आधुनिक युग के मेट्रो सिटी में ऊँची – ऊँची इमारतें शहर के आधुनिकीकरण का ऐलान करती और गगनचुंबी इमारतें न्यूयॉर्क से होड़ लगाती दिखती हैं। जब इन इमारतों के फ़्लैट ख़रीदे जाते हैं तो जितनी ऊँचाई पर फ़्लैट उतना दाम अधिक।
रुपया पैसा किस काम का, यदि उसका प्रदर्शन न हो! दसवें माले पर रहने वाले की औक़ात बीसवें माले से कम आंकने वाली ये इमारतें अमीर की अमीरी का खुला ऐलान करती है। गर्व से छाती चौड़ी कर वे अपना एड्रेस बताते हैं। एड्रेस पर साफ़ शब्दों में लिखा होता है उस फ़्लैट का दाम। बस आप बता भर दीजिए “आर ब्लॉक 22 माला!”
“अच्छा! आर तो छह करोड़ का है!“
“ न जी 22वें माले की क़ीमत सबसे ज़्यादा है बिल्डर से बोल कर दस लाख और देकर लिया है !”
“दसवें पर लेते तो सस्ता पड़ता“ उनके कहने का ढंग रईसों वाला और चेहरे पर कुछ अधिक लाली थी । पता नहीं शुद्ध गोवर्धन घी का भोजन करने से थी कि सुरा की। गुलाबी आँखें और हृष्ट पुष्ट शरीर। हाथ में बी.एम.डब्ल्यू की कार की चाबी। तीन कारें और पाँच छह प्रॉपर्टी । आज के बादशाह अकबर।
पर न बचा है कोई सिकंदर न बचेगा कोई कलंदर, जब बला आती है सिर के ऊपर।
आधुनिकीकरण की अंधी आँधी ने हमारी आँखों में धूल झोंक दी है। दिखावा और दिखावा। चहुँ ओर बस यह दिखाई दे रहा है। मानवीय मूल्यों का हनन हो रहा है । संस्कारों, परवरिश का तो जैसे राम नाम सत्य हो गया है । सवा मन प्रसाद चढ़ाने, सुंदर कांड पाठ करने भर से, मंदिरों की परिक्रमा कर लेने मात्र से सुसंस्कृत नहीं बन सकते।
सुसंस्कृत परिवार के बच्चे नियमों का पालन करते हैं। किसी के डर से नहीं बल्कि घर से बाहर कदम रखते ही वे पहचान लिए जाते हैं। वे आईसक्रीम खाकर डस्टबिन की खोज करते नज़र आते हैं और ये कुछ पेपर प्लेट में मैगी खाकर, वहीं फेंक कर फ़्रेंच फ़्राइज़ ख़रीदने लपकते हैं और यहाँ – वहाँ और कहॉ कहॉ अपने शौक़ के निशान छोड़ जाते हैं। उनकी जेबों में पैसा और दिमाग में भूसा भरा साफ़ प्रदर्शित होता है।
व्यवहार प्रमाणित करता है कि उनका डी .एन. ए. कैसा है । उनके रक्त में कितना पॉजिटिव है और कितना नेगेटिव । गाड़ी कीमती हो या सस्ती वे ग़लत दिशा में नहीं चलाते। किसी पैदल गामी के सामने से नहीं ले जाते, सडक के नियमों का पालन करते हैं हालांकि उन्हें लेट होने के इल्ज़ाम भी भुगतने पड़ते है। सभ्यता ओढ़ने बिछाने की वस्तु नहीं है। सभ्यता पल- पल परछाई की भाँति आपके साथ- साथ चलती है।
बच्चे बूढ़े के संग आप का व्यवहार, बीमार व गरीब के प्रति आपकी मानसिकता। यह काफी नहीं कि आप बेबस को दान दे दें या अमावस को खाना खिला दें।
आदर सम्मान सामने वाले को देखकर उसकी हैसियत को देखकर नहीं बल्कि आपकी आदत होता है।
धनी व्यक्ति के साथ अलग और गरीब के प्रति शब्दों का चुनाव अलग, क्षण भर में व्यक्ति की परवरिश व सभ्यता का प्रमाण होता है।
दंभ, अहंकार पूर्वक दिया गया दान, परंतु दान शब्द होना ही नहीं चाहिए। विनीत हो, ममता सहित गले लगाकर अपनी पूँजी का कुछ भाग किसी को देते हैं, तब भी यदि उस पर रक़म की मुहर लगी है, तो वह बड़ा नहीं छोटा होकर रह जाता है।
सभ्यता असभ्यता का एक नमूना अभी- अभी सामने आया था। बहुमंज़िला इमारत में आग लगी। दमकल की गाड़ियों व एम्बुलेंस की गाड़ियों ने राहत कार्य शुरू किया। उनके काम में बाधा बन रहे थे, वहीं के निवासी। उनकी उत्सुकता, उनको सब कुछ देखना, सब कुछ जानना, फोटो व वीडियो खींचना, भीड़ लगाकर सहायता प्रदान करने वालों के रास्ते में रुकावट डालना , मेला लगाना गरदन उचकाकर टी वी रिपोर्टर के सामने आकर अपना चेहरा दिखाना। और स्पष्टीकरण देते वहीं के लोग, ‘अब ऐसे में तो ऐसा होता ही है।’ क्यों भई! आप मदद नहीं कर रहे हैं, कर भी नहीं सकते! तो अपने घर जाइए। काम करने वालों को बेबस मत करिए। कुछ समय पहले न्यूज़ पढ़ी थी, एक लड़की का सरेआम रेप हो रहा था और पब्लिक वीडियो बना रही थी।
समझ नहीं आता महँगे स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले माता पिता घर में उन्हें सस्ती शिक्षा क्यों दे रहे हैं?
आग लगने के कारणों में मुँह बंद शब्दों में फुसफुसाहट सुनाई पड़ी । ‘बच्चे हैं बच्चे कहाँ कहना मानते हैं ‘ एक आध प ——- , नहीं बोलना भी मत।
अरे! बच्चे कहना नहीं मानते? बच्चे खूब कहना मानते हैं बशर्ते उदाहरण उनके घर के वातावरण में हो।
गगन चुम्बी इमारतें कराह रही हैं। उनका दर्द न जाने कोय।