“हम भारत के लोग’ संविधान की प्रस्तावना के शब्द भर नहीं है बल्कि यह हमारी महान भारतीय संस्कृति से जीवन दर्शन को रेखांकित करते हैं। इसलिए कि संविधान देश के नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय ही प्रदान नहीं करता बल्कि विचारों की अभिव्यक्ति, अपने विश्वास, धर्म और उपासना की स्थापना और व्यक्ति की गरिमा को कायम रखते हुए राष्ट्र की एकता सुनिश्चित करने वाली बंधुता के लिए भी हमारा संविधान कृत संकल्प है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कभी कहा था कि ‘कर्त॑व्यों के हिमालय से अधिकारों की गंगा बहती है।’ इस दृष्टि से संविधान को वर्तमान संदर्भों में गहराई से देखें और समझें कि संविधान में दिए अधिकारों के प्रति तो हम जागरूक होते हैं परन्तु कर्तव्यों के प्रति उदासीन होते हैं। अपने अधिकारों और हितों के लिए लड़ना और आंदोलन करना व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार हो सकता है परन्तु इसकी आड़ में राष्ट्र की संपति का नुकसान करना, लोगों की जान-माल की हानि, कानून तोड़ना, सरकारी इमारतों, संपतियों को नुकसान पहुंचाना अराजकता है।
परिवार देश की लघुतम इकाई होती है। पर परिवार से मिलकर ही एक वृहद समाज की रचना सम्भव होती है। प्रत्येक घर-परिवार एवं समाज में सदस्यों के कार्य व्यवहार एवं आचरण हेतु एक अलिखित नियमावली या संहिता होती है। परिवार एवं समाज अपने सदस्यों से अपेक्षा रखता है कि समाज की बेहतरी के लिए सभी इन नियमों का पालन, तालमेल-संगति कर ही कार्य संपादन करेंगे। नियमानुकूल आचरण कर समाज की विकास धारा को गतिशील रखते हुए उसे समृद्धि प्रदान करेंगे। नियमों में आबद्ध लोक अपनी कार्य संस्कृति से सतत ऊर्ध्बगामी यात्रा करता है। नियमानुशासित लोकाचरण से समाज में सद्त्ति, सदनीति, शुचिता, सत्यान्वेषण, सहकार, समन्वय, सख्यभाव एवं सदसंस्कारों का बीजवपन, पल्लवन एवं फलन होता है और अराजकता, अनैतिकता, अनीति के लिए कोई स्थान शेष नहीं होता।
डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था- संविधान कितना ही अच्छा हो, अगर इसका इस्तेमाल करने वाले लोग बुरे होगें, तो यह बुरा साबित होगा। अगर संविधान बुरा है, पर उसका इस्तेमाल करने वाले अच्छे होगें तो फिर संविधान अच्छा साबित होगा।
भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति की स्थापना 29 अगस्त 1947 को की गई थी। भारतीय संविधान लिखने वाली सभा में 299 सदस्य थे। संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष पद पर डॉ. भीमराव अम्बेडकर की नियुक्ति की गई। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार वलल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद संविधान सभा के प्रमुख सदस्य थे।
संविधान का मसौदा तैयार करने में किसी भी प्रकार की टाइपिंग अथवा प्रिंटिंग का इस्तेमाल नहीं किया गया। भारतीय संविधान को पूर्ण रूप से तैयार करने में 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन का समय लगा था। 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू कर दिया गया। संविधान प्रारूप समिति की बैठकें 114 दिनों तक चली।
संविधान के निर्माण कार्य पर कुल 63 लाख 96 हजार 729 रुपये का खर्च आया और इसके निर्माण कार्य में कुल 7635 सूचनाओं पर चर्चा की गई। संविधान सभा में शुरू में 389 सदस्य थे किन्तु मुस्लिम लीग द्वारा स्वयं को इससे अलग कर लिए जाने के बाद संविधान सभा के सदस्यों की संख्या 299 रह गई थी।
बहुत कम लोगों को ही भारतीय संविधान की पहली प्रति के बारे में मालूम होगा कि संविधान के जो सजे हुए चित्र हम देखते हैं, वह संविधान की पहली हस्तलिखित प्रति के ही चित्र हैं। इस प्रति को दिल्ली निवासी प्रेम बिहारी रायजादा ने कैलीग्राफी के जरिये तैयार किया था।1400 पन्नों की संविधान की प्रति को अंग्रेजी में रास बिहारी ने और हिन्दी में वी. के. वैद्य ने लिखा। संविधान की तीन प्रतियां बनवाई गई।
इनमें से दो को नंदलाल बोस और राम मनोहर सिन्हा द्वारा सुसज्जित पन्नों पर प्रेम बिहारी रायाजादा ने एक हिन्दी और दूसरी अंग्रेजी में तैयार किया जबकि तीसरी प्रति को अंग्रेजी में देहरादून में छपवाया गया। यह हमारे लिए आश्चर्य के साथ गौरव की भी बात है कि इतना महत्वपूर्ण दस्तावेज होते हुए भी भारतीय संविधान की मूल प्रति हस्तलिखित ही है।
बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि संविधान की इन बेशकीमती प्रतियों को संसद भवन की लाइब्रेरी के एक कोने में बने स्ट्रांग रूम में सहेजकर रखा गया है। उन्हें पढ़ने की इजाजत किसी को भी नहीं है। संविधान की ये प्रतियां कभी खराब न हो सकें, इसके लिए इन्हें हीलियम गैस से भरे केस में सुरक्षित रखा गया है। यही कारण है कि हमारे देश की यह अमूल्य धरोहर हमारे पास सुरक्षित और आज भी मूल अवस्था में है। हीलियम एक ऐसी गैस है, जो संविधान की प्रति के पन्नों को वातावरण के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया करने से रोकती है।
निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद शामिल थे जो 22 भागों में विभाजित थे। इसमें केवल 8 अनुसूचियाँ थीं। भारतीय संविधान में अब 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ शामिल हैं।
इसमें अभी तक 101 बार संशोधन हो चुके हैं। संविधान में किए गए इन संशोधनों के जरिये सामयिक जरूरतों के अनुरूप जनतंत्र और शासन प्रणाली को मजबूती प्रदान करने के प्रयास किए गए।
संविधान में पहला संशोधन वर्ष 1951 में किया गया था। उसके तहत स्वतंत्रता, समानता एवं सम्पत्ति से संबंधित मौलिक अधिकारों को लागू करने संबंधी व्यावहारिक कठिनाइयों का निराकरण करने के लिए संविधान में नौवीं अनुसूची जोड़ी गई थी।
सर्वप्रथम सन 1895 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मांग की थी कि अंग्रेजों के अधीनस्थ भारत का संविधान स्वयं भारतीयों द्वारा बनाया जाना चाहिए लेकिन भारत के लिए स्वतंत्र संविधान सभा के गठन की मांग को ब्रिटिश सरकार द्वारा ठुकरा दिया गया था। 1922 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मांग की कि भारत का राजनैतिक भाग्य भारतीय स्वयं बनाएगे लेकिन अंग्रेजों द्वारा संविधान सभा के गठन की लगातार उठती मांग को ठुकराया जाता रहा। आखिरकार 1939 में कांग्रेस अधिवेशन में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा ही एकमात्र उपाय है और सर 1940 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत का संविधान भारत के लोगों द्वारा ही बनाए जाने की मांग को स्वीकार कर लिया गया।
1942 में क्रिप्स कमीशन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में निर्वाचित संविधान सभा का गठन किया जाएगा, जो भारत का संविधान तैयार करेगी।
हमारा संविधान लोक के लिए स्वतंत्रता, न्याय, समानता, बंधुता का लक्ष्य लेकर चल रहा है जिसे प्राप्त करने का उपाय लोकतांत्रिक समाजवादी राज्य रचना है। लोक की समृद्धि में ही राष्ट्र की समृद्धि है और समृद्धि के लिए आवश्यक है परस्पर प्रेम, सद्भाव। जहां गैर बराबरी के लिए कोई जगह ना हो, जहां एक धरातल पर अवस्थित हो सभी अपनी पात्रता, क्षमता एवं रुचि-सुविधानुसार कार्य कर सकें। जहां मानव मानव में कोई भेदभाव की दीवार न हो। इसीलिए अस्पृश्यता एबं उपाधियों का उन्मूलन किया गया है।
भारतीय संविधान का कलात्मक रूप भी हमारी संस्कृति का अनूठा आलोक है। संविधान की मूल प्रति हर पन्ने पर भारतीय संस्कृति से जुड़ी चित्रकृतियां हैं। मर्यादा पुरूषोतम भगवान राम और कर्म का संदेश देते भगवान श्री कृष्ण का भी स्वरूप संविधान की मूल प्रति पर उकेरा गया है तो शांति का उपदेश देते भगवान बुद्ध और वैदिक यज्ञ संफ्न्न कराते ऋषि-मुनियों के सुंदर रेखांकन भी इसमें हैं।
संविधान जब तैयार हो रहा था तब यह तय किया गया था कि वह ऐसा बने कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति का उसमें प्रभावी दर्शन हो। इसीलिए संविधान में किसी धर्म विशेष का नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास की विकास यात्रा को दर्शने वाले चित्र मूल प्रति में बनाए गये।
मूल्यों, नैतिकता, मर्यादा और गरिमा के संविधान की मूल प्रति पर राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ को संविधान के पहले पन्ने पर लगाया गया है तो हड़प्पा की खुदाई से मिले घोड़े , शेर, हाथी की सुनहरी सज्जा भी की गयी है। इसी में संविधान की प्रस्तावना को सजाया गया।
संविधान की मूल प्रति हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हाथ से लिखी गई है। संविधान लोकतंत्र संचालन का लिखित कानून ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति का गौरव ग्रंथ है। अनेकता में एकता और सर्वधर्म सद्भाव, समानता की भारतीय संस्कृति का प्रतीक ही तो है भारतीय संविधान।
भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को पूर्ण स्वतंत्रता देता है। लेकिन एक नागरिक की स्वतंत्रता एवं अधिकार दूसरे नागरिक की स्वतंत्रता एवं अधिकार के उल्लंघन का निषेध करता है। हमारी स्वतंत्रता अन्य की स्वतंत्रता में बाधक नहीं बन सकती। हम कल्याणकारी समतामूलक समाज रचते हुए देश को संपूर्ण विश्व में प्रेम, सद्भाव, अहिंसा, शांति, समृद्धि का ध्वजवाहक सिद्ध कर सकने में यथासामर्थ्य कटिबद्ध होकर कर्मरत होगे, वही हम सबका शुभसंकल्प होगा।
संविधान में आजादी की मर्यादा है। इसलिए यह जरूरी है कि संवैधानिक मूल्यों, मर्यादा एवं गरिमा के के साथ हम नैतिकता के साथ हम राग-द्वेष एवं भेदभाव से मुक्त रहते हुए संविधान दिवस पर संविधान निर्माताओं और राष्ट्र निर्माताओं को नमन करते हुए यह संकल्प लें कि सांप्रदायिक सद्भाव कायम रखते हम देश की एकता और अखंडता के साथ ही इसके सर्वांगीण विकास के सहभागी बनेंगे।