29 जनवरी 1780 यानी आज ही के दिन 242 साल पहले देश का पहला अखबार बंगाल गजट ऑर कलकत्ता जनरल एडवर्टिफायर जिसे हम ‘हिकीज गजट’ के नामसे भी जानते हैं, का प्रकाशन शुरू हुआ. इसे प्रकाशित करने का श्रेय जेम्स आगस्टस हिकी को है। हिकी के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, सिवाए इसके कि वह ऑनरेबल कंपनी का मुद्रक था, जिसकी घोषणा स्वयं हिकी ने हिकीज गजट के प्रवेशांक में की है। हिकी ने अपने संबंध में लिखा है- “मुझे अखबार छापने का कोई शौक नहीं है, न ही मेरी तबीयत को इस काम से लगाव ही है। मेरी परवरिश भी इस तरह की नहीं कि मैं मेहनत की गुलामी की जिंदगी जीऊं, परंतु इन सब बातों के बावजूद आत्मा और दिमाग की आजादी खरीदने के लिए मैं अपने शरीर को बखुशी गुलाम बना रहा हूँ।”
29 जनवरी, 1780 से 16 मार्च 1782 ईस्वी तक प्रकाशित होने वाले इस प्रथम समाचार-पत्र केअंक अब दुर्लभ हैं। राष्ट्रीय पुस्तकालय कोलकाता के दुर्लभ ग्रंथ संग्रह प्रभाग में केवल 29जनवरी,1780 और 5 जनवरी 1782के ही अंक उपलब्ध हैं। इस अखबार का एक और अंक सतप्रेसंग्रहालय भोपाल में भी सुरक्षित है, जो 11 मार्च, 1780 का अंक है।
संपादक के नाम पत्र स्तंभ का जनक भी हिकी का ‘बंगाल गजट’ ही है। इस पत्र ने जनता की भावनाओं को अभिव्यक्ति देने का महत्वपूर्ण कार्य किया। साथ ही जनता की समस्याओं, सोच को उजागर करने, विचारों के आदान-प्रदान को भी उसने महत्व दिया। यह एक प्रजातांत्रिक सोच थी।
25 मार्च 1780 के अंक में फिलन थ्रोप्सनाम से संपादक के नाम एक पत्र छपा, जिसमें कोलकाता के पुर्तगीज श्मशान घाट की गंदगी के बारे में शिकायत की गई थी। शुरुआती दौर में इस समाचारपत्र के अंक शांत और संयमित भाषा में प्रकाशित हुए। धीरे-धीरे यह ईस्ट इंडिया के अधिकारियों के कांडों को उजागर करने लगा। यहां तक कि दो पन्ने के इस साप्ताहिक समाचार-पत्र में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स पर भी तीखे प्रहार होने लगे।
नतीजतन हिकी को शासन की ओर से परेशान किया जाने लगा। 14 नवंबर 1780 को द बंगाल गजट के खिलाफ एक आदेश जारी किया गया- “आम सूचना दी जाती है कि एक साप्ताहिक समाचार पत्र, जिसका नाम ‘द बंगाल गजट ऑर कोलकाता जनरल एडवर्टिफायर’ है, जो जे.ए. हिकी द्वारा प्रकाशित किया जाता है, के अंकों में जिंदगी को कलंकित करने वाले अनुचित अंश पाए गए हैं, जो अशांत करने वाले हैं, अतएव इसे जी.पी.ओ. के माध्यम से प्रसारित होने की और अधिक अनुमति नहीं दी जा सकती।”
यह भारत में पत्रकारिता के क्षेत्र में समाचार पत्र और शासन के बीच टकराव की प्रथम घटना थी। हम यह कह सकते हैं कि भारत में हिकी को पत्रकारिता के श्रीगणेश का ही श्रेय नहीं है, बल्कि उन्हीं के खाते में व्यवस्था से टकराने औरअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रताड़ना की कीमत चुकाने का सम्मान भी दर्ज है।