महानगर में ट्रैफिक जाम एक आम समस्या और झंझट है। इससे मुक्ति के विकल्प का जब कोई मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था तब, जन यातायात (पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन) के क्षेत्र में एक महानायक इंजीनियर के रूप में ई श्रीधरन का उदय हुआ। वह ऐसे महान अभियंता सिद्ध हुए जो अपने समर्पित कार्य, दूर दृष्टि और उसके नायक के रूप में उभरे उन्होंने जन यातायात में ट्रैफिक जाम से मुक्ति का अल्टरनेटिव मेट्रो रेल के रूप में प्रस्तुत किया। वह ट्रैफिक जाम की समस्या से टक्कर लेने के विकल्प प्रस्तोता बने। जाम की पीड़ा को वह भली भांति समझते थे जिससे लोग उकता चुके थे।
अकारण समय की बर्बादी, अनचाहा तनाव और अकर्मण्य से जाम में फंसे लोगों के दर्द को वह गहराई तक जान चुके थे अतः मेट्रो रेल के जनक के रूप में वह सामने आये। मेट्रो रेल को महानगरों की तंग सडको या उसके किनारे चलाना संभव नहीं था इस जटिल असंभव से लगने वाले कार्य को इंजीनियर ई श्रीधरन की कुशाग्र मेधा ने संभव और साकार कर दिखाया वास्तव में यह हीरोइक अचीवमेंट है जिसके नायक श्रीधरन हैं।
ऐसे कई बडे शहर जो ट्रैफिक जाम के लिये कुख्यात हो चुके थे और जहां विकास ठप्प पड चुका था वहां पर मेट्रो रेल के आने से विकास को नई गति मिली, कई दम तोडते धंधों और न कारोबारों को जीवन दान मिला और रोजगार के अवसर बढ़े, जो मोहल्ले और इलाके दूर दूर दिखाई देते थे वह मेट्रो रेल की हद में आने से उन्हें डेवलपमेंट को नयी उड़ान मिली जिससे वहां की इकोनॉमी भी मज़बूत हुई, जो श्रमिक दूर जाने से कन्नी काट लिया करते थे वह भी इस सुविधा को पा कर हर्षित हो उठे उन्हें अब दूरी नहीं दिखायी पडती बल्कि वह अपने कार्य स्थलों, कारखानों और कंपनियों में काम करने जाने पर अपने गुरेज को वह त्याग चुके हैं। उनमें यह फीलिंग घर कर गयी कि मेट्रो रेल है तो क्या दिक्कत है। इससे विकासोन्मुख कई प्रोजेक्ट्स शुरू हुए जो श्रमिकों के अभाव के चलते टालमटोल की नीति पर चलने को विवश थे, उन्हें मेट्रो रेल के जुड़ने से लाभ मिले वह अपने कारोबारों को और विकसित करने के लिये उत्साहित हो उठे विशेषकर लघु और मंझोले व्यापार पनपने लगे, जो देश में सर्वाधिक रोज़गार देते हैं। जन यातायात में यह क्रांतिकारी परिवर्तन गेम चेंजर साबित हुआ जिसने कई संभावनाओं के बंद द्वारों को खोल दिया।
वह 24 दिसंबर, 1964 की रात थी। एक ऐसी रात, जो तमिलनाडु के धनुषकोडी शहर के लोगों के लिए खासी स्याह साबित हुई। उस रात आए समुद्री तूफान से वह शहर पूरी तरह तबाह हो गया था। समुद्री लहरें रामेश्वरम को तमिलनाडु से जोड़ने वाले करीब 2500 मीटर ऐतिहासिक पंबन ब्रिज को भी अपने साथ बहा ले गई थीं। उससे भी ज्यादा दुखदाई घटना यह रही, कि जिस वक्त समुद्री लहरों ने इस ब्रिज को अपना निशाना बनाया था, उसी वक्त ब्रिज से एक पैसेंजर ट्रेन भी गुजर रही थी। वह पूरी की पूरी ट्रेन भी लहरों के साथ में समुद्र में समा गई। इंजीनियर ई. श्रीधरन उस वक्त रेलवे की सेवा में आ चुके थे और उनकी तैनाती कर्नाटक में चल रही थी। यह वह दौर था जब वे ऑफिस की ‘इंटरनल पॉलिटिक्स’ के शिकार बने थे और उन्हें ‘सबक सिखाने’ की गरज से उनका जल्दी-जल्दी तबादला भी किया जा रहा था।
