कल कवि सम्मेलन में हो गयी
कुछ विवादित सी, उत्तेजित चर्चा
हुआ …
सुबह – सुबह सड़कों पर
दौड़ती जिंदगियाँ
सड़कें बन जाती हैं
कर्तव्यपथ …
जो सपनों को अपने उड़ान देते हैं,
पंखों को विशाल आसमान देते
अंतरिक्ष परी
बन सखी चांद सितारों की
गुपचुप-गुपचुप बतियाती है
कर अंतरिक्ष …
किसान ओसाये हुए अनाज के
किसी भी भाग में कंकड़ नहीं छोड़ …
1. आकाश
तुम्हारा आकाश
अनंत अपरिमित,
क्षितिज के उस पार….
कल्पनाओं के …
जातियों में बँटी रहती है जरूर
मगर भूख का कोई धर्म-ईमान नहीं …
फिर , अब कभी युद्ध पर बात नहीं
होनी चाहिए!
बल्कि बात …