(12 अगस्त 1919 – 30 दिसंबर 1971)
डॉ. विक्रम साराभाई के नाम को अंतरिक्ष कार्यक्रम से अलग नहीं किया जा सकता यह बात दुनिया को पता है कि वह विक्रम साराभाई ही थे, जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाया। भारतीय विज्ञान तथा वैज्ञानिकों ने यशस्वी उपलब्धि की रचना की। जीवन के प्रति आस की शक्ति और विश्वास को मजबूत किया। हमारे वैज्ञानिकों की चिंतन धारा ने जिन बेजोड उपलब्धियों को हासिल किया उसका ऐतिहासिक महत्व है। उसी कड़ी में जिस स्पेस युग अर्थात अंतरिक्ष के दौर की आज चर्चा होती है उसके जनक महान भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई थे जिन्होंने देश को अंतरिक्ष तक पहुंचाया। भारतीय अंतरिक्ष प्रोग्राम के वह प्रवर्तक माने गये क्योंकि देश के पहले सेटेलाइट आर्यभट्ट को लांच करने में उनकी अहम भूमिका रही। तथ्य सर्वविदित है कि दुनिया भर में अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में जो ख्याति और साख भारत को मिली उसका श्रेय उन्हीं को है। अंतरिक्ष विज्ञान का विकास उनके लिये साध साध सामाजिक तथा मानवीय उन्नति से जुड़ा था।
आज टीवी का चारों ओर विकास और ढेरों चैनल देखने को मिल रहे है इसके सूत्रधार साराभाई थे। छठवे दशक के अंत में उनकी परिकल्पना थी कि यदि टी वी शुरू होगा तो इससे सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के कई आयामों को हासिल किया जा सकता है यद्यपि इसके विरोध में कहा गया कि यह मिडिल क्लास का खिलौना बन जायेगा। सारी आलोचनाओं तथा बाधाओं को पार कर सन 1959 में टीवी का श्रीगणेश हुआ जिसका श्रेय वैज्ञानिक साराभाई को है उनके अथक प्रयासों से टीवी का प्रसारण आरंभ हुआ। प्रसारण तकनीक को शक्ति मिली और शुरू में धीरे धीरे इसका विकास हुआ। सुदूर इलाकों में ले जाने के लिये टावरों की समस्याएं आयी पर उसे लांघते हुए उसने जो छलांग भरी उससे प्रसारण का क्षेत्र विकसित और बलशाली बना। निर्बाध प्रसारण के लिये जरूरी था कि अपना संचार उप ग्रह हो तब साराभाई के मार्गदर्शन में नासा के सहयोग से साईंट परियोजना का शुभारंभ हुआ जिसके माध्यम से लोग पहली बार टीवी पर कार्यक्रम देख बहुत खुश हुए उस समय जिनके घर टीवी होता उनका अलग रौब रुतबा होता। इससे महत्वपूर्ण लाभ यह हुआ कि हमारे साइंटिस्ट व इंजीनियर संचार उपग्रह की कार्यप्रणाली से वाकिफ हुए उनमें भरोसा जागा कि वे स्वदेशी उपग्रह बना सकते हैं। अंततः भारतीय वैज्ञानिकों ने इन्सेट -1 ए अंतरिक्ष में पहुंचाकर असंभव लग रहे कार्य को संभव कर दिखाया।
संचार उपग्रह के क्षेत्र को आरंभ करने का श्रेय डॉ विक्रम साराभाई की दूरदृष्टि को है। सभी के लिये वे विज्ञान की शिक्षा को जरूरी मानते थे। उनके पिता अंबालाल साराभाई एक प्रसिद्ध व्यवसायी और उद्योगपति थे। मां सरला बेन शिक्षाविद थीं और स्कूल का संचालन करती थीं। साराभाई की स्कूली शिक्षा घर पर ही हुईं। माता पिता की वे आठवीं संतान थे घर पर महात्मा गांधी, सी वी रमण, जवाहरलाल नेहरू, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसी मशहूर हस्तियों का आना जाना रहता था, जिससे बाल्यावस्था से ही उन्हें इन महापुरुषों का सानिध्य मिला जिसका प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर पडा। बताया जाता है कि जब उनका जन्म हुआ तब उनके बड़े सिर और कानों को देख कर गुरुवर रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा कि “यह बड़ा हो कर प्रसिद्ध व्यक्ति बनेगा जिसकी शोहरत दुनिया भर में होगी।“
