कविता जीवन की है धड़कन,
कविता साँसों का है मधुबन।
कविता भीतर की रुनक झुनक,
कविता प्राणों की महक चहक।
कविता सुर की सरगम भी है,
कविता खुशियाँ और ग़म भी है।
कविता अंतर में बसती है,
कविता आँसू को चखती है।
कविता सीमाओं पर डटती,
कविता स्नेह को है कसती।
शब्द-ब्रह्म ही तो कविता ,
जिसका है ‘वो’ ही रचयिता।
न ,उसे तलाश मत करना तुम,
वो तो अंतस का मन-आँगन।
बस झाँक ज़रा सा लेना तुम,
अपने भीतर पा लेना तुम।
मितरा,पूरा जीवन ही है कविता,
इसके बिन सूखी मन-सरिता।
कविता के बिन ये जीवन क्या?
कविता के बिन दिन ,मौसम क्या?
आओ,कुछ गुनगुन कर लें मिल,
मुस्का लें सब ,मन जाएँ खिल!!