9 जनवरी: प्रकाश पर्व
गुरु गोबिंद सिंह जयंती
#चार_मुए_तो_क्या_हुआ_जीवित_कई_हजार
गीता में कहा गया है कि ‘कर्म करो, फल की चिन्ता न करो’!। ठीक इसी प्रकार श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा है ‘देहि शिवा वर मोहे इहै, शुभ करमन कबहूँ न टरूँ’ यानी हम अच्छे कर्मों से कभी पीछे न हटें, परिणाम भले ही चाहे जो भी हो।
इतिहास पुरुष कभी भी राजसत्ता प्राप्ति, जमीन-जायदाद, धन-सम्पदा या यश प्राप्ति के लिए लड़ाइयां नहीं लड़ते। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ऐसे इतिहास पुरुष थे, जिन्होंने ताउम्र अन्याय, अधर्म, अत्याचार और दमन के खिलाफ तलवार उठाई और लड़ाइयां लड़ीं। गुरु जी की 3 पीढ़ियों ने देश-धर्म की रक्षा के लिए महान बलिदान दिया। आज देश अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ ‘ आजादी के अमृत महोत्सव” के रूप में मना रहा है, ऐसे में पूरे देश में स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों, बलिदानियों को याद किया जा रहा है। सिखों के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को उनकी जयंती पर नमन कर प्रत्येक भारतवासी गर्व महसूस कर रहा है।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान दार्शनिक, प्रख्यात कवि, निडर एवं निर्भीक योद्धा, महान लेखक, युद्ध कौशल और संगीत के पारखी भी थे। उनका जन्म 1666 में पटना में हुआ। वे 9वें सिख गुरु, श्री गुरु तेग बहादर और माता गुजरी के इकलौते बेटे थे, जिनका बचपन का नाम गोबिंद राय था।
सन् 1699 में बैसाखी के दिन श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर 5 व्यक्तियों को अमृत चखा कर “पांच प्यारे” बना दिया। इन पांच प्यारों में सभी वर्गों के व्यक्ति थे। इस प्रकार से उन्होंने जात-पात मिटाने के उद्देश्य से अमृत चखाया। बाद में उन्होंने स्वयं भी अमृत चखा और गोबिंद राय से गोबिंद सिंह बन गए।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के 4 पुत्र थे, जिनके नाम साहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह, साहिबजादा फतेह। उन्होंने अपने चाऐं पुत्र धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान किए। मुगल शासक द्वारा दो पुत्रों जोयवबर सिंह और फतेह सिंह को सरहिंद में दीवार में चुनवा दिया गया दो पुत्र अजीत सिंह और जुझार सिंह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने पुत्रों की शहादत पर कहा था- इन पुत्रन के सीस पर, वार दिए सुत चार / चार मुए को क्या हुआ, जीवित कई हजार॥
गुरु गोबिंद सिंह बेहद निडर और बहादुर योद्धा थे। उनकी गिनती महान लेखकों और रचनाकारों में होती है। उन्होंने जाप साहिब, अकाल उस्तत, विचित्र नाटक चंडी चरित्र, शास्त्र नाम माला, अथ पंख्या चरित्र लिख्यते, जफरनामा और खालसा महिमा जैसी रचनाएं रची। बिचित्र नाटक उनकी आत्मकथा माना जाता है। उनकी कृतियों के संकलन का नाम दसम ग्रंथ है।
यदि आज भारत में सद्भाव, भाईचारा एबं धर्म स्थापित है तो उसका पूरा श्रेय गुरु गोबिंद सिंह को जाता है। उन्होंने कहा था- मन में साधु बनो, व्यवहार में मधुरता लाओ और भुजाओं में सैनिक की वीरता लाओ। तब उन्होंने संत सिपाही का नारा दिया और वे स्वयं सबसे पहले संत सिपाही बने।
गुरु गोबिंद सिंह की जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। आज देश में जगह-जगह खालसा पंथ की झांकियां निकाली जाती है। इस दिन खासतौर पर लंगर का आयोजन किया जाता है। आज के दिन पटना साहिब गुरुद्वारे में संगतों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस गुरुद्धरे में गुरु गोबिंद सिंह से जुड़ी सभी चीजें मौजूद हैं।
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने लंगर व्यवस्था लागू की थी। सिख धर्म के सभी दस गुरुओं ने देश ही नहीं पूरे विश्व में आपसी सद्भाव, प्रेम एवं भाईचारे का संदेश देते हुए मानव-मानव को समान माना। सिख धर्म के सभी धर्म गुरुओं का संदेश है कि कोई व्यक्ति बड़ा और छोटा नहीं है, सभी मनुष्य समान है। देश में व्याप्त जाति व्यवस्था एवं ऊंच-नीच समाप्त करने के लिए यह लंगर व्यवस्था लागू की थी, जो 550 वर्षों से अनवरत चली आ रही है। इस लंगर व्यवस्था से देश-विदेश के लाखों जरूरतमंद व्यक्तियों को भोजन उपलब्ध हो रहा है।देश विदेश में जहां भी आपदा आती है। सिख धर्म के अनुयायी मानव सेवा के लिए जुट जाते हैं। चाहे भूकंप हो, बाढ़ हो कोबिड-19 कोरोना काल या किसान आंदोलन हो, सिख धर्म के अनुयायियों ने बढ़-चढ़ कर मानव सेवा की है। कोरोना काल में सिख धर्म के दानवीरों ने कोरोना पीड़ित लोगों को चिकित्सा सुविधा, दवाइयां, गैस सिलेंडर एवं भोजन उपलब्ध कराने का उल्लेखनीय कार्य किया। देश में संकट कालके समय सिख धर्म के अनुयायियों ने तन-मन-धन से मानव सेवा करके आपसी सौहार्द, सद्भाव एवं भाईचारे की मिसाल कायम की है।
स्वामी विवेकानंद जी ने गुरु गोबिंद सिंह जी को एक महान दार्शनिक, संत, आत्मबलिदानी, तपस्वी और स्व अनुशासित बता कर उनकी बहादुरी की प्रशंसा की थी। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था मुगल काल में जब हिन्दू और मुसलमान दोनों ही-धर्मों के लोगों का उत्पीड़न हो रहा था, तब श्री गुरु गोबिंद जी ने अन्याय, अधर्म-और अत्याचारों के खिलाफ और उत्पीड़ित जनता की भलाई के लिए बलिदान दिया, जो एक महान बलिदान है। इस प्रकार से गुरु गोबिंद सिंह जी महानों में महान थे।
खुद को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि जीवन के लगभग प्रारम्भिक 25 वर्ष मैंने न सिर्फ पंजाबी बिरादरी के साथ उनके हर सुख-दुख मे सम्मिलित होकर बिताया, बल्कि सिक्ख धर्म से बहुत कुछ सीखा और अपनाया भी। जितनी खूबसूरती से हिन्दी बोल सकता हूँ उतनी ही खूबसूरती से पंजाबी न सिर्फ बोलता हूँ बल्कि गुरुमुखी लिख भी सकता हूँ। बहुत दुख होता है जब यह पढ़ता हूँ कि हिन्दू -मुस्लिम, सिख, ईसाई … इत्यादि। सिख कोई अलग कौम नहीं थी बल्कि हर घर से एक युवक को देश की आजादी की लड़ाई और मुगल आक्रान्ताओं से लड़ने के लिए बनाया गया एक समूह था जिसे हमने लगभग हिन्दू-धर्म से ही अलग कर दिया। भारत शायद ही कभी भी सिक्खों की कुर्बानियों से उऋण हो सके।
प्रकाश पर्व पर सादर स्मरण।