बच्चों को विज्ञान की शिक्षा के प्रति वे शुरू से गंभीर थे, ताकि उसके महत्व और अनुसंधान को जान सकें। इसके लिये गुजरात में सामुदायिक विज्ञान केंद्र की स्थापना की। साइंस को बढावा देने के लिये पिता से वित्तीय सहायता ले भौतिक विज्ञान के अध्ययन और अनुसंधान केंद्र को शुरू किया, तब उनकी आयु केवल 28 वर्ष थी। वे स्वपन द्रष्टा थे। रूस द्वारा उस समय स्पूतनिक की लांचिंग से प्रभावित हुए और अंतरिक्ष की दुनिया में प्रवेश के लिये तत्कालीन सरकार को प्रेरित कर उन्हें इसे अपने देश में आरंभ करने के लिये प्रयास किये जो फलदायी सिद्ध हुए।
स्पूतनिक की चर्चा को सुन विश्व के तमाम देशों में अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति अलख जगी। सभी इसे हैरत से देखते और यह विचार भी जाहिर करते कि इतने भारी भरकम खर्च में पड़ने की क्या ज़रूरत है। साराभाई ने कहा कि अंतरिक्ष विज्ञान को ले कर कोई अस्पष्टता नहीं होनी चाहिये। जब विश्व के अन्य देश इसे अपना रहे हैं तब हमें बढ़ चढ़ कर इस कार्य में भाग लेते हुए इसे डेवलप करना चाहिये क्योंकि आधुनिक तकनीक से ही देश विकास का सपना साकार होगा। किसी से होड की हमारी मंशा नहीं है लेकिन इस बात पर पक्का यकीन है कि अगर हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना है तो नवीन टेक्नोलॉजी के महत्व को मानना पड़ेगा जो हमें अच्छे नतीजे देगी।
साराभाई इस कार्यक्रम को जल्द शुरू करना चाहते ताकि औरों की तरह हम मिसाल कायम कर वैज्ञानिक उपलब्धियों को पाने में कामयाब हो सकें। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये उन्हें सतीश धवन जैसा मार्गदर्शक और साथी का भरपूर सहयोग मिला। दोनों ने रॉकेट परीक्षण करते हुए सन 1963 में पहला प्रायोगिक राकेट छोड़ा। यद्यपि उस समय यह विदेश में बना राकेट था लेकिन साराभाई ने इसे अपने देश में निर्मित करने के सपने को संजोया, इसे हासिल करने के लिए कड़ा परिश्रम किया और अंततः सन 1967 में स्वदेश निर्मित पहले राकेट “रोहिणी “ को छोडा गया जो बडी सफलता थी। देश ने अंतरिक्ष विज्ञान में पहली ऐतिहासिक उपलब्धि प्राप्त की।
इस महान उपलब्धि के बाद (इन्कोस्पार) जिसका गठन भारत सरकार द्वारा भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति के रूप में किया गया था, को बाद में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) बना दिया गया साराभाई इसके पहले अध्यक्ष थे उन्हीं के नेतृत्व में इसरो की कई इकाइयां खुलीं। संचार उपग्रह के क्षेत्र में कड़ी मेहनत करते साराभाई वैज्ञानिक होने के साथ अच्छे प्रशासक भी थे।
संगीत से बहुत लगाव रखते, टेंशन फ्री रखने के लिये संगीत सुनते रहते उनके पास गानों के रिंका्डों का बडा कलेक्शन था। कुंदन लाल सहगल उनके चहेते गायक थे। उनका गाया गीत सो जा राजकुमारी उन्हें बहुत पसंद था। सीटी बजाने का शौक था। बताया जाता है कि वे प्रयोगशाला में आ गये हैं इसका पता तब चलता जब वे सीटी बजाते हुए सीढियां चढ़ते। उनके आते ही महौल में आनंद तथा उत्साह छा जाता। उनकी जीवनीकार के अनुसार वे खुले दिल के व्यक्ति थे।
