35 रुपये रिश्वत लेकर रपट लिखना तय हुआ। रपट लिख कर मुंशी ने किसान से पूछा ‘बाबा हस्ताक्षर करोगे कि अंगूठा लगाओगे?’ किसान ने हस्ताक्षर में नाम लिखा ‘चौधरी चरण सिंह’ और कुर्ते की जेब से मुहर निकाल कर कागज पर ठोंक दी, जिस पर लिखा था ‘प्रधानमंत्री, भारत सरकार’। परिणाम, थाना सस्पेंड?
चौधरी चरण सिंह ने सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार, शोषण और अन्याय के खिलाफ अपना सारा जीवन लगा दिया। वह समाज में फैले हुए भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करना चाहते थे। वे राजनीति में भ्रष्टाचार, शोषण और अन्याय को सहन नहीं करते थे। वे सरकार में भ्रष्ट अधिकारियों के सख्त विरोधी थे। उनकी मान्यता थी कि भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे की ओर चलता है। यदि शीर्ष पर बैठे नेता और अधिकारी ईमानदारी का आचरण करें तो आम लोगों में स्वतः: ही ईमानदारी आ जायेगी। जब वह मुख्यमंत्री बने, तो प्रदेश के कई विभागों में भ्रष्ट अधिकारी लम्बे अवकाश पर चले गये। उन्होंने आदेश पारित किया कि यह भ्रष्ट अधिकारी या तो अवकाश रद्द करें या त्यागपत्र दे दे।
चौधरी चरण सिंह एक ईमानदार व कुशल प्रशासक थे। वह ऐसे भारत की कल्पना करते थे जिसमें सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, पक्षपात, जातिवाद और भाई-भतीजावाद से पूरी तरह मुक्त हो। चौधरी चरण सिंह कहते थे कि सबसे पहले सरकार का ठीक होना जरूरी है। सरकार ठीक होगी तो प्रशासन अपने आप ठीक हो जायेगा और प्रशासन ठीक होगा ती जनता अपने आप सही रास्ते पर चलेगी। राजनीतिक भ्रष्टाचार के वह सदैव विरोधी रहे उन्होंने कभी भी चुनावों में उद्योगपतियों या पूंजीपतियों से पैसा नहीं लिया। इस संबंध में चौधरी साहब कहते थे कि जो भी नेता चुनावों में बड़े-बड़े पूंजीपतियों और व्यापारियों से धन लेगा, वह व्यापारी द्वारा कालाबाजारी करने पर उसकी मदद भी करेगा।
चौधरी चरण सिंह ने गांव के एक किसान के घर में पैदा होकर देश के सर्वोच्च पद प्रधानमंत्री को सुशोभित किया गया। 1930 में नमक सत्याग्रह में जेल जाने से ही उनकी राजनीतिक यात्रा प्रारम्भ हुई, जो 29 मई 1987 को जाकर खत्म हुई । इस दौरान उन्होंने उत्तर प्रदेश में संसदीय सचिव, कृषि, विधि, न्याय, सूचना, वन, पशुपालन एवं राजस्व मंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्र में गृह व वित्त मंत्री, उप प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री पद का भी दायित्व संभाला।
चौधरी चरण सिंह के व्यक्तित्व का विकास गांधी युग की ही देन है। वह कहते थे कि गांव में ग्राम उद्योग व लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना की जाए जिससे गांव में रहने वाले लोगों में व्याप्त बेरोजगारी को इन उद्योगों के द्वारा खत्म किया जा सके। इस प्रकार भारतीय समाज में बेरोजगारी की समस्या को सबसे बड़ी थी और आज भी इस देश में व्याप्त है इसे दूर करने के लिए आजीवन कार्यशील रहे। ग्राम स्वराज स्वास्थ्य और राष्ट्र-निर्माण को प्राप्त करने के उद्देश्य से उन्होंने महात्मा गांधी को अपना वैचारिक गुरु माना एवं उन द्वारा प्रशस्त मार्ग पर सारा जीवन चलते रहे।