जिस रात यह तूफान आया था, श्रीधरन छुट्टी पर बेंगलुरु से बाहर गए हुए थे। तूफान और तबाही की खबरों के बीच श्रीधरन को फोन आया कि उन्हें फौरन अपनी छुट्टी रद्द कर दफ्तर पहुंचना होगा। अगले ही रोज वे अपने दफ्तर पहुंचे, जहां से उन्हें चेन्नई जाने का आदेश मिला। वहां उन्हें एक नए टास्क के लिए ज्वाइन करना था। श्रीधरन चेन्नई पहुंचे तो बताया गया कि उन्हें ध्वस्त हुए पंबन ब्रिज को फिर से स्थापित करना है। इस काम को पूरा करने के लिए उन्हें छह महीने दिए गए। ध्वस्त पंबन ब्रिज को फिर से स्थापित करना ही काफी कठिन था, पर यहां तो चुनौती यह दी गई थी कि इस कठिन काम को छह महीने के अंदर पूरा करना है।
श्रीधरन की मुश्किल तब और बढ़ गई, जब उनकी अगली मीटिंग और बड़े अफसरों के साथ रखी गई। उन्हें बताया गया कि अब यह टास्क सिर्फ तीन महीने में पूरा करना होगा। वजह यह बताई गई कि ब्रिज का जो महत्व है, उसे देखते हुए भारत सरकार इस काम को जल्द से जल्द पूरा करना चाहती है। तीन महीने की अपेक्षा रेल मंत्री की तरफ से ही है, ऐसे में उसे नकार पाना किसी के अधिकार में नहीं है। श्रीधरन ने समझाने की कोशिश की कि उस ब्रिज के 146 में से 126 गार्डर बह गए हैं। ब्रिज की लंबाई भी ज्यादा है। एक बार हमें मौके पर जाने दीजिए, फिर बता पाऊंगा कि कितना वक्त लग सकता है। लेकिन उन्हें जवाब मिला कि तीन महीने से एक दिन भी ज्यादा आपको नहीं मिलेगा, बाकी आप जानिए। अफसरों से दो टूक सुनने के बाद उन्होंने यह ठान लिया और इस कार्य को उन्होंने केवल 46 दिनों में पूरा कर सबको हैरत में डाल दिया। इस उपलब्धि के लिये उन्हें रेलवे द्वारा सम्मानित किया गया। उनके इस बेमिसाल कार्य की हर ओर चर्चा होने लगी।
इसके बाद उन्हें सन 1970 में देश के पहले मेट्रो रेल “कोलकाता मेट्रो” का प्लान, डिज़ाइन और उसके कार्यान्वयन की ज़िम्मेदारी दी गयी तब कोलकाता में ट्रैफ़िक जाम से जन सामान्य बहुत परेशान था। इस परियोजना के निर्माण कार्य को भी उन्होंने निर्धारित समय से पूर्व करा कर दिया जिससे वहाँ के नागरिकों में हर्षोल्लास छा गया।
इस भव्य सफल प्रोजेक्ट ने देश में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर इंजीनियरिंग की आधारशिला रखी। सन 1979 में जब उनकी तैनाती कोचीन शिपयार्ड नें हुई तब वह अनुत्पादकता के कठिन दौर से गुजर रहा था। शिपयार्ड का पहला जहाज़ “एम वी रानी पद्मिनी “ का प्रोजेक्ट काफी लेट हो चुका था उस समय उन्होंने अपने तजुर्बे कार्य की दक्षता और अनुशासन से शिपयार्ड का कायाकल्प कर दिया और सन 1981 में उनके सक्षम नेत त्व में शिपयार्ड का पहला जहाज़ “एम वी रानी पद्मिनी” बन कर चल पडा।
इस महान इंजीनियर के जीवन की सबसे बड़ी चुनौती कोंकण रेलवे की भव्य अनोखी और कठिनतम परियोजना को पूरा करना था। इस असंभव से वाले कार्य को पूरा करने के लिए तत्कालीन रेल मंत्री जार्ज फर्नांडीज ने श्रीधरन के नाम पर अपनी सहमति दी वह इस जुझारू इंजीनियर की काबिलियत से भली भांति परिचित थे। कोंकण रेलवे को विश्व के सबसे बड़े रेल प्रोजेक्ट्स में से एक माना जाता है।
