विज्ञान और जीवन एक दूसरे के पर्याय बन गये हैं। आदमी को इससे कई सुविधाएं मिली हैं तो कई शक्तियां भी मिलीं। चिकित्सा, सूचना क्रांति, अंतरिक्ष और यातायात के क्षेत्र में कई सफलताएं हासिल कर यह जीवन का अभिन्न भाग बन गया है उसकी यह यात्रा रुकी नहीं बल्कि सतत जारी है आये दिन वैज्ञानिक आविष्कारों के समाचार पढ़ने को मिलते हैं। 4 जी के इस युग में इंफार्मेशन टेक्नालाजी का विराट रूप देखने को मिल रहा है, मानव के लिये वह वरदान सिद्ध हो रहा है। इसका श्रेय वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम और उनकी तेजस्वी बुद्धि को है। साढ़े चार दशक पूर्व विश्व में हमारा देश जब परमाणु शक्ति के रूप में उभरा तब एक नाम की हर ओर बहुत चर्चा हुई वह थे प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक डॉ. राजा रमन्ना जिनके नेतृत्व में परमाणु शक्ति बनने का श्रेय देश ने प्राप्त किया। उस समय तकनीकी सुविधाओं के मामले में आज जेसी वैज्ञानिक सुविधाओं का अभाव था। किसी ने इसकी कल्पना भी नहीं की थी। ऐसे समय में न्यूक्लियर पावर बना कर वैज्ञानिक राजा रमन्ना ने देश को जो ऐतिहासिक यश और कीर्ति दिलाई उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता भारतीय विज्ञान को इससे नयी दिशा और दृष्टि मिली।
बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न थे। विज्ञान में जितनी दिलचस्पी थी उतनी ही कला जगत में भी थी। प्रायः वैज्ञानिकों के संबंध में एक धारणा है कि स्वभाव से वह शुष्क होते हैं इस विचार को भी उन्होंने तोडा। इतने अच्छे पियानो वादक थे कि लोग उनका वादन सुनने के लिये आते। कहते भी थे कि वैज्ञानिक नहीं होता तो बडा पियानो वादक बनता। इसे बजाने का उन्हें इतना शौक था कि उस पर पुस्तक लिखी। जिसका नाम था “ द स्ट्रक्चर आफ म्यूजिक इन रागा एंड वेस्टर्न म्यूजिक “ संगीत के लिये उनके लगाव को इसी से समझा जा सकता है कि बेंगलुरु स्कूल ऑफ़ म्यूजिक की स्थापना में अहम भूमिका निभायी। बताया जाता है कि मैसूर के महाराजा भी उनके संगीत ज्ञान और वादन के प्रशंसक थे।
डॉ. राजा रमन्ना उन प्रसिद्ध वैज्ञानिकों में रहे जिन्होंने ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिये नाभिकीय ऊर्जा के इस्तेमाल के लिये मार्गदर्शन किया और देश के परमाणु कार्यक्रम को आगे बढाने के लिये योगदान दिया। बताया जाता है कि सन 1944 में बतौर स्टूडेंट उनकी भेंट सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक होमी भाभा से हुई जिनसे इतने प्रभावित हुए कि अपना जीवन देश और विज्ञान के लिए डेडिकेट करने का मन बना लिय। होमी जहांगीर भाभा की लीडरशिप में युवा साइंटिस्टों के समूह में शामिल हो गये जो देश के पहले रिएक्टर अपने इंग्लैंड प्रवास के दौरान अप्सरा की स्थापना के लिये कार्यरत थे। संस्कृत के विद्वान भी थे उनकी रुचि दर्शन और योग में भी थी जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी आत्मकथा में किया। समाज में साइंस के प्रचार प्रसार तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण की ज़रूरत की हमेशा वकालत करते। युवा वैज्ञानिकों से प्रायः कहते कि चुनौतियों को स्वीकार करने की आदत बनाएं और उसी के अनुरूप अपनी कार्य शैली को अपनाएं ।अपने निर्देशन में युवा वैज्ञानिकों की एक पीढ़ी तैयार की जो परमाणु और अन्य क्षेत्रों में सक्षम साबित हुए।
इंग्लैंड प्रवास के दौरान यूरोपीय संगीत का आनंद ही नहीं लिया बल्कि उसमें महारत हासिल की। पश्चिमी संगीत और सभ्यता में रुचि और उत्साह जीवन भर रहा और स्वदेश लौटने के बाद भी उसे जारी रखा। इसे जान कर किसी को भी हैरत हो सकती है कि वैज्ञानिक दायित्वों को निभाते हुए भी स्वदेश और विदेश में कई संगीत कार्यक्रमों में परंपरागत पश्चिमी संगीत का प्रदर्शन किया। राजा रमन्ना ने न्यूट्रान, न्यूक्लियर, और रिएक्टर फिजिक्स में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत पर चलने वाले रमन्ना ने बडे पदों पर रहते हुए सिद्ध किया कि वह कुशल प्रशासक तथा दूरदृष्टा हैं।
