1976 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में ट्रिनिटी कॉलेज के रेन लाइब्रेरी में जॉर्ज ई. एंड्रूज नामक एक गणितज्ञ ने सौ से ज्यादा पन्नों का एक नोटबुक एक बक्से में उपेक्षित पड़ा पाया। एंड्रूज ने जब उस नोटबुक को देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उनके पी-एच.डी थीसिस में किए गए मॉक थीटा फंक्शन पर कुछ सूत्र वहाँ पर थे। आज भी वह नोटबुक और उसमें लिखे छह सौ से ज्यादा गणितीय सूत्र एक बड़ी पहेली हैं। इन सूत्रों में से अधिकतर मॉक थीटा फंक्शंस और स्टैंडर्ड इक्वेशंस से संबंधित हैं। नोटबुक में सूत्र तो दिए गए थे, लेकिन उनको सिद्ध (प्रूफ) नहीं किए गए थे। इन सूत्रों में ज़्यादातर ऐसी थीं, जिन्हें कई दशक बीत जाने के बाद भी सुलझाया नहीं जा सका है। अमेरिका के इलिनाय यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ ब्रूस बर्नड्ट ने इस नोटबुक के बारे में कहा था, ‘इस लापता नोटबुक की खोज ने गणित की दुनिया में वैसी ही खलबली पैदा कर दी है, जैसी बीथोफन की 10वीं सिम्फनी की खोज पर संगीत की दुनिया में होती।’ गौरतलब है कि आज भी ब्रूस बर्नड्ट इस नोटबुक के सूत्रों और थ्योरम्स को जांच करने और सिद्ध करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
यह नोटबुक थी ‘गणितज्ञों के गणितज्ञ’ और ‘संख्याओं के जादूगर’ कहे जाने वाले भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की। रामानुजन का गणितीय अनुसंधान उस श्रेणी का है, जिसे हम प्योर मैथेमैटिक्स कहते हैं। इसका स्तर भी इतना ऊंचा है कि काफी लंबा अरसा गुजर जाने के बावजूद कॉलेज के गणित के सिलेबस में भी इसे रखना मुमकिन नहीं हुआ है। रामानुजन बीसवीं सदी के महानतम गणितज्ञों में से एक माने जाते हैं। कहते हैं कि नंबर थ्योरी पर उनकी टक्कर का गणित में और कोई भी नहीं हुआ है।
गणित के क्षेत्र में हीरे की तरह चमकने वाले श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के इरोड में हुआ था. उनके परिवार का गणित विषय से दूर-दूर तक का कोई नाता नहीं था। उनके पिता श्रीनिवास आयंगर एक कपड़ा व्यापारी के यहाँ मुनीम का काम करते थे। बेहद साधारण परिवार में जन्म लेने के बावजूद रामानुजम अद्वितीय प्रतिभा, तर्कशक्ति और सृजनात्मकता के गुणों से सम्पन्न थे। रामानुजम बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे और मद्रास यूनिवर्सिटी से सन् 1903 में उन्होंने दसवीं की परीक्षा कई पुरस्कारों के साथ पास की। इसी साल उन्होंने क्यूब और बायक्वाडरेटिक इक्वेशन को हल करने का सूत्र खोज निकाला। वह अपना समय का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल गणित के जटिल सवालों को हल करने में बिताते थे। समय के साथ-साथ रामानुजन का गणित के प्रति रुझान बढ़ता ही गया। फलस्वरूप 12वीं की परीक्षा में गणित को छोड़कर वह अन्य सभी विषयों में फेल हो गए। बाद में मद्रास के एक कॉलेज में दाखिला लिया। मगर यहाँ भी गणित को छोड़कर बाकी विषयों में रामानुजन की उपलब्धि निराशाजनक ही रही थी। अगले साल फिर कोशिश की, मगर इस बार भी नाकामयाब ही रहे। अतः बिना डिग्री लिए ही रामानुजन को औपचारिक अध्ययन छोड़ना पड़ा. हालांकि गणित में उनकी व्यस्तता में कोई कमी नहीं आई!