चौधरी चरण सिंह का मानना था कि हमारे देश के विकास में बहुराष्ट्रीय कंपनियां घातक हैं। क्योंकि यह कम्पनी यहां पर पूजी लगाकर अपना लाभ कमाती हैं तथा हमारे देश के नौजवानों के लिए बेरोजगारी की समस्या भी पैदा करती है। वे कहते थे कि बहुराष्ट्रीय कम्पनी इस देश के लिए ठीक नहीं है। हमें अपने उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए जिसमें श्रम-शक्ति का प्रयोग ज्यादा और पूंजी कम लगाई जाए। इससे देश की गरीबी, बेरोजगारी दोनों दूर होंगी। उन्होंने समकालीन भारतीय समाज की समस्याओं को दूर करने के लिए गांधीवादी विचारधारा को अपने जीवन में अपनाया है। गांधी जी की तरह चौधरी चरण सिंह गांव के स्वराज की बात करते थे। गांधीजी के स्वराज का अर्थ ग्रामीण जनता की गरीबी दूर करना था।
उनकी दृष्टि में लोकतंत्र में नागरिक अवज्ञा के लिए कोई जगह नहीं है। चौधरी चरण सिंह का ग्राम स्वराज और राष्ट्र-निर्माण के प्रति दृष्टिकोण हमेशा सामने रहा, चाहे वह सरकार में रहे या सरकार से बाहर, वे हमेशा गांव में बसने वाले गरीब, किसान, मजदूर, एवं पिछड़ों के प्रति सोच रही और वह इनके विकास के बारे में सोचते रहते थे।
चौधरी चरण सिंह ने देश के विकास के लिए गांव और खेतों को देश के विकास का आधार माना। उन्होंने देश की मौजूदा बदहाली के लिए गरीबी, बेरोजगारी और आर्थिक हालात को दोषी ठहराया और एक सुधार सिद्धांत पेश करने का काम किया। चौधरी चरण सिंह ने किसानों की समस्याओं के बारे मे उनका चिंतन था कि एक ग्रामीण या किसान की समस्याओं को वहीं अधिकारी, व्यक्ति हल कर सकता है, जिसकी सोच वस्तुओं के प्रति किसान जैसी ही हो।
चौधरी चरण सिंह के अच्छे शासक का दृष्टिकोण हमें तब दिखाई देता है, जब उन्होंने 1954 में प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को एक पत्र लिखा है कि- ”संविधान में संशोधन कर ऐसी व्यवस्था की जाए, जिसके तहत राजपत्रित पदों पर उन्हीं युवक-युवतियों को चुना जाए, जो अपनी जाति से बाहर विवाह करने को तैयार हो। पंडित जी ने इस सुझाव को स्वीकारा, लेकिन यह भी कहा कि इससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन होता है और इस तरह के काम स्वेच्छा से होने चाहिए, दबाव में नहीं।
चौधरी चरण सिंह ने समाज में व्याप्त कुरीतियों का जोरदार ढंग से विरोध किया है। उनका मानना था कि जब तक इन कुरीतियों का खात्मा नहीं हो जाता, देश की तरक्की संभव नहीं। यही वजह रही कि वह समाज में जाति-पांति के भेद मिटाने, दहेज प्रथा समाप्त करने, भोग-विलास व नशीली वस्तुओं के इस्तेमाल को खत्म करने और अन्तर्जातीय विवाह पर सदैव बल देते रहे। उनके विरोधियों द्वारा समय-समय पर लगाया जाने वाला आरोप कि वह जातिवादी थे, नितांत भ्रामक व झूठा है। जबकि असलियत यह है कि वह जाति व्यवस्था की सदैव खिलाफत करते रहे। चौधरी चरण सिंह जातिवाद को राष्ट्रीयता के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे। उन्होंने 1967 में मुख्यमंत्री रहते हुए शासकीय आदेश पारित करवाया कि- ”जो संस्थाए किसी जाति विशेष के नाम पर चल रही, उनका शासकीय अनुदान बंद कर दिया जायेगा।” इस आदेश के तत्काल बाद कॉलेजों के आगे से जाति-सूचक शब्द हटा दिये गए।
चौधरी चरण सिंह समाज में महिला के समान अधिकारी और भावनात्मक स्वतंत्रता पर अधिक जोर देते थे। वह नारी की रक्षा उतनी ही महत्वपूर्ण समझते थे जितनी देश के अन्य कमजोर वर्गों की। वह नारियों को घर तथा परिवारों की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं करना चाहते थे। उनके विचार में नारी ही बच्चों की पहली अध्यापिका होती है। चौधरी साहब के अनुसार अगर घर की स्त्री समझदार है, अपने कार्य में निपुण हैं, नियमित रूप से धार्मिक अनुष्ठान करती हैं, तो घर के लोग, उसके बच्चे अवश्य ही अनुशासित, समझदार तथा धर्म-कर्म पर चलने वाले होंगे।