इसके 760 कि मी के रास्ते में 82 किमी के एक रास्ते में 93 सुरंगें खोदी गयीं जिसमें 150 पुलों का निर्माण किया गया। इस विशिष्ठ परियोजना को जिसे बनने में सालो लगने का अनुमान लगाया जा रहा था उसे श्रीधरन के निर्माण कौशल ने केवल 8 वर्षों में पूरा कर दिखाया जिससे उनकी हर ओर वाहवाही होने लगी।
कोंकण रेलवे का उन्होंने इतने अद्भुत रूप से बनाया कि यात्री इससे इसलिए सफर करते हैं कि वह कोंकण की रमणीय प्राकृतिक छटाओं का भरपूर आनंद ले सकें। इसके शुरू होने के बाद कई कई महीनों तक इस ट्रेन की बुकिंग हो जाया करती जिससे इस भारी भरकम प्रोजेक्ट पर हुए खर्च से सिर्फ सुविधा ही नहीं मुनाफा भी होने लगा। इसे कहते हैं विज़नरी डेवलपमेंट इंवेस्टमेंट एंड प्रॉफिट जिसे इस इंजीनियर ने चरितार्थ कर दिखाया।
दिल्ली मेट्रो आरंभ होने के बाद दिल्ली हो कर लौटे जन से यह पूछना एक शगल बन गया था कि क्या उसने मेट्रो रेल से सवारी की। कई वर्षों तक यात्रियों द्वारा आनंद के लिये इससे यात्रा की जाती रही। इससे उसमें लगे खर्च को मुनाफे में आने और उसे और विस्तारित करने में कोई बाधा नहीं आयी। सन 1995 से 2012 तक श्रीधरन इस प्रोजेक्ट के कप्तान रहे उनकी देखरेख में इस योजना को भी उन्होंने निर्धारित समय के पूर्व पूरा कर प्रशंसा पायी। आधुनिकता के पहियों पर देश को चलाने की आशाएं श्रीधरन से जुड गयी। एक के बाद एक भव्य परियोजनाओं को पूरा कर वह “मेट्रो मैन“ के रूप में प्रसिद्ध हो गये। उनके उत्कृष्ट कार्यों को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मानों से नवाज़ा गया। प्रसिद्ध पत्रिका “टाईम“ ने उन्हें एशिया का हीरो बताते हुए उनके योगदानों पर आलेख प्रकाशित किये, जो किसी भी इंजीनियर के लिये गौरवपूर्ण उपलब्धि है।
ई श्रीधरन मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के लिये बहुत सम्मानित नाम बन चुका है। इसके लिए उनकी कार्यप्रणाली ही मुख्य कारक है। निर्धारित समय में या उसके पूर्व योजना को पूरा करने, आकर्षक बनाने और उसी से कमाई करवा कर वह सरकारी योजनाओं को बोझ बनने के बजाए उसे इतना कमाऊ पूत बना देते हैं कि लागत जल्द निकल आती है।
सरकारी योजना होते हुए भी उन्होंने उससे जुडी जन आकांक्षाओं, सुविधाओं और उनके डेवलपमेंट पर ध्यान दिया। इतना विज़नरी डेडिकेशन अचंभित करता है। आज मेट्रो रेल सबसे बडे रोज़गार प्रदाताओं में से एक है।
श्रीधरन का जन्म 12 जून 1932 को पलक्कड़ के पत्ताम्बी (केरल) में हुआ। आरंभिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में हुई। तदुपरांत उन्होंने पाल घाट में पढ़ाई पूरी की और काकीनाडा के इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल में इंजीनियरिंग की डिग्री पाई। स्कूल की पढाई के समय पूर्व चुनाव आयुक्त टी शेषन उनके सहपाठी थे। कुछ समय तक श्रीधरन ने लेक्चरर का कार्य भी किया। सन 1953 में वह यू पी एस सी की परीक्षा पास कर रेलवे में इंजीनियर के पद पर कार्य करने लगे वहीं से उनकी सफल गौरव पूर्ण यात्रा शुरू हुई।
