भाग 1
गांधीजी के जीवन के अंतिम समय की प्रार्थना सभा बड़ी ही दिलचस्प और प्रेरक थी। गांधीजी के जीवन की एक नियमित चीज प्रार्थना सभा थी, वे जहाँ-जहाँ जाते प्रार्थना सभा साथ-साथ चलती थी। गांधी की प्रार्थना सभा अनेक काम करती थी। उस प्रार्थना सभा में सिर्फ प्रार्थना नहीं होती थी । गांधी जी की प्रार्थना सभा पर विश्व के कई विद्वानों ने शोध किया है और काफी कुछ लिखा है। गांधी की प्रार्थना सभा को पढ़ना और सुनना एक विलक्षण अनुभव है। इस प्रार्थना सभा में गांधीजी रोजाना के मसले पर लोगों से बात करते थे।
गांधी जी के पास लगातार चिट्ठियां जाती थीं। कई बार ऐसे प्रश्न गांधी से किये जाते थे जो सार्वजनिक महत्व के होते थे। गांधी उन्हें पढ़कर सुनाते थे, और उनके जवाब देते थे। कई ऐसी चिट्ठियां भी जाती थीं जिमें गांधीजी की आलोचना की जाती थी। गांधीजी उस आलोचना को पढ़कर सुनाते थे और फिर उसका जवाब देते थे। यानी गांधी की प्रार्थना सभा एक ऐसा मंच या फोरम थी जिसमें गांधी लगातार देश विदेश, स्वच्छता, गौ रक्षा, सभी धर्मों के अच्छे वचन, व्यक्तिगत आलोचना से संबंधित प्रश्नों को पूरे धैर्य से सुनते और उनका उत्तर लोगो के सामने रखते।
गाँवों का उद्धार कैसे किया जाए, इसका मौलिक कार्यक्रम अपनी प्रार्थना सभा के माध्यम से गांधीजी लोगों को बतलाते थे। वे कहते ‘’मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ कि गाँव का पीने का पानी कैसे स्वच्छ रखा जाए। आप लोग खुद कैसे स्वच्छ रहें। हम सब का शरीर मिट्टी से ही बना है । इस मिट्टी का सही उपयोग करके हम अनेक रोगों से छूट सकते हैं। जो हवा हमारे चारों ओर है उस हवा में हमें शुद्ध करने की और हमारा ओज बढाने की अद्भुत क्षमता है। धूप यदि इसका सही उपयोग किया जाए तो हमारा जीवन क्रांतिकारी ढंग से पलट सकता है।”
हर गाँव में वे लोगों को प्रार्थना सभा में स्वच्छता का महत्व बतलाते। लोगों को साथ लेकर कुंओं पर जाते और उन्हें बताते कि कुँए में कहाँ-कहाँ से गंदगी आ रही है और उसे कैसे रोका जाए। वे जिस गाँव में जाते थे उस गाँव की शौच व्यवस्था की जांच करते थे और उन्हें बतलाते कि साफ सुथरे शौचालय कैसे तैयार किये जायें। वे खुदाई कार्य में गाँव वालों के साथ खुद कुदाल चलाते।
गांधीजी प्रार्थना सभा में कहते थे कि सफाई के मूलभूत नियमों से अनिभिज्ञ होने के कारण ही देश के आम आदमी की औसत उम्र इतनी कम है। वे जब भी गाँव, देहात में लोगों की गंदी आदतों जैसे जहाँ सूझे वहीं शौच करना, थूक देना, नाक छिनकना और उन्हीं रास्तों पर पैदल चलना आदि को देखते तो विनम्रता पूर्वक उन्हें प्यार से समझाते। वे लोगों को मामूली रेत और कोयले से ऐसी छन्नी तैयार करना भी सिखाते जो पीने के पानी को पूर्णतया शुद्ध कर दे। वे कहते थे कि जो हम कहते हैं और जो हम कर सकते हैं उसका अंतर इतना बड़ा है कि यदि उसी को समझ लिया जाए तो दुनिया की अधिकांश समस्याएं हल होती दिखलाई देने लगेंगी।
गांधी की प्रार्थना सभाओं का वर्णन जी डी तेंदुलकर की किताब ‘द महात्मा – लाइफ ऑफ मोहनदास करमचंद गांधी’ (यह 8 भागों में है और यह पब्लिकेशन डिविजन द्वारा प्रकाशित है) में किया गया है।
एक बार प्रार्थना सभा में किसी व्यक्ति ने आरोप लगाया कि क्या आप अनिश्चयवादी हैं या यह पौरूषहीनता है?
गांधीजी ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया कि क्या हम अपने विचार में पक्के रहें, अड़ियल रहें और किसी दूसरे के कहने पर हम अपने विचार पर शक भी नहीं करें तो ही हम पुरुष हैं? ऐसा करने पर तो हम एक ही सांचे में ढले हुए व्यक्ति (Monolith) कहलायेंगे। मैं ऐसे पुरुषत्व में विश्वास नहीँ करता।
एक सज्जन ने अंग्रेजी में प्रश्न किया कि महात्मा जी आप बोलते हुए बहुत ज्यादा ‘शायद’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं, क्यों?
गांधी जी ने अंग्रेजी में कहा कि मुझ पर आरोप है कि मैं if (शायद) शब्द का बहुत इस्तेमाल करता हूँ। लेकिन भाषा में इस तरह के प्रयोगों के बारे में हमें सोचना चाहिए कि जब बहुत ही निश्चयात्मक तरीके से कुछ बोलते हैं और जब हम जो बोल रहे है उस पर संदेह करते हैं उसमें क्या फर्क है। इससे किस चीज का पता चलता है। जैन मुनियों ने यह धर्म निकाला कि एक सत्य के अनेक पहलू होते हैं। जिसे जो पहलू दिखाई देता है वह उस पहलू पर अड़ा रहता है। इसलिए यह कहना हिंसा है कि ‘ केवल यही ठीक है’। एक सच्चा अहिंसक मनुष्य इतना ही कह सकता है कि ‘शायद यह ठीक हो’ । क्योंकि सत्य के सभी पक्ष सभी मनुष्यों को एक साथ दिखाई नहीं देते।
24 नवम्बर 2021
क्रमशः —