चौधरी चरण सिंह ने संसदीय सचिव रहते हुए चपरासियों, सिपाहियों तथा चतुर्थ श्रेणी के अन्य कर्मचारियों को सरकारी काम पर यात्रा-भत्ता चार या छः: आने से बढ़ाकर १२ आने प्रतिदिन कराने में सफलता हासिल की। 1954 से मार्च 1959 तक राजस्व मंत्री रहते हुए इस बात का निश्चित प्रबंध करते कि जिला प्रशासन में चपरासियों की भर्ती में हरिजनों का अनुपात 18 प्रतिशत हो।
चौधरी चरण सिंह हिन्दू-मुस्लिम एकता में विश्वास रखते थे। कांग्रेस छोड़ने के बाद जब से उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी अलग बनाई-अपनी पार्टी की ओर से जितने प्रत्याशी उन्होंने मुसलमान, हरिजन और पिछड़े वर्गों के, दूसरी जातियों के बनाए उतने तथाकथित संपूर्ण जातियों के नहीं बनाए। उन्होंने विशेष रूप से जाट बहुल क्षेत्रों से चाहे-मुजफ्फरनगर हो, बुलंदशहर, या हापुड़ हो, चाहे मुरादाबाद या बिजनौर हो-अपनी पैदायशी या जन्मजात जाति के व्यक्तियों को प्रत्याशी न बनाकर हिन्दू मुस्लिम प्रतीक स्वरूप दूसरे लोगों को सफलता दिलवाई। चौधरी चरण सिंह के मुख्यमंत्री काल में कोई हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा उत्तर प्रदेश में नहीं हुआ, जबकि उसी समय अन्य प्रान्तों में गंभीर साम्प्रदायिक झगड़े हुए।
चौधरी चरण सिंह छोटे राज्यों के पक्षधर थे, क्योंकि बड़े राज्यों का शासन और प्रशासन करने में अनेकों समस्याएं सामने आती हैं। तथा बड़े राज्यों के विकास के लिए भी काफी मेहनत करनी पड़ती है। छोटे राज्यों को मुख्यमंत्री अच्छी तरह से विकास कर सकता है और प्रशासन को भी अच्छी तरह नियंत्रण में रख सकता है और राज्यों का विकास भी अधिक होगा। चौधरी चरण सिंह ने कहा है कि देश के अन्दर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति देश का नागरिक है, उसके प्रति यह संकीर्ण भावना नहीं होनी चाहिए कि वह उस क्षेत्र से संबंध रखता है। अगर देश के लोग क्षेत्रवाद की बात करते रहेंगे, तो इस देश की यह समस्या हल नहीं होगी और हर क्षेत्र अपनी मांग को उठाने लग जायेगा। क्षेत्रवाद के कारण आपसी लड़ाई-झगड़े पैदा हो जाएंगे।
राष्ट्र की एकता और अखण्डता को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि देश की एकता पर किसी तरह की आंच नहीं आनी चाहिए। क्योंकि अगर देश की अखण्डता को खतरा पैदा हो गया तो देश के टुकड़े हो जाएंगे और देश में रहने वाले हर व्यक्ति की सुरक्षा खतरे में पड़ जायेगी।
चौधरी चरण सिंह हमेशा लोकतंत्र की बात करते थे और अधिनायकवाद के खिलाफ थे। अधिनायकवाद से कुछ शरारती तत्वों के हाथ सत्ता का कब्जा होता है और वे देश को लूटते हैं और इससे आम आदमी का जीना दुर्लभ हो जाता है। इसलिए मैं आधुनिक समाज में अधिनायकवाद का विरोधी हूँ। चौधरी चरण सिंह ने समकालीन भारतीय समाज की समस्याओं को दूर करने के लिए देश में संसदीय सरकार की वकालत पर जोर दिया है। क्योंकि इस प्रकार की सरकार में हर राज्य का अपना प्रतिनिधित्व होता है और वे संसद में अपने क्षेत्र की समस्या के प्रति बोल सकते हैं और अपनी बात कह सकते हैं।
चौधरी चरण सिंह ने समकालीन भारतीय समाज में व्याप्त अनेक समस्याओं, जिनका उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में स्वयं सामना किया। उन्हें दूर करने के लिए वे सारी जिंदगी कठोर संघर्ष करते रहे। समकालीन भारत में व्याप्त समस्याओं में एक प्रमुख समस्या गांव में रहने वाले गरीब, मजदूर, दलित एवं पिछड़ों व किसानों के लिए उन्हों ने सारी जिन्दगी कार्य किया। चौधरी साहब चाहते थे कि गांव में व्याप्त बेकारी को दूर करने के लिए गांव को एक इकाई माना जाए ओर गांव की समस्याओं जैसे : सड़कें, स्कूल, गली, पीने के पानी की व्यवस्था, स्त्री-पुरुषों के लिए शौचालयों का प्रबंध इत्यादि को दूर करने के लिए सामूहिक प्रयास किये जायें। ये समस्याएं भारतीय समाज में पहले से ही मुह बांय खड़ी थी। चौधरी चरण सिंह ग्रामीण के विकास के लिए हमेशा सोचते रहते थे।