श्रीमद भगवत गीता को उन्होंने अपने कार्य और जीवन का सिद्धांत और सूत्र बनाया और उसी के बताए दर्शन पर आगे बढते चले गये उनके कार्यों में पूरी पारदर्शिता होती जिससे वह विवाद मुक्त रहे। अपने ही बनाये प्रोजेक्ट्स से जब भी सफर करना होता तो वह वह अपनी जेब से पैसा देकर टिकट लेते। अब ऐसे मूल्य और आदर्श बहुत दुर्लभ हैं।
उनकी लीडरशिप क्वालिटी को इसी से समझा जा सकता है कि वह अपने प्रोजेक्ट में वे श्रमिकों के साथ फावड़ा, सब्बल लेकर खडे हो जाते जिससे श्रमिक उन्हें अपनी टीम का हिस्सा मानते और दिये गये कार्य को दुगने उत्साह से करने लगते। यह वर्तमान मैनेजमेंट की बडी थ्योरी होनी चाहिये।
इलाट्टूवल्लपित श्रीधरन मेट्रो मैन। उनका पूरा नाम बन चुका है जो अपने ऐतिहासिक कार्यों और योगदान से विराट और यशस्वी हो गया है। ई श्रीधरन के जीवन पर दो जीवनी भी लिखी जा चुकी है. पहली है एमएस अशोकन द्वारा लिखित ‘कर्मयोगी: इ श्रीधरनते जीविथा कथा’ (द स्टोरी ऑफ़ इ. श्रीधरंस लाइफ) और दूसरी जीवनी पीवी अल्बी द्वारा लिखित ‘जीविथाविजयाथिन्ते पादपुस्तकम’ (अ टेक्स्टबुक ओं सक्सेस ऑफ़ लाइफ)।
ई श्रीधरन को साल 1963 में ‘रेलमंत्री’ पुरस्कार, 2001 में ‘पद्म श्री’, 2002 में उन्हें ‘श्री ओमप्रकाश भसीन अवार्ड फॉर प्रोफेशनल एक्सीलेंस इन इंजीनियरिंग’ पुरस्कार, 2003 में उन्हें टाइम पत्रिका की ओर से ‘ओने ऑफ़ अशियाज हीरोज’ और ‘आल इंडिया मैनेजमेंट असोसिएशन अवार्ड फॉर पब्लिक एक्सीलेंस’ पुरस्कार, से सम्मानित किया गया।
साल 2005 में ई श्रीधरन को ‘आईआईटी दिल्ली’ की तरफ से ‘डॉक्टर ऑफ़ साइंस’ ‘भारत शिरोमणि अवार्ड’ और ‘नाईट ऑफ़ द लीजन ऑफ़ हॉनर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2007 में ई श्रीधरन को सीएनएन-आईबीएन द्वारा ‘इंडियन ऑफ़ द ईयर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
2008 में ई श्रीधरन को भारत सरकार द्वारा ‘पद्मविभूषण’ नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2009 में ई श्रीधरन को राजस्थान टेक्निकल यूनिवर्सिटी कोटा द्वारा ‘डी लिट’ की उपाधि और आईआईटी रूडकी के द्वारा ‘डॉक्टर ऑफ़ फिलोसोफी’ की उपाधि दी गई।
2012 में ई श्रीधरन को ‘श्री चित्र थिरूनल नेशनल अवार्ड’ और एस आर जिंदल प्राइज से सम्मानित किया गया। 2013 में ई श्रीधरन को टीकेएम 60 प्लस अवार्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट और महामाया टेक्निकल यूनिवर्सिटी के द्वारा ‘डॉक्टर ऑफ़ साइंस’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा इसी साल उन्हें रोटरी इंटरनेशनल द्वारा ‘फॉर द सके ऑफ़ हॉनर’ तथा ग्रिफल्स द्वारा ‘लाइफटाइम अचीवमेंट गवर्नेंस अवार्ड’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साल 2013 में ई श्रीधरन को जापान का राष्ट्रीय सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ़ द राइजिंग सन-गोल्ड एंड सिल्वर स्टार’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।