इसी बीच रामानुजन का विवाह भी हो गया। अब उनके ऊपर पारिवारिक ज़िम्मेदारियां भी थीं। और इसके बाद विश्वविद्यालय की डिग्री के बिना वह एक नौकरी की तलाश में निकल पड़े। बहुत कोशिशों के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने अपने रिश्तेदार और पुराने मित्रों से इस संबंध में मदद मांगी। वे अपने पूर्व शिक्षक प्रोफेसर शेषु अय्यर की सिफारिश पर नैल्लोर के तत्कालीन कलेक्टर आर. रामचंद्र राव से मिले जो कि उस समय इंडियन मैथमैटिकल सोसाइटी के अध्यक्ष भी थे। आर. रामचंद्र राव ने रामानुजम की नोटबुक देखकर (जिसमें उन्होंने सूत्र और थ्योरम लिखे थे और उन्होंने स्वयं उसे स्वयं सिद्ध किया था) काफी विचार-विमर्श के बाद रामानुजम के लिए पच्चीस रुपये महीने पारितोषिक की व्यवस्था कर दी थी। इस दौरान रामानुजन ने ‘इंडियन मैथमैटिकल सोसाइटी’ के जर्नल के लिए सवाल और उनके हल तैयार करने का काम किया। 1911 में बरनौली नंबर्स पर प्रस्तुत रिसर्च पेपर से उन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली। 1912 में आर. रामचंद्र राव की सहायता से उन्हें मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के लेखा विभाग में क्लास 3, चतुर्थ ग्रेड के क्लर्क की नौकरी मिल गई। मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में नौकरी करते हुए रामानुजम ने विशुद्ध गणित के अनेक क्षेत्रों में स्वतंत्र रुप से अपना शोध कार्य जारी रखा।
गणित एक ऐसा विषय है जिस पर कई दिमाग घूम जाते हैं, कई पस्त हो जाते हैं तो कई उसकी कमज़ोरी के चलते अपना कैरीयर खो बैठते हैं आज के हिसाब से सोचें तो जिसका गणित स्ट्रांग है उसके कैरीयर के कई द्वार खुले हैं। हमारे समय के इस यथार्थ को इसलिये दरकिनार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह शत प्रतिशत स्कोरिंग सबजेक्ट है। इस विषय के फॉर्मूले को जिसने सीखा वह मेधावी कहलाया, उसने अबूझ प्रश्नों को हल करने का गुर सीख लिया। इस विषय को लेकर जो सोच पहले थी वह अब भी है। अतः श्रीनिवास रामानुजन को गणित का पितामह कहा जा सकता है। उन्होंने गणित का साम्राज्य स्थापित किया। गौर करने वाली बात है कि उनके पास इसकी कोई फार्मल ट्रेनिंग, कोचिंग और टीचिंग नही थी जो भी था वह स्व अर्जित था। वह गणित के कठिन से कठिन सवालों को चुटकियों में हल कर दिया करते थे। अपनी इस सिद्धहस्तता को पा कर उन्होंने विश्व के महान गणितग्यों के साथ पोस्टल भागीदारी की। यह वह समय था जब आज की तरह कोई इंटनेंट, ई-मेल या किसी अन्य तकनीकी सुविधा उपलब्ध नहीं थी। फिर भी इस जीनियस विभूती ने विश्व में अपना सिक्का जमाया।
इनमें एक नाम इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गणितज्ञ जी एस हार्डी का था उस समय गणित की दुनिया में इनकी तूती बोलती थी। आरंभ में हार्डी ने लंबे समय तक रामानुजन के पत्रों की अनदेखी की। जब देखने लगे तो उनके होशो हवास उड गये और वह भी रामानुजन की मैथेमेटिकल विशेषज्ञता को देख कर अचंभित रह गये और कहा कि “इस गणितज्ञ ने ग्राउंड ब्रेकिंग थ्योरम्स को ईजाद किया है, उनमें से कुछ ने मुझे भी परास्त कर दिया है। यह थ्योरम्स अति एडवांस हैं।”
यह वह समय था, जब भारत में अंग्रेज़ों का शासन था। ऐसे में यह गणितज्ञ रामानुजन की विराट विजय थी। अपनी प्रतिभा के ज़रिये उन्होंने इस क्षेत्र में अंग्रेज़ों की श्रेष्ठता को ध्वस्त किया। अपनी छोटी सी उम्र में उन्होंने 3900 ईक्वेशंस को प्रकाशित किया इनमें से कई नवीन और मौलिक थे, जिसे देख विश्व के महान गणितज्ञ दांतों तले उंगली दबाने लगे। इसलिये इसका नाम रामानुजन प्राइम पड़ा, जिसने गणित के कई अध्यायों को खोला, आगे के शोधों की राह बनायी उनके अवसान के बाद से उनके नोट बुक्स में से कई थ्योरम्स को लेकर रिसर्च हो रहे हैं जिनसे इस क्षेत्र में अब भी गणित से संबंधित कई नये विचार सामने आ रहे हैं। सन 1976 में उनकी एक खोयी हुई नोट बुक मिली तब उससे कई सूत्र समाधान सामने आये।
