कविता-कानन
बड़ी बात
मैनेजर के पास है जुगाड़
एकाउंटेंट के पास है इलाज
एचआर ने बढ़ा दिया है उत्पादन
मार्केटिंग मैनेजर ने रोक रखा है फंड फ्लो
मालिक ने कर रखी है हड़ताल
मजदूर मुनाफा कूट रहे हैं
दिसंबर की ठंड में लोग सिकुड़े हैं धर्म में
और औरतें लुट रही हैं चौराहों पर
व्यापार चल रहा है देश बदल रहा है
तुम क्या समझते हो ये छोटी बात है
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नया दौर
किसी का कोई भरोसा नहीं
ये विश्वासघात का दौर है
बाज बिलों में हैं
चूहे चौराहों पर पोस्टर लगा रहे हैं
जज साहब गिरफ्तार हो चुके हैं
क़ातिल छुट्टी पर है
आदमी खड़ा है कतार में
भविष्य की आस में
विश्वास है कि विश्वासघात होगा
वो ये विश्वास टूटने नहीं देंगे।
– कुमार गौरव