24 जुलाई 1979 को जब चौधरी चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री बने उसी दिन देश के करोड़ों दलितों-पिछड़ों व किसानों में खुशी की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए, उन्होंने पहली बार देश में ग्रामीण पुनरुत्थान मंत्रालय की स्थापना की। जिसका उद्देश्य स्वतंत्र रूप से ग्रामीण विकास को संभावनाओं का आंकलन कर, उन्हें लागू करना था।
चौधरी चरण सिंह जब देश के प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने कहा था कि ‘देश के नेताओं को याद रखना चाहिए कि इससे अधिक देशभक्तिपूर्ण उद्देश्य नहीं हो सकता कि वे यह सुनिश्चित करें कि कोई भी बच्चा भूखे पेट नहीं सोएगा, किसी भी परिवार को अपने अगले दिन की रोटी की चिंता नहीं होगी तथा कुपोषण के कारण किसी भी भारतीय के भविष्य और उसकी क्षमताओं के विकास को अवरुद्ध नहीं होने दिया जाएगा। किंतु देश का दुर्भाग्य कि उन्हें यह सपना पूरा करने का मौका नहीं मिला। वह प्रधानमंत्री के पद पर कुछ ही दिन रहे। इंदिरा गांधी ने बिना बताए ही उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
दरअसल इसका कारण यह रहा कि इंदिरा गांधी पर जनता पार्टी की सरकार ने कई मुकदमे लगा रखे थे। वह चाहती थी कि चौधरी साहब समर्थन के एवज में उन मुकदमों को हटाने का भरोसा दें। लेकिन चौधरी चरण सिंह को यह मंजूर नहीं था। उन्होंने सौदेबाजी को खूंटी पर टांग प्रधानमंत्री पद को ठोकर लगाना बेहतर समझा। उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपनी ईमानदार और सिद्धांतवादी राजनेता की छवि को खंडित नहीं होने दी।
सैकड़ों साल बाद भारतीय समाज का स्वरूप, चरित्र एवं चिंतन की व्याख्या का दायरा और उसके मूल्यों को मापने व परखने का मापदंड क्या होगा इसकी भविष्यवाणी आज संभव नहीं है। लेकिन जब भी असमानता और अन्याय पर आधारित समाज के खिलाफ तनकर खड़े होने वाले राजनीतिक पुरोधाओं का मूल्यांकन होगा किसान नेता चौधरी चरण सिंह सदैव याद किए जाएंगे। उनका सामाजिक-राजनीतिक अवदान दबे-कुचले वंचितों, शोषितों एवं पीड़ितों की चेतना को मुखरित करने के लिए याद किया जाएगा। चौधरी साहब को समझने के लिए तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था की बनावट, उसकी स्वीकृतियां, विसंगतियां एवं धारणाओं को भी समझना होगा। इसलिए और भी कि उन्होंने समय की मुख्य धारा के खिलाफ तन कर खड़ा होने और उसे बदलने के एवज में अपमानित और उत्पीड़ित करने वाली हर प्रवृत्तियों के ताप को नजदीक से सहा।
चौधरी चरण सिंह एक राजनेता से कहीं ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ता थे। देश के राजनीतिक दलों और राजनेताओं को उनके राजनीतिक आदर्शों और जनसरोकारों से सीख लेनी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य है कि उनके नाम की माला जपने वाले और उनके बताए रास्ते पर चलने का दंभ भरने वाले उनके द्वारा स्थापित कसौटी पर खरे नहीं हैं। वे चौधरी साहब के आदर्शों की बात तो जरुर करते हैं लेकिन उनके सिद्धांतों को ताक पर रखकर जाति, धर्म अगड़ा-पिछड़ा, सवर्ण-दलित का वितंडा खड़ा कर सत्ता हथियाने का व्यूह रचते हैं। देर-सबेर उन्हें समझना होगा कि वे चौधरी साहब के सपनों के साथ छल कर रहे हैं।