1.
किसी को विदा करते हुए
या किसी से विदा लेते हुए
सोच समझकर देना आखिरी उत्तर….
कि वो उत्तर ही तय करता है
बिछड़ने वाले का भविष्य
कि वो ही तय करता है
गिरकर उठने के लिए
फिर से एक नयी हिम्मत
उसकी तरफ़ बढ़ रहे किसी हाथ को
फिर से थामने के लिए ढेर सारा विश्वास…
वो ही तय करता है कि
क्या वो फिर से रो पाएगा अब
निसंकोच किसी के आगे
किसी बच्चे की तरह..
क्या बह पाएगा
वो पानी की तरह किसी के साथ
क्या रह पाएगा याद किसी को
वो किसी कहानी की तरह
वो ही तय करता है
कि कितनी कठोर होगी
अब उसकी कल्पनाएं
या कितनी कोमल…
हां वो आखिरी उत्तर ही तो
यह तय करता है कि अब
कितनी सहजता और किस विश्वास से
कह पाएगा वो किसी और से
कि मुझे तुम्हारे शरीर की भी उतनी ही जरूरत है
जितनी कि तुम्हारे मन की…
विदा करते हुए
और विदा लेते हुए
न देना कभी ऐसा कोई उत्तर
कि उसके आघात से मर जाए फिर हर प्रश्न अजन्मा
अपनी ही कोख में…
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2.
मैंने कहा
तुम पीड़ाएँ क्यों लिखती हो
प्रेम लिखा करो ना
तो उसने कहा
यही तो है जो मेरी हैं
प्रेम ठहरता ही कब है मेरे पास
फिर मैंने कहा
ठहरता तो कुछ भी नहीं
ना प्रेम ना ही पीड़ाऍं
उसने मेरी तरफ गौर से देखते हुए कहा
‘क्या तुम भी नहीं ठहरोगे ?’
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3.
आसमान से अधिक
मैं आभारी हूँ उस धरती का
जिसके होने से बची हुई है
आसमान की कल्पना
समंदर से ज्यादा
शुक्रगुज़ार रहा हूँ
उन नदियों का
जिन्हें छू कर लौटने पर
पानी-पानी हुआ हूँ
और ईश्वर से अधिक
मैं उस स्त्री के आगे
होना चाहता हूँ नतमस्तक
जिसने मेरे कमजोर पक्ष को भी
अपने आलिंगन मे भर लिया
और फिर से लौटने का साहस
लौटा दिया मुझे
हो सकता है कि
दुनिया की भाषाओं के अनुसार
कुछ शब्दों के कुछ और अर्थ होते होंगे
पर मैं अभी अभी देख कर आया हूँ
धरती पर एक ऐसी नदी
जिसका नहीं है
कोई भी जिक्र
किसी मानचित्र पर कहीं
और उस नदी में एक स्त्री
जिसे नहीं जानता कोई
उसके नाम से
और अभी-अभी जाना है
उस नाम का एक और अर्थ
जिसकी नहीं है
कोई भी व्याख्या
किसी भी शब्दकोश में…
स्त्री…
एक तुम ही हो
जिसने मुझे
कविता के बाद
सबसे अधिक
चकित किया है!
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4.
तुम्हारी उंगलियों के नाखूनों पर
बचा ये मेहंदी का रंग
देख कर लगा
कि कितना कम बचा है
अब दुनिया में प्रेम
और
कितनी तेजी से बढ़ रहे हैं
नाखून!