वैज्ञानिकों के लिये नये नये आयामों को हासिल करने में असरदार साबित हुए। सन 1954 में इंग्लैंड से डॉक्टरेट की पढाई को पूरा किया। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में वरिष्ठ तकनीकी दल में शामिल हुए और होमी जहांगीर भाभा के निधन के बाद परमाणु कार्यक्रम के प्रभारी बना दिये गये।
मई 1974 में देश के पहले शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण में अहम भूमिका निभाई इस सफलता के संबंध मे अपनी आत्मकथा “इयर्स ऑफ़ पिलग्रिमेज“ में लिखा कि पोखरण परीक्षण देश के परमाणु इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है और यह भारत की तकनीकी प्रगति का द्योतक है।
28 जनवरी 1925 को कर्नाटक के तुमकुर में जन्मे इस महान परमाणु वैज्ञानिक ने पांच दशकों तक देश के परमाणु कार्यक्रम का संचालन किया जिसके कारण उन्हें भारत के परमाणु कार्यक्रम का जनक माना गया। उनके वैज्ञानिक कार्यों के लिये भारत सरकार ने उन्हें में पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्म विभूषण जैसे उच्च नागरिक सम्मानों से सम्मानित किया। भौतिक शास्त्र में उन्होंने एम एस सी और और फिर संगीत विषय में एम एमयूएस की डिग्री पाई ‘राष्ट्रमंडल से मिली छात्रवृत्ति से आगे की पढाई के लिये इंग्लैंड गये और “परमाणु भौतिकी“ में अपने डॉक्टरेट को पूरा किया।
यद्यपि वह वैज्ञानिक थे लेकिन उन्हें दार्शनिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान भी बहुत था भारतीय दर्शन के कई विविध पक्षों पर संबोधन दिये इस बारे में उनके गहन ज्ञान को इसी से समझा सकता है कि उन्होंने “अद्वैतवाद“ पर कांची कामाकोटी पीठम के स्वामी श्री चंद्रशेखर सरस्वती स्वामी से विस्तार से संवाद किया। उनके इस ज्ञान के कारण विज्ञान को होलिस्टिक एप्रोच देने में मदद मिली। नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एडवांस्ड स्टडीस बेंगलुरु की कल्पना जे आर डी टाटा ने की; लेकिन उसे कार्यान्वित करने का कार्य वैज्ञानिक रमन्ना ने किया इससे प्रभावित हो टाटा ने उन्हें इसका पहला निदेशक बनाया। सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी इंदौर,म. प्र. की। स्थापना में भी अहम भूमिका का निर्वाह किया।
अपने बचपन की यादों में अपनी चाची की सुनाई पौराणिक कथाओं को ज्ञान का सबसे बड़ा सूत्र बताते हुए कहते कि हमारे पुराणों में जो व्यापक, विहंगम और विस्तृत ज्ञान है वह अद्वितीय है। बचपन से उनकी रुचि संगीत में थी जिससे उनके माता पिता ने उन्हें संगीत में भी शिक्षा दिलवायी। सन 1990 में भारत सरकार में रक्षा राज्य मंत्री बने। एकदम निराभिमानी साधारण जीवन जीते।
प्रसंगानुसार एक बार भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के एक प्रशिक्षु युवा कर्मचारी की दादर, मुंबई में बस छूट गयी। ऑफिस के लिये लेट होने के टेंशन में बेचैन हो रहा था तभी उसे ऑफिस की कार दिखी जिसे उसने आवाज दी। कुछ दूर जा कार रुकी तो युवक लपक कर बैठ गया। पीछे की सीट पर देखा, एक सज्जन पुस्तक पढने में ध्यान मग्न हैं। ऑफिस के पर पहुंच उस सज्जन ने पूछा “आपको कहां उतरना है महाशय? क्या अगले जंक्शन पर छोड़ें?” उसने सिर हिला हामी भरी और उतर कर चला गया कुछ दिनों बाद ऑफिस के कर्मचारियों की बैठक हुई तब बतौर अध्यक्ष संबोधित करने के लिये वही सज्जन खडे हुए तो उस युवक ने सहकर्मी से पूछा यह कौन हैं? लगता है, इन्हें कहीं देखा है। बताया गया यह हमारे अध्यक्ष डॉ. राजा रमन्ना हैं। यह जान वह भौचक्का रह गया। एक अंजान युवक को कार में लिफ्ट देने की उनकी सहदयता से प्रभावित हो उन्हें प्रणाम करने लगा।
देश प्रेम उनमें कूट कूट कर भरा था। उनके मतानुसार परमाणु का उपयोग शांति के लिये होना चाहिये। उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार प्रदान किया गया।
इस महान वैज्ञानिक का 24 सितंबर 2004 को देहांत हो गया। उनके ऐतिहासिक वैज्ञानिक योगदान को देखते हुए कहा जा सकता है कि वह विज्ञान के यशस्वी सूत्रधार थे।