अल्वबर्ट आइंसटीन का एक कथन है “अंतर बुद्धि मन पर्मेश्वर से मिला पावन उपहार है, और बुद्धियुक्त मन एक भरोसे मंद गुलाम है, हमने एक ऐसे समाज बनाया है जो केवल गुलाम का आदर करता है और अमूल्य उपहार को भूल जाता है”। रामानुजन को मिली अतर बुद्धि बेजोड थी इसका सारा श्रेय वह ईश्वर की दिव्य शक्ति और अपनी कुल देवी नामक्कल देवी को देते हैं, वह कहते हैं” समीकरण (ईक्वेशंस ) मेरे लिये कुछ नहीं है जब तक की उसे हल करने का विचार मुझे देवी से न मिले।“
इस विषय के प्रति उनकी दीवानगी इस तरह से थी कि उनके अध्यापक भी उसे देख कर दंग रह जाया करते थे, एक बार का वाकया है, जब वह सातवीं क्लास में पढ रहे थे तब उनके गणित के टीचर ने सभी विद्यार्थियों को कहा कि एक से लेकर 100 तक के अंकों का योग करें और उन्हें आधे घंटे का समय दिया, लेकिन रामानुजन ने उसे केवल 10 मिनट में ही पा कर डाला इसकी पूरी जांच बाद अध्यापक ने इतनी जल्दी हल की वजह पूछी तब उन्होंने अपने बनाये सूत्र बताए जिसे देख कर अध्यापक अचंभित रह गये।
वास्तव में रामानुजन ने अपने गणित से जो ख्याति पायी उससे पश्चिम के लोग भी उनके अनुयायी बन गये। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें अपने यहां आमंत्रित कर बीए की डिग्री से सम्मानित किया गया पश्चिम के प्रसिद्ध गणित लेखक एल लोने ने उनके गणितीय कौशल पर “ एडवांस ट्रिगनामेट्री “ पुस्तक लिखी। यह किसी भी भारतीय के लिये गौरव की बात थी। हॉलीवुड ने उनके जीवन पर फिल्म “द मैन हू नो इंफिनिटी “ बनायी। उनके गणितीय सूत्र “माक थीटा फंक्शन” पर उच्च स्तरीय शोध पत्र लिखे गये। इसका उपयोग गणित के साथ चिकित्सा विज्ञान में कैंसर को समझने के लिये भी किया जाता है।
अपनी उम्र के तीन वर्ष तक वह बोल भी नहीं पाते थे, स्कूल में बह अटपटे प्रश्न पूछा करते थे जैसे धरती से बादल की दूरी कितनी है? धरती का पहला मनुष्य कौन था ? 11वी कक्षा में वह गणित को छोड़ कर अन्य सभी विषयों में फेल हो गये थे। इन सारी कमियों के बाद भी वह जीनियस थे क्योंकि वह गणित के जादूगर थे। कहते हैं गणित उनकी उंगली पकड़कर चलता था। जब मैथ्स के सारे सवाल खत्म हो जाते थे तो वह आधी रात को जाग कर स्व्यं ही प्रश्न बनाते और उसे सुलझाते रहते। उसका हल नहीं निकलता तब वह पूरी-पूरी रात जागते और अपनी स्लेट को पोंछते या मिटाते हुए उसका हल निकाल कर ही चैन लेते इस तरह से उनके पास 3884 थ्योरम्स का संकलन बन चुका था। उनके अधिकांश से अधिक कार्य अब भी अब पहेली बने हुए हैं जिस पर मैथेमेटिक्स को दुनिया रिसर्च कर रही है। उनका पालन पोषण भले ही अभावों में हुआ पर वह गणित के इतने अमीर थे कि कई विकट परिस्थितियों का सामना करते हुए भी गणितीय कौशल में नये-नये कठिनतर प्रश्नों को चटपट हल करने की कला में पारंगत होते गये।
इस महान गणितज्ञ का जीवन, बहुत संघर्षमय रहा। उनका विवाह जानकी से हुआ जो उनके हुनर से प्रभावित थीं। 26 अप्रैल 1920 को 33 वर्ष की छोटी सी में इस गणितीय विश्वविजेता ने दुनिया को अलविदा कहा। भारत सरकार द्वारा प्रति वर्ष उनके जन्म दिन 22 दिसंबर को गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है तो तमिलनाडु द्वारा इसे आई टी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यदि वह चाहते तो विदेशों में रह कर भारी रकम कमा सकते थे लेकिन गणित के इस महानायक ने अपने जीवन से जो संदेश छोडा है, वह है अपनी आंतरिक प्रतिभा को पालो-पोसो और उसे पल्लवित करो।
श्रीनिवास रामानुजन असाधारण प्रतिभा के धनी थे जिन्होंने अपनी गणितीय प्रतिभा से पूरी दुनिया को चौंका दिया। फिल्म “आनंद” का एक डायलॉग- “ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिये- लंबी नहीं” इस बात को इस लीजेंड गणितज्ञ ने अपने जीवन से सिद्ध किया। केवल 33 साला ज़िंदगी में उन्होंने जो अद्भुत योगदान दिया, वह पूरी दुनिया में भारत की सुनहरी लीगेसी बन चुका है, जिस पर आने वाली पीढ़ियाँ भी गर्व करेंगी।