वास्तव में साइंस की दुनिया में महान शख्सियत थे उसे इसी से समझा जा सकता है कि चंद्रयान -2 मिशन में चंद्रमा पर उतारे जाने वाले रोवर का नाम विक्रम साराभाई रखा गया। देश में जिस समय कोई भी रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन नहीं था तब उन्हीं के प्रयासों से पहला रॉकेट लांच इंप्रेशन थुंबा तिरुवनंतपुरम में स्थापित हुआ। विज़न इतना बड़ा कि शिक्षा से जुड़े विविध संकायों की प्रगति पर भी ध्यान देते। इसका उदाहरण उनके प्रयासों से स्थापित भारतीय प्रबंधन संस्थान (आई आई एम) अहमदाबाद है जिसकी काफी ख्याति व साख है। हैदराबाद में स्थित इलेक्ट्रानिक कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ई सी आई एल) उन्हीं के विचार से स्थापित हुई। नई सोच से साइंटिफिक रिसर्च के कई द्वारों को खोला जो आज प्रतिष्ठित संस्थान हैं।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इन्होंने बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान में नोबेल विजेता डॉक्टर सी.वी रमन के साथ काम किया। साराभाई निरस्त्रीकरण और परमाणु उपकरणों के शांतिपूर्ण इस्तेमाल पर होने वाली कई कॉन्फ्रेंस और अंतरराष्ट्रीय पैनलों के अध्यक्ष रहे। ये कैम्ब्रिज फिलोसोफिकल सोसाइटी के साथी थे और अमरीकी जियोफिजिकल यूनियन के सदस्य थे। 1962 में इन्हें इसरो का कार्यभार सौंपा गया। उनकी निजी संपत्ति को देखते हुए उन्होंने अपने काम के लिए मात्र एक रुपए की टोकन सैलरी में काम किया।
कला जगत के विकास हेतु दर्पण एकेडेमी आफ परफ़ोर्मेंस आर्ट्स अहमदाबाद की स्थापना की। महान वैज्ञानिक थे लेकिन सदा ज़मीन से जुडे रहते। खादी का कुर्ता और पायजामा पहनते, बहुत ज़रूरी होता तभी सूट पहनते। अपने वजन के प्रति जागरूक रहते। सुबह जल्दी उठ 12 सूर्य नमस्कार करते और मौका मिलता तो तैराकी भी करते। खाने में शाकाहारी पर खाने का शौक रखते। कैलोरी का ध्यान रखते हुए प्लेट में खाना लेते, अक्सर दूसरों की प्लेट से एक निवाला उठा कर विनोद भरे लहज़े में कहते कि ये मेरी प्लेट नहीं है इसलिये कैलोरी नहीं चढेगी। अन्य देशों की विविध रेसीपीज़ को चाव से खाते। लकीर के फकीर नहीं थे हर विषय पर पढ़ते और उसकी जानकारी रखते। उनकी रुचियां नये-नये क्षेत्रों में हो रहे कार्यों, खोजों और उनके विकास की जानकारी रखना थी। प्रिय पुस्तकों में एक श्रीमद भगवत गीता रही जिसे अक्सर पढ़ उससे प्रेरित होते। साथ काम करने वाले युवा वैज्ञानिकों की रिसर्च पर ध्यान देते और आगे बढने के लिये मोटिवेट करते। पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन के रूप में प्रसिद्ध ए पी जे अब्दुल कलाम के करियर के आरंभिक चरण में अहम भूमिका निभाई। देश के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को विज्ञान के माध्यम से डेवलप करने के लिए इंस्पायर करते मानव सेवा को जीवन का ध्येय बना उसी रूप में कार्य योजना बनाते और चिंतन करते।
पूर्व राष्ट्रपति मिसाइल मैन डॉ कलाम ने एक बार कहा था, “ज्यादा क्वालीफाड नहीं होने के बावजूद, डॉ. विक्रम साराभाई ने मुझ पर ध्यान दिया, क्योंकि मैं कड़ी मेहनत कर रहा था। एक युवा वैज्ञानिक के तौर पर उन्होंने मुझे आगे बढ़ने के लिए कई जिम्मेदारियां सौंपी। हर मुश्किल घड़ी में वह मेरे साथ थे।”
दूरदृष्टि युक्त उनके कार्यो के लिये भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण तथा पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया डाक विभाग द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट निकाला गया। सर सी वी रमन के मार्गदर्शन में कॉस्मिक किरणों में समय परिवर्तन विषय में पी एच डी के शोध कार्य को पूरा किया।
उनका जन्म 12 अगस्त 1919 को हुआ था। इस दिन को अंतरिक्ष विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। साराभाई का विवाह सुप्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई से हुआ। उनके कहे कुछ अनमोल वचन- “विज्ञान ईश्वर को मानने वाले आस्तिकों ने ही रचा है, इसलिये ईश्वर को कभी मत भूलो“, ” जिस इंसान के पास समय के लिये सम्मान नहीं है और समय की भावना नहीं है, वह कुछ कम ही पा सकता है”, “जो इंसान भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है वह वास्तव में महान उपलब्धि को पा सकता है” और “आनंद पर हमारा विश्वास हमेशा रहा है इससे ऊर्जा बढती है“ इत्यादि। उनका पूरा नाम विक्रम अंबालाल साराभाई था।
उन्होंने देश में कई अंतरिक्ष और शोध से संबंधित संस्थानों की शुरुआत की विज्ञान को ऊंची बुलंदियों तक ले जाने के लिये सदैव अथक सेवाएं, सोच और समर्पण से नये आयाम दिये। अक्सर कहते “यदि हम राष्ट्र के निर्माण में अर्थपूर्ण योगदान देते हैं तो आधुनिक तकनीक से कई सामाजिक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। विज्ञान के अलावा फोटोग्राफी, ललित कलाओं और पुरातत्व से भी जुडे रहे, परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष भी रहे। स्वतंत्रता के बाद देश निर्माण के लिये उनका पूरा जीवन दीर्घ दृश्य की तरह रहा अतः उनकी यशस्वी प्रासंगिकता चिरंजीवी बन प्रेरणा देती है कि कैसे एक धुनी के रूप में उन्होंने विज्ञान को आकाश सा शिखर दिया।
भारत के महान वैज्ञानिक बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉक्टर विक्रम साराभाई का 30 दिसंबर 1971 को कोवलम, तिरुअनंतपुरम केरल में असामयिक स्वर्गवास हो गया। इस महान वैज्ञानिक के सम्मान में तिरुअनंतपुर में स्थापित थुंबा एक्रेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन टी आर एल एस और संबंधी अंतरिक्ष संस्थाओं का नाम बदलकर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र कर दिया गया।
यह केंद्र एक प्रमुख भारतीय अंतरिक्ष केंद्र के रूप में उभरा है। सन 1974 में सिडनी स्थित अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ ने निर्णय लिया कि सी ऑफ सेरेनिटी पर स्थित बेसल नामक मून क्रेटर अब साराभाई क्रेटर के नाम से जाना जाएगा। डॉ विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान को भारतवासी हमेशा याद रखेंगे उनका जीवन एवं अनुसंधान कार्य आज की युवा पीढ़ी के लिए निश्चित ही प्रेरणादायक है।
चंद्रयान-3 प्रोजेक्ट ‘नए भारत’ का प्रतिनिधित्व करता है और हर देशवासी को इस पर गर्व है। विक्रम साराभाई को श्रद्धांजलि देते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-3 के लैंडर का नाम ‘विक्रम’ रखा है। चंद्रयान-3 का ‘विक्रम’ लैंडर चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक लैंड हो गया है। भारत ऐसा करने वाला चौथा और चंद्रमा के साउथ पोल पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है।