्गत आगे बढ़ता है। इसलिए विज्ञान और तकनीक से जन्म लेने वाली बुराइयों का जिम्मेदार भी विज्ञान है ऐसा कहना उचित नहीं है । हमें विज्ञान के बारे में अपनी धारणा पूरी तरह बदलनी होगी ৷
हमें ठीक से खाना पकाना न आता हो हमसे कुछ पकाते हुए जल जाए या कच्चा रह जाये यानी बिगड़ जाए तो क्या हम कहते हैं कि गैस का चूल्हा ही ख़राब है?
तो आख़िर विज्ञान क्या है?
फिर वही सवाल उपस्थित होता है कि आखिर विज्ञान क्या है ? इसका सरल सा जवाब यही है कि “विज्ञान वस्तुतः अवलोकन, अध्ययन, परीक्षण, तथा प्रयोगों के माध्यम से प्राप्त किसी विषय का क्रमबद्ध ज्ञान है।”
हम जानते हैं कि प्रकृति में प्रारंभ से ही समस्त चीज़ें बिखरी हुई हैं। मनुष्य ने अपनी आवश्यकता के तहत उन वस्तुओं का उपयोग करना प्रारंभ किया। जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में उसने उपलब्ध संसाधनों का दोहन किया फलस्वरूप उसने अनेक वस्तुओं का अविष्कार किया।
अपनी परिकल्पना को मूर्त रूप देते हुए उसने ऐसी अनेक विधियों का विकास किया जो उसके जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को हासिल करने में उसे सुविधा प्रदान करती थीं। विज्ञान का जन्म ही उत्पादन, लागत और समय में कमी लाने के लिए हुआ है।
इस तरह विज्ञान एक विशिष्ट अध्ययन पद्धति है जो व्यक्ति की प्रश्नाकुलता का समाधान करती है, घटनाओं के मूल में जो कारण हैं उनकी खोज करती है, उनका क्रमबद्ध व तर्कसंगत बोध प्रस्तुत करती है, जिसका अलग अलग स्थानों अलग अलग परिस्थितियों में प्रयोगों के माध्यम से परीक्षण किया जा सकता है।
विज्ञान के सिद्धांत, नियम एवं स्थापनाएँ इन्हीं प्रयोगों पर आधारित होते हैं जिन्हें सुरक्षित रखा जाता है। यह कई असफल प्रयोगों के बाद होता है जिनका ध्यान रखते हुए वैज्ञानिकों की अगली पीढ़ी इन्हीं सिद्धांतों पर काम करती है। अनुसंधान अवश्य होते हैं किंतु जो प्रयोग सफल हो चुके हैं उन्हें दोहराया नहीं जाता।
विज्ञान मानता है कि हर बात के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है और उसका एक निश्चित परिणाम होता है। विज्ञान आस्था और विश्वास पर नहीं अपितु प्रमाण पर काम करता है ৷ अगर हम किसी घटना के पीछे उसके कारण और परिणाम में सम्बन्ध नहीं देखते हैं तो वह विज्ञान के अंतर्गत नहीं आएगा ।
इसी तरह इतिहास के नये अर्थ उद्घाटित होते हैं और पुराने अनुभव तथा नये ज्ञान की रोशनी में भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है।