हीरा देवी चतुर्वेदी जी का जन्म सन 1915 ई0 में मध्यप्रदेश में हुआ था। यह छायावाद कालखंड की प्रसिद्ध रचनाकार रही हैं। इन्होंने कविता, कहानी और एकांकी नाटकों के क्षेत्र में बड़ी सफलता प्राप्त की थी। इनके तीन रचनाएं मंजरी, नीलम और मधुबन प्रकाशित हुए है। इनमें संग्रहित अनेक गीतों को इन्होंने रेडियो के द्वारा समय-समय पर भी प्रसारित किया था। रेडियो पर इनके गीतों का प्रसारण अपनी मधुरता के कारण जाना जाता रहा है। इनकी कविताओं में जीवन का संगीत कल्पना अनुभूति कोमल भावनाएं प्रमुखता से समाहित रही हैं। इनकी कविताओं में छायावादी निराशा, कल्पना और उसकी प्रतिध्वनि हमें सुनाई देती है। कृष्ण और राधा के माध्यम से उन्होंने प्रेम परक रचनाएं भी की हैं। भाषा की दृष्टि से इनकी भाषा मधुर और परिष्कृत है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है –
आंख मिचौली जीवन की सबको ही भारमाए
भूल भुलैया माया की यह सबको ही भटकाए
इनकी रचना में राष्ट्र की पीड़ा और उसके कल्याण का चिंतन केंद्र में रहा है।
चाहूँ माँ की हित वेदी पे
हंसते हंसते जल जाना
कोमल पुष्पों को ठुकराकर
कांटों पर ही सो जाना
हिंदी में साझा रचना के कई उदाहरण हैं जैसे शेख/ आलम आदि। मंजरी एक साझा काव्य संग्रह है जिसमें हीरा देवी की 14 तथा उनके पति मस्त जी कि 27 रचनाएं एक साथ संग्रहित हैं। मंजरी में दांपत्य जीवन के प्रेम, इंतजार, वियोग आदि भाव बोध की रचनाएं हैं। इनकी कुछ रचनाएं घोर यथार्थपरक हैं। ऐसी एक कविता मधुमास में है –
टुकुर-टुकुर मैं खड़ी दिखती
धन वालों की शान निराली
उनके कुत्ते बिल्ली पीते
दूध मलाई भर भर खाली
किंतु पसीना बहा रात दिन
हम मजदूरी करने वाले
पार्टी कहां पेट भर भोजन
वस्त्र वस्त्र के पढ़ते लाले
इस प्रकार की अनेक कविताएं हीरा देवी की ऐसी हैं जो छायावादी भाव बहुत से उत्तर घोर यथार्थवाद को अंकित करती हैं। हीरा देवी की यही विशेषता उन्हें अपने समकालीनों से अलग करती है। यथार्थ भाव बोध के अतिरिक्त हीरा जी ने भारतवर्ष आकांक्षा जैसी कई कविताएं राष्ट्रीय प्रेम पर लिखी हैं जिसमें भारत का गौरव और मातृभूमि के लिए बलिदान हो जाने की भावना है।
इनका कहानी संग्रह उलझी लड़ियां काफी प्रसिद्ध रहा है। इसकी प्रसिद्धि का परिणाम यह रहा है कि 1951 में उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा इस कहानी संग्रह पर 500 रू0 का पुरस्कार प्रदान किया गया था। हीरा देवी ने घर की शोभा नामक निबंध संग्रह भी लिखा है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनके एकांकी नाटक भूल भुलैया, मुंह दिखाई, रंगीन पर्दा, माटी की मूरत, शंखनाद, बड़ी बहू इत्यादि एकांकी प्रकाशित होते रहे हैं। एकांकी नाटक के संदर्भ में वह कहती हैं कि “एकांकी नाटक ने आज हिंदी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। यद्यपि इसका इतिहास केवल दो युग का है फिर भी इसने अपनी नवीनता और उपयोगिता के कारण सभी को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया है।
लघु कथा जहां मानव जीवन की तीव्र अनुभूति के आवरण के साथ हमारी संवेदनशीलता पर करारी चोट कर हमें झकझोर देती है वहां एकांकी हमारे जीवन की घटनाओं और समस्याओं के दृश्य रूप में उपस्थित कर हमारे मन को छू लेता है। हमारी आंतरिक प्रवृत्तियों और मनुष्यों पर सूट कर देता और हमारा यथार्थ रूप प्रकट कर देता है।“ (रंगीन पर्दा : भूमिका से) इनके एकांकी की मुख्य विशेषता रही है मध्य वर्ग की समस्याओं का चित्रांकन। इनकी रचनाओं का मुख्य स्वर सभ्य समाज में शिक्षितों का मिथ्याचार, सच्चाई, मध्यवर्ग का खोखलापन, सभ्यता की आड़ में होने वाली धोखेबाजी, प्रेम की मधुरता में छिपे क्रूर व्यवहार इत्यादि रहे हैं। प्रोफेसर रामचरण महेंद्र कहते है कि – “श्रीमती हीरा देवी चतुर्वेदी के जगत में कहीं अमीरी की धूप है तो कहीं गरीबी की छाया, एक ओर मंगल गीतों का स्वर गूंज रहा है तो दूसरी ओर मातम मनाया जा रहा है। इनमें न केवल समस्या तथा रंगों की विभिन्नता है वरन नई पुरानी भारतीय सभ्यता के संघर्ष का चित्रण भी है।
इन्होनें एकांकी में गीतों का भी समावेश किया है। बैकग्राउंड से आता हुआ संगीत इनके एकांकी की प्रमुख विशेषता रही है। छायावादी भाव बोध के चक्रव्यूह में उलझी हिंदी साहित्य की धारा से एक श्रेष्ठ रचनाकार का नाम इतिहास में शामिल नही हो पाया इसकी भरपाई नहीं की जा सकती है| आज हीराजी को याद करके हिंदी साहित्य के पाठक को गर्व की अनुभूति होनी चाहिए|