हमारी और हमारे समाज की समस्या यह है कि हम अपनी गलतियों की जड़ों को काटने की जगह केवल उन गलतियों की टहनियों को पकड़कर तोड़ने में लगें हैं। तेजाब का होना या न होना महिलाओं के प्रति पुरुषों के विचारों को बनाने में कोई भूमिका तो नहीं निभाता है। यह तो बस एक हथियार बना लिया गया है अपनी विचारधारा को प्रकट करने का। हमारे घरों में जो लड़कों और लड़कियों को पाला जाता है तो इसी विचार के साथ पाला जाता है कि लड़कियां बेचारी और खूबसूरत होती हैं। यदि कोई लड़की खूबसूरत नहीं दिखती तो उसका जीवन बेकार है। लड़कियों को रंग के आधार पर भी इसी कारण से अनेक प्रकार की टिप्पणियों का सामना बचपन से ही करना पड़ता है। पुरुषों को एक मानसिक सोच दी गई है हमारे पालन पोषण में कि वह इस समाज के रक्षक हैं यह विचार ही उन्हें घर का मर्द बनाता है।
महिलाओं को हमेशा पुरुषों के आश्रय में रहने की शिक्षा हमारा समाज, हमारी संस्कृति, हमारी शिक्षा देती है। किंतु कोई स्त्री जब पुरुष को न कहती है तब वह उन सीमाओं को तोड़ती है जिन्हें हमारे समाज ने पुरुषों के विचारों में समा दिया है। यही वह समय होता है जब एक पुरुष मानसिक रूप से महिला को कमजोर समझ उसको अपने अपराध का शिकार बनाता है। महिला का खूबसूरत होना यह इतना बड़ा विचार है कि बचपन से ही हर व्यक्ति के दिमाग में इसको बसा दिया जाता है चाहे वह लड़का हो या लड़की। लड़की का खूबसूरत होना बहुत आवश्यक माना जाता है। जिसके कारण आज तेज़ाब जैसी घटनाएं हमारे समाज में देखने को मिल रही है। यदि खूबसूरती का दिखावा हमने मानसिक रूप से अपने समाज में नाम बैठाया होता तो आज उसकी सजा कई बच्चियों को अपना जीवन और स्वास्थ्य नुकसान करके नहीं चुकानी पड़ती।
अदालतें कानून बना सकती है हमारी सुरक्षा के लिए जो वह बना भी रही है। तेजाब के बेचे जाने पर रोक भी इसी प्रकार का एक कानून है, जो हमारी सुरक्षा के लिए बनाया गया है। किंतु केवल कानून बना देने से ही सुरक्षा मुमकिन नहीं है। हमें अपने विचारों को बदलना होगा। रंग और खूबसूरती के दायरों से आगे लड़कियों का जीवन है यह समझना होगा। लड़कों को भी भावना को अनुभव करना सीखना होना। मर्द को दर्द नहीं होता इस विचार की जगह उस दर्द की तकलीफ को समझना सिखाना होगा, ताकि वह पत्थर बन दूसरों को दर्द देने की जगह इंसान बन दूसरों का दर्द समझना सीखें।