10 जनवरी: विश्व हिन्दी दिवस
‘दक्षिण-भारत हिन्दी प्रचार सभा’ मद्रास 1934 में आयोजित समारोह में राष्ट्रभाषा हिन्दी को लेकर प्रेमचंद जी ने जो विचार प्रकट किए, उनके अंश आपके सम्मुख रख रहा हूँ –
आजादी मिलने से पहले सत्ताधारियों का अंग्रेजी भाषा के प्रति प्रेम को तो समझा जा सकता है लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के सात दशक बीतने के बाद भी जिस भाषा को अधिकतर भारतवासी न समझ पाते हैं और न बोल पाते हैं उस अंग्रेजी भाषा का आज भी सत्ता के गलियारों में बोलबाला है। यह स्थिति राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति हमारी उदासीनता व मानसिक गुलामी को ही दर्शाती है। राष्ट्रभाषा के महत्व को दर्शाते हुए प्रेमचंद जी कहते हैं, हिन्दी-प्रचारक में अधिकांश लेख आप लोगों ही के लिखे होते हैं और उनकी मंजी हुई भाषा और सफाई और प्रवाह पर हम में से बहुतों को रश्क आता है। और यह तब है जब राष्ट्र-भाषा प्रेम अभी दिलों के ऊपरी भाग तक ही पहुँचा है, और आज भी यह प्रान्त अंग्रेजी भाषा के प्रभुत्व से मुक्त होना नहीं चाहता। जब यह प्रेम दिलों में व्याप्त हो जायेगा, उस वक्त उसकी गति कितनी तेज होगी, इसका कौन अनुमान कर सकता है? हमारी पराधीनता का सबसे अपमानजनक, सबसे व्यापक, सबसे कठोर अंग अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व है। कहीं भी वह इतने नंगे रूप में नहीं नजर आती। सभ्य जीवन के हर एक विभाग में अंग्रेजी भाषा ही मानो हमारी छाती पर मूंग दल रही है। अगर आज इस प्रभुत्व को हम तोड़ सकें, तो पराधीनता का आधा बोझ हमारी गर्दन से उतर जायेगा। राष्ट्र की बुनियाद, राष्ट्र की भाषा है। नदी, पहाड़, समुद्र राष्ट्र नहीं बनाते। भाषा ही वह बन्धन है, जो चिरकाल तक राष्ट्र को एक सूत्र में बांधे रहती है, और उसका शीराजा बिखरने नहीं देती।
जिस वक्त अंग्रेज आये, भारत की राष्ट्र-भावना लुप्त हो चुकी थी। यों कहिए कि उसमें राजनैतिक चेतना की गंध तक न रह गयी थी। अंग्रेजी राज ने आकर आपको एक राष्ट्र बना दिया। आज अंग्रेजी राज विदा हो जाये-और एक-न-एक दिन तो यह होना ही है- तो फिर आपका यह राष्ट्र कहां जायेगा? क्या यह बहुत संभव नहीं है कि एक-एक प्रान्त, एक-एक राज्य हो जाये और फिर वही विच्छेद शुरू हो जाये? वर्तमान दशा में तो हमारी कौमी चेतना को सजग और सजीव रखने के लिए अंग्रेजी राज को अमर रहना चाहिए। अगर हम एक राष्ट्र बनकर अपने स्वराज्य के लिए उद्योग करना चाहते हैं तो हमें राष्ट्रभाषा का आश्रय लेना होगा और उसी राष्ट्र-भाषा के बख्तर से हम अपने राष्ट्र की रक्षा कर सकेंगे। आप उसी राष्ट्र-भाषा के भिक्षु हैं, और इस नाते आप राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं। सोचिए, आप कितना महान काम करने जा रहे हैं। आप कानूनी बाल की खाल निकालने वाले वकील नहीं बना रहे हैं, आप शासन-मिल के मजदूर नहीं बना रहे हैं, आप एक बिखरी हुई कौम को मिला रहे हैं, आप हमारे बंधुत्व की सीमाओं को फैला रहे हैं, भूले हुए भाइयों को गले मिला रहे हैं। इस काम की पवित्रता और गौरव को देखते हुए, कोई ऐसा कष्ट नहीं है, जिसका आप स्वागत न कर सकें।
यह धन का मार्ग नहीं है, संभव है कि कीर्ति का मार्ग भी न हो, लेकिन आपके आत्मिक संतोष के लिए इससे बेहतर काम नहीं हो सकता। यही आपके बलिदान का मूल्य है। मुझे आशा है, यह आदर्श हमेशा आपके सामने रहेगा। आदर्श का महत्त्व आप खूब समझते हैं। वह हमारे रूकते हुए कदम को आगे बढ़ाता है, हमारे दिलों से संशय और सन्देह की छाया को मिटाता है और कठिनाइयों में हमें साहस देता है। अब हमें यह विचार करना है कि राष्ट्र-भाषा का प्रचार कैसे बढ़े। अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि हमारे नेताओं ने इस तरफ़ मुजरिमाना गफ़लत दिखायी है। वे अभी तक इसी भ्रम में पड़े हुए हैं कि यह कोई बहुत छोटा-मोटा विषय है, जो छोटे-मोटे आदमियों के करने का है, और उनके जैसे बड़े-बड़े आदमियों को इतनी कहाँ फुरसत कि वह झंझट में पड़े। उन्होंने अभी तक इस काम का महत्त्व नहीं समझा, नहीं तो शायद यह उनके प्रोग्राम की पहली पंक्ति में होता। मेरे विचार में जब तक राष्ट्र में इतना संगठन, इतना एक्य, इतना एकात्मपन न होगा कि वह एक भाषा में बात कर सके, तब तक उसमें यह शक्ति भी न होगी कि स्वराज्य प्राप्त कर सके, गैरमुमकिन है। जो राष्ट्र के अगुआ हैं, जो इलेक्शनों में खड़े होते हैं और फतह पाते हैं, उनसे मैं बड़े अदब के साथ गुजारिश करूंगा कि हजरत इस तरह के एक सौ इलेक्शन आयेंगे और निकल जायेंगे, आप कभी हारेंगे, कभी जीतेंगे, लेकिन स्वराज्य आपसे उतनी ही दूर रहेगा, जितनी दूर स्वर्ग है।
अंग्रेजी में आप अपने मस्तिष्क का गूदा निकालकर रख दें लेकिन आपकी आवाज में राष्ट्र का बल न होने के कारण कोई आपकी उतनी परवाह भी न करेगा, जितनी बच्चों के रोने की करता है। बच्चों के रोने पर खिलौने और मिठाइयां मिलती हैं। वह शायद आपको भी मिल जावे, जिसमें आपकी चिल्ल-पों से माता-पिता के काम में विध्न न पड़े। इस काम को तुच्छ न समझिए। यही बुनियाद है, आपका अच्छे से अच्छा गारा, मसाला, सीमेंट और बड़ी से बड़ी निर्माण-योग्यता जब तक यहां खर्च न होगी, आपकी इमारत न बनेगी। घरौंदा शायद बन जाये, जो एक हवा के झोंके में उड़ जाएगा। दरअसल अभी हमने जो कुछ किया है, वह नहीं के बराबर है। राष्ट्र की मजबूती राष्ट्र की भाषा में है इस बात को समझते हुए हमें हिन्दी को मजबूत करने के लिए सब भारतीयों को रात-दिन एक करने की आवश्यकता है क्योंकि राष्ट्र की मजबूती में ही हम सबकी